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Updated: 08 अक्टूबर, 2019 06:05 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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एक वो समय था जब हरियाणा की बात करो तो वहां लड़कियों की कम संख्या, महिला विरोधी बातें, और लड़कियों के साथ भेद-भाव की खबरें ही आती थीं. लेकिन आज जब हरियाणा की बात होती है तो फोगाट बहनों और साक्षी मलिक की कुश्ती, सायना नेहवाल का बैडमिंटन और मानुषी छिल्लर की खूबसूरती जेहन में आती है. समय के साथ-साथ हरियाणा ने काफी हद तक महिलाओं के प्रति अपनी सोच बदली है. और नतीजा ये है कि पैदा होते ही बच्चियों को मार देने वाले राज्य में लिंग अनुपात में सुधार आ रहा है. बच्चियां पढ़ाई कर रही हैं, खेलों को अपना रही हैं, करियर बना रही हैं. इस राज्य से ऐसे नाम निकलकर आ रहे हैं जो दुनियाभर में हरियाणा का नाम रौशन कर रहे हैं. लेकिन महिलाओं को लेकर ये बदलाव सिर्फ सामान्य लोगों में नजर आता है, राजनीति में नहीं. हरियाणा राज्य की मुख्य राजनीतिक पार्टियों ने आने वाले विधानसभा चुनावों में जिस तरह से टिकट वितरण किया है उससे यही लगता है कि इस राज्य में महिलाओं के संघर्ष खत्म होने में अभी और वक्त लगेगा.

haryana-electionहरियाणा में महिलाओं के अच्छे दिन आने में समय है

क्या पार्टियों को महिलाओं पर भरोसा नहीं ?

हरियाणा में विधानसभा की कुल 90 सीटों पर चनाव होने हैं. लेकिन उम्मीदवारों की सूची में महिलाएं न के बराबर ही नजर आ रही हैं.

- कांग्रेस ने 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए केवल 9 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिए हैं. यानी विधानसभा में भागीदारी के लिए सिर्फ 10 फीसदी महिलाओं को ही मौका दिया गया है. यहां गौर करने वाली बात तो ये है कि ये वो पार्टी है जिसने हमेशा महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की मांग की है.

- इस मामले में भाजपा भी कांग्रेस जैसी ही है. भाजपा ने 90 सीटों में से 12 पर महिला प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा है. वो भी तब जब भाजपा राज्य में सत्ता में है.

- देश के दो प्रमुख दल कांग्रेस और बीजेपी से अच्छे तो यहां के क्षेत्रीय दल हैं जिन्होंने महिलाओं पर इन पार्टियों से ज्यादा भरोसा दिखाया है. INLD ने इस बार 15 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं. जबकि जननायक जनता पार्टी (JJP) ने सिर्फ 7 महिलाओं को ही टिकट दिए.

पिछले चुनावों में भरोसा ज्यादा था, इस बार कम क्यों?

कांग्रेस ने 2014 के चुनावों में 10 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से तीन महिलाएं जीती थीं. जबकि बीजेपी की बात की जाए तो 2014 में पार्टी ने 15 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, इनमें से 8 महिलाओं ने जीत दर्ज की थी. INLD ने 2014 में 16 महिलाओं को टिकट दिए थे. इसके अलावा बसपा ने 6, हजकां ने 5, हलोपा ने 12 और निर्दलीय के रूप में 33 महिलाएं चुनाव मैदानमें उतरी थीं. 2014 हरियाणा चुनाव में सभी पार्टियों से कुल 115 महिलाएं चुनावी मैदान में थीं.

यानी हर क्षेत्र में महिलाएं आगे हैं लेकिन राजनीति में नहीं. हरियाणा की खास बात ये है कि इस राज्य की 90 सीटों में से 58 सीटें ऐसी हैं जहां से कभी भी कोई महिला विधायक बनी ही नहीं.

राज्य में सिर्फ 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' पर ध्यान दिया जा रहा है. इसके आगे नहीं. बेटी क्या कर सकती है इसपर अभी भी हमारे राजनेताओं को शक है. इसलिए भाजपा ने वहीं दांव लगाया है जहां जीत की संभावन प्रबल हो. उन्होंने इस बार रेसलर बबीता फोगाट और TikTok स्टार सोनाली फोगाट को टिकट दिया है जो दादरी और अदमपुर से चुनाव लड़ेंगी.

babita and sonali phogatबबिता और सोनाली फोगाट पर भरोसा सिर्फ इसलिए क्योंकि वो सेलिब्रिटी हैं

महिलाओं को लेकर अक्सर राजनीतिक पार्टियां महिला हित की बातें करती हैं लेकिन जब चुनाव का समय आता है तो राजनीतिक दल ये साबित कर देते हैं कि उनकी कोई भी बात भरोसा करने लायक नहीं है. महिलाओं को सत्ता में लाए बिना महिलाओं के हित की बातें करना बेमानी लगता है. और जब बात हरियाणा जैसे राज्य की छवि को सुधारने और विकास की हो तो महिलाओं को तो आगे लाना ही होगा. देश में अगर किसी राज्य की मिलाओं ने सबसे ज्यादा पितृसत्ता के दंश झेले हैं तो वो हरियाणा ही है. ऐसे में चुनावों में महिलओं को सम्मानित भागीदारी न देकर एक बार फिर वही गलती दोहराई जा रही है.

पर लगता है हारियाणा में महिलाओं पर सिर्फ एक ही अहसान हो रहा है कि अब महिलाओं के लिए हरियाणा सांस लेने लायक हो गया है. लेकिन अगर आप इससे ज्यादा की उम्मीद करते हैं तो हरियाणा उतना भी नहीं बदला. यानी 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' लेकिन चुनाव मत लड़वाओ !

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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