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Updated: 25 अगस्त, 2018 06:55 PM
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बीएसपी के भीतर ही नहीं, बाहर भी लोग मायावती को बहनजी ही बुलाते हैं. मगर, मायावती ने अब तक कुछ ही लोगों को राखी बांधी है. मायावती के साथ भाई-बहन के रिश्ते का हाल भी दूसरे दलों के साथ बीएसपी के गठबंधन जैसा ही देखने को मिला है.

पूरा देश भले 26 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार भले मनाये, मायावती ने इस बार इसे चार दिन पहले ही मना लिया. किसी भी त्योहार पर जब राजनीति हावी हो तो मजबूरन ऐसा करना पड़ता है.

बिहार के ताजा ताजा गवर्नर बने लालजी टंडन भी किसी दौर में बीएसपी नेता मायावती के भाई हुआ करते रहे. हालांकि, ये रिश्ता साल भर से ज्यादा नहीं चल पाया. बीएसपी और बीजेपी का गठबंधन खत्म होते ही राजनीतिक भाई-बहन का रिश्ता भी टूट गया.

भाई-बहन का नया रिश्ता मायावती द्वारा हरियाणा के नेता अभय चौटाला को राखी बांधने से शुरू हुआ है - और सियासी सर्कल में इस रिश्ते की खूब चर्चा है.

रक्षाबंधन जैसे कोई गठबंधन हो

22 अगस्त 2002 को तब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने बीजेपी नेता लालजी टंडन को राखी बांधी थी. वो राखी भी कोई आम राखी नहीं बल्कि चांदी की राखी थी. तब यूपी में मायावती की सरकार को बीजेपी का सपोर्ट हासिल था. माना जाता है कि लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड में जब मायावती की जान खतरे में पड़ी तो बचाने वालों में लालजी टंडन की भी भूमिका रही. वैसे मायावती ने जब लालजी टंडन को राखी बांधी तो उसका मकसद बीजेपी की ओर से संभावित अड़चनों को टालना रहा. इस रिश्ते की उम्र भी गठबंधन से ज्यादा नहीं रही, अगले ही साल मायावती की सरकार गिर गयी. नतीजा ये हुआ की अगली राखी पर लालजी टंडन इंतजार करते रहे लेकिन न तो मायावती पहुंची न ही कोई राखी.

mayawati, lalaji tandonराखी चांदी की और रिश्ता साल भर भी नहीं टिका...

ठीक 16 साल बाद 22 अगस्त को ही मायावती ने एक और सियासी राखी बांधी है - हरियाणा के नेता अभय चौटाला को. इंडियन नेशनल लोकदल के नेता अभय चौटाला हरियाणा के गोहाना में अगले महीने रैली करने जा रहे हैं. अभय चौटाला उसी का न्योता देने दिल्ली में मायावती के आवास पर पहुंचे थे. तभी मायावती ने अभय चौटाला को राखी बांधी और तिलक लगाया.

mayawati, abhay chautalaजब चुनाव आये तभी रक्षाबंधन...

दरअसल, अभय चौटाला को विदेश यात्रा पर जाना रहा और राखी के दिन वो मिल नहीं पाते इसलिए मायावती ने राखी चार दिन पहले ही राखी बांध दी. ये रक्षाबंधन राजनीतिक नहीं होता तो मायावती राखी का पैकेट थमा देतीं और अभय चौटाला जहां भी रहते राखी बांध लेते. सियासत की अपनी मुश्किलें भी होती हैं, फिर फोटो कैसे लिया जाता - और फिर मीडिया के जरिये उससे संदेश लोगों तक कैसे पहुंचता?

अभय चौटाला की पार्टी INLD के साथ बीएसपी का कुछ कुछ वैसे ही गठबंधन हुआ है जैसे कर्नाटक में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस के साथ. गठबंधन के जोश से लबालब अभय चौटाला मायावती के प्रधानमंत्री बनने की भी बात कह चुके हैं. वैसे भी मायावती का राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनावों को लेकर कांग्रेस के साथ भी गठबंधन पाइपलाइन में है. एक और अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री पद को लेकर मायावती के नाम पर राहुल गांधी अपनी ओर से अनापत्ति प्रमाण पत्र भी दे चुके हैं.

भाई को भी सियासत की भेंट चढ़ा दिया

मायावती ने तीन महीने पहले ही अपने सगे भाई आनंद कुमार को बीएसपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से हटा दिया. मायावती ने मैसेज तो यही देने की कोशिश की कि वो राजनीति में भाई-भतीजा वाद को बढ़ावा नहीं देतीं. वैसे तो यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भी जिस किसी साथी नेता ने बीएसपी छोड़ी मायावती का यही कहना रहा कि वो बेटे या परिवार के किसी सदस्य के लिए टिकट चाहते थे. मायावती इसकी घोर विरोधी रही हैं.

हालांकि, बात जब अपने भाई की आई तो मायावती ने सारे नियम कानून ताक पर रख दिये. मायावती ने जब अपने सगे भाई आनंद कुमार को बीएसपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया तो माना जाने लगा कि एक तरीके से उत्तराधिकारी खड़ा कर रही हैं. तीन महीने पहले ही मायावती ने मई के आखिरी हफ्ते में आनंद कुमार को भाई-भतीजावाद की विरोधी होने का दावा करते हुए हटा दिया.

ये ठीक है कि मायावती ने अपने सगे भाई आनंद कुमार को मुसीबत में साथ दिया. सरकारी मुलाजिमों की नजर से बचाने के लिए सियासी सुरक्षा कवच मुहैया कराया, लेकिन वही भाई जब मायावती के राजनीति भविष्य की राह में बाधा बनने लगा तो उसे बाहर करते देर न लगी. मायावती के लिए रक्षाबंधन के सियासी मायने इतने ही हैं. वैसे ये सियासत की ही फितरत है जिसमें मायावती तो महज किरदार भर हैं.

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