Galwan valley को राजनीति में घसीट कर कांग्रेस मदद तो बीजेपी की ही कर रही है!
गलवान घाटी (Galwan Valley Clash) को लेकर कांग्रेस जिस तरीके की राजनीति कर रही है, ऐसा लगता है जैस उसकी सारी कवायद केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के लिए हो - तब भी जब मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बहस के बीच आमने सामने आ गये हों.
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गलवान घाटी (Galwan Valley Clash) को लेकर हो रही राजनीति में अब पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) की भी एंट्री हो चुकी है. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुछ सलाहियत दी है. जाहिर है ये सलाह अनुभव के आधार पर ही दी गयी है. वैसे भी मनमोहन सिंह, नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के मुकाबले ज्यादा वक्त तक देश के प्रधानमंत्री रहे हैं. लेकिन मनमोहन सिंह की सलाह को बीजेपी हजम नहीं कर पा रही है. खासकर इसलिए भी क्योंकि क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब प्रधानमंत्री मोदी को बताने लगे हैं कि वो मनमोहन सिंह की सलाहियत पर तत्काल अमल करें.
बीजेपी की तरफ से मोर्चा संभाल लिया है, अध्यक्ष जेपी नड्डा ने - वो जोर जोर से बताने लगे हैं कि चीन को लेकर डॉक्टर मनमोहन सिंह के पास किस तरह का अनुभव है.
ऊपर से तो यही लग रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व रणनीति बनाकर बीजेपी की मोदी सरकार को गलवान के मुद्दे पर घेर रहा है, लेकिन असल बात तो ये है कि कांग्रेस मिल कर बीजेपी की ही मदद कर रही है.
क्या सब बीजेपी के मनमाफिक हो रहा है?
गलवान घाटी की घटना के बाद जिस बात की अपेक्षा रही, उसका देश को अब भी बेसब्री से इंतजार है - लेकिन जो कुछ हो रहा है उसकी तो कतई उम्मीद नहीं रही होगी. 20 सैनिकों की शहादत के शोक से अभी देश उबर भी नहीं पाया था कि राजनीति रोज रोज नये रंग दिखाने लगी है.
चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बहस जिस दिशा में बढ़नी चाहिये थी, पूरी तरह भटक चुकी है. कितनी अजीब बात है कि चीन अपने तरीके से तमाम तैयारियों में जुटा है - और भारत में बातचीत का मुद्दा ये है कि अब तक चीन कितनी जमीन हड़प चुका है?
बताया भी जा रहा है - "पिछले 60 साल में 43000 वर्ग किलोमीटर भूभाग पर कब्जा किया गया है, जिसकी जानकारी देश को है."
कांग्रेस क्या चाहती है ये तो सामने से साफ साफ नजर आ रहा है - लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता कि बीजेपी नेतृत्व भी यही चाहता है?
बीजेपी के लिए इससे ज्यादा फायदेमंद क्या होगा कि कांग्रेस नेताओं के बयान से पब्लिक नाराज हो - और सोनिया गांधी, राहुल गांधी, रणदीप सुरजेवाला, पी. चिदंबरम और अब डॉक्टर मनमोहन सिंह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गलवान घाटी के मुद्दे पर निशाना बना रहे हैं.
मोदी को घेर कर घिर गये हैं मनमोहन सिंह!
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गलवान घाटी में जो कुछ हुआ और चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर जो भी चल रहा है उस पर बयान जारी किया है. इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस मसले पर बयान जारी किया था.
मनमोहन सिंह ने कहा है - ‘हम सरकार को आगाह करेंगे कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति का मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता, पिछलग्गू सहयोगियों द्वारा प्रचारित झूठ के आडंबर से सच्चाई को नहीं दबाया जा सकता.'
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मनमोहन सिंह को कठघरे में खड़ा करते हुए कांग्रेस नेतृत्व पर पलटवार किया है - 'डॉक्टर मनमोहन सिंह उसी पार्टी से ताल्लुक रखते हैं, जिसने 43000 किलोमीटर भारतीय हिस्सा चीन के सामने सरेंडर किया है. यूपीए सरकार के दौरान निकृष्ट रणनीति देखी गई - और बिना लड़े जमीन सरेंडर कर दी गई.'
Dr. Manmohan Singh belongs to the same party which:
Helplessly surrendered over 43,000 KM of Indian territory to the Chinese!
During the UPA years saw abject strategic and territorial surrender without a fight.
Time and again belittles our forces.
— Jagat Prakash Nadda (@JPNadda) June 22, 2020
ये 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन की बात प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर्व दलीय बैठक में दिये गये बयान की सफाई में सामने आया है. अब मनमोहन सिंह और कांग्रेस नेताओं को चुप कराने के लिए जेपी नड्डा भी उसी की दुहाई दे रहे हैं.
जेपी नड्डा के साथ ही बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय भी मैदान में आ गये हैं. अमित मालवीय अब मनमोहन सिंह और राहुल गांधी को याद दिला रहे हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में क्या क्या नहीं हुआ. जेपी नड्डा की ही तरह अमित मालवीय भी कह रहे हैं कि डॉक्टर मनमोहन सिंह और राहुल गांधी जानते हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में ही चीन ने भारत का अधिकतर हिस्सा अपने कब्जे में लिया था.
समझने वाली बात है कि जिस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान देने के बाद सवाल उठने पर PMO को आगे आकर सफाई देनी पड़ी थी - वो मुद्दे गौण हो चुके हैं. असल बात तो ये रही कि मोदी सरकार अब तक के सबसे मुश्किल दौर का सामना कर रही है. चीन के साथ सीमा विवाद सारी हदें पार कर चुका है. ऐसा भी नहीं है कि जो कुछ हुआ वो अंतिम है और आगे से चीन की तरफ से कोई नयी साजिश नहीं होने वाली है.
गलवान घाटी का वाकया अमित शाह की बिहार रैली के हफ्ते भर बाद का ही तो है - रैली में अमित शाह बड़े शान से बोले कि पहले सरहदों पर कोई भी घुसा चला आता था और सैनिकों का सिर काट कर लेता जाता था. बेशक गलवान में भारतीय सैनिक मारते मारते मरे हैं, लेकिन मरे तो हैं. फिर पहले और अब में फर्क क्या है?
पहले और अब में एक फर्क वो है जो सबको अपनी अपनी समझ से दिखायी दे रहा है.
पहले और अब में एक फर्क ये भी है जो मौजूदा सरकार अपने पूर्ववर्ती की तुलना में दिखाने की कोशिश कर रही है.
पहले और अब में एक फर्क ये भी है जो डॉक्टर मनमोहन सिंह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं
मनमोहन सिंह ने सरकार का ध्यान उसी मसले की तरफ आकृष्ट किया है जिस पर प्रधानमंत्री कार्यालय को सफाई देनी पड़ी है - बिलकुल वही. प्रधानमंत्री मोदी का बयान. उसी बयान पर सवाल उठे तो PMO को सफाई देनी पड़ी. उसी बयान पर कई सामरिक विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाये - और उसी बयान को लेकर चीन के मीडिया में चर्चा हो रही है.
चीन का मीडिया, खास कर ग्लोबल टाइम्स कुछ और नहीं शी जिनपिंग सरकार का जन संपर्क विभाग ही है, लेकिन क्या ये बात ध्यान देने वाली नहीं है कि ग्लोबल टाइम्स सर्व दलीय बैठक में दिये गये मोदी के बयान की तारीफ कर रहा है - और मुख्यमंत्रियों की बैठक वाला प्रधानमंत्री मोदी का बयान वीबो और वी-चैट जैसे चीन के सरकारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटा दिया जाता है.
देखा जाये तो ये सब तो वैसा ही लगता है जैसे कांग्रेस केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को जवाबदेही से बचाने के लिए कदम कदम पर जानबूझ चूक किये जा रही है - और बड़ी आसानी से ऐसी हर बात का श्रेय राहुल गांधी को मिलता जा रहा है.
अगर चीन को माकूल जवाब नहीं दिया गया?
उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक - ये दोनों ऐसे वाकये हैं जो सेना ही नहीं देश के हर नागरिक का मनोबल बढ़ाने वाले रहे. गलवान घाटी की घटना के बाद भी देश चीन के साथ सरकार से ऐसे सलूक की अपेक्षा कर रहा है जिससे चीन को भारत की ताकत का एक बार एहसास जरूर हो.
सिर्फ ये बोल देने भर से अब काम नहीं चलने वाला कि 2020 का भारत 1962 वाला नहीं है.
आखिर मनमोहन सिंह इसी तरफ तो ध्यान दिला रहे हैं. कहा भी तो यही है - सरकार को कुछ बड़े कदम उठाने चाहिये, ताकि हमारी सीमाओं की सुरक्षा में शहीद हुए जवानों को न्याय मिल सके. सरकार ने कोई कमी छोड़ दी तो यह देश की जनता से विश्वासघात होगा.
पूर्व प्रधानमंत्री सिंह ने अपने बयान में कहा है - '15/16 जून को गलवान घाटी में भारत के 20 बहादुर जवानों ने वीरता के साथ अपना कर्तव्य निभाते हुए देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये. इस सर्वोच्च बलिदान के लिए हम इन साहसी सैनिकों एवं उनके परिवारों के प्रति कृतज्ञ हैं - लेकिन उनका यह बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए.
मनमोहन सिंह वैसी बातें तो बिलकुल नहीं कर रहे हैं जैसी सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पी. चिदंबरम, मनीष तिवारी या रणदीप सुरजेवाला कर रहे हैं. क्या मनमोहन सिंह ने खुफिया नाकामी जैसा मुद्दा उठाया है? सोनिया गांधी की तरह मनमोहन सिंह ने ये तो पूछा नहीं कि सरकार सरहद पर चल रही गतिविधियों से वाकिफ भी रही या नहीं? मनमोहन सिंह ने 'सरेंडर मोदी' जैसी अपमान जनक कोई बात तो कही भी नहीं है - तो क्या मनमोहन सिंह के ये बयान देने के लिए कि शहीदों को न्याय न मिला तो ठीक नहीं होगा - उनको उनके कार्यकाल में हुए कामों की जानकारी दी जाएगी.
ये तो प्रधानमंत्री मोदी भी मानते हैं कि यूपीए के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार के मामलों में मनमोहन सिंह 'रेनकोट' वैसे पहने हुए थे जैसे कोरोना वायरस महामारी में कोरोना वॉरियर्स PPE किट पहन कर काम कर रहे हैं.
वैसे भी मनमोहन सिंह बोलते ही कितना हैं कि उनको चुप कराने के लिए किसी को मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन ये सवाल नहीं खत्म होगा कि अगर चीन को माकूल जवाब नही दिया गया तो क्या होगा?
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