गौरी लंकेश के 3 'हत्यारे' सामने लाए गए, क्या केस को उलझाने के लिए ?
गौरी लंकेश के भाई ने कहा है उन्हें नक्सलियों से धमकी मिल रही थी. जबकि उनके दोस्त कह रहे हैं कि गौरी को बीजेपी और कांग्रेस से भी बराबर धमकियां आ रही थीं. तो इन सबसे ये मामला सुलझने की बजाए और उलझ गया है.
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कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने गौरी लंकेश की हत्या के मामले में एसआईटी जांच का आदेश दिया है. साथ ही, ये भी कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो केस सीबीआई को सौंपा जा सकता है.
गौरी की हत्या को उस कड़ी में चौथे केस के तौर पर देखी जा रही है जिसमें अब तक एमएम कलबुर्गी, गोविंद पानसरे और नरेंद्र दाभोलकर को मौत के घाट उतार दिया गया. बड़ा सवाल ये है कि गौरी लंकेश की हत्या के बाद देश भर में जो विरोध प्रदर्शन हो रहा है, क्या हालात उससे बदलेंगे या फिर कुछ दिन बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा. कम से कम तब तक जब तक फिर ऐसी कोई घटना सामने नहीं आती?
गौरी के बाद किसका नंबर है?
गौरी की हत्या से दो साल पहले, 30 अगस्त 2015 को, कन्नड़ तर्कवादी एमएम कलबुर्गी की धारवाड़ में उनके घर पर गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी. कलबुर्गी से पहले, पुणे में 20 अगस्त 2013 को नरेंद्र दाभोलकर की भी गोली मार कर ही हत्या हुई थी. अंधविश्वासों के खिलाफ लोगों को जागरुक कर रहे दाभोलकर उसके लिए कानून बनाने की भी मांग कर रहे थे. इसी तरह 16 फरवरी 2015 को कोल्हापुर में गोविंद पानसरे की हत्या कर दी गयी.
सपोर्ट में सड़कों पर उतरे लोग...
कलबुर्गी की हत्या की जांच कर्नाटक पुलिस की सीआईडी कर रही है - और अब तक इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हो सकी है. दाभोलकर मर्डर केस की जांच सीबीआई कर रही है जबकि पानसरे हत्याकांड की महाराष्ट्र की विशेष जांच टीम. दोनों ही मामलों में गिरफ्तारियां भी हुई हैं और चार्जशीट भी फाइल हो चुकी है. दोनों ही मामलों में पकड़े गये लोग कट्टर हिंदूवादी ग्रुप सनातन संस्था से जुड़े बताये जाते हैं.
गौरी की हत्या के मामले में कर्नाटक पुलिस को लगता है कि पेशेवर अपराधियों ने इस वारदात को अंजाम दिया है. गौरी लंकेश की हत्या के बाद अब आशंका जतायी जाने लगी है कि इस कड़ी में अगला नंबर किसका हो सकता है? दरअसल, इन सभी को निशाना बनाये जाने की खास वजह इनका एक खास विचारधारा के विरोध से जोड़ कर देखा जा रहा है.
खतरे को नजरअंदाज क्यों किया
गौरी लंकेश की हत्या के बाद बहस इस बात को लेकर भी छिड़ी है कि उन्हें कभी खतरे का अहसास नहीं हुआ? और अगर खतरे का अहसास हुआ तो उन्होंने कभी इसे पुलिस अधिकारियों या मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से शेयर क्यों नहीं किया?
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मानते हैं कि गौरी को कभी जान से मारने की धमकी नहीं मिली थी. इस दावे का आधार ये है कि गौरी अक्सर पुलिस के बड़े अफसरों से मिला करती थीं, लेकिन किसी से भी उन्होंने खतरे की बाबत शिकायत नहीं की.
गौरी ने सुरक्षा ली नहीं, या मिली नहीं?
मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि गौरी ने कई बार सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उनकी जान को खतरा है. ऐसी ही बात डीजीपी आरके दत्ता ने भी कही है. उनके साथ कई मुलाकातों में गौरी ने अपनी जान पर खतरे का जिक्र किया था. अब प्रशासन का कहना है कि गौरी ने कभी अपने लिए सुरक्षा मांगी ही नहीं, फिर भला उनको कैसे सुरक्षा दी जा सकती थी? वाकई, मानना पड़ेगा - क्या दलील है? अगर किसी पुलिस वाले को लगता है कि किसी की जान को खतरा हो सकता है तो क्या वो उसे सिक्योरिटी लेने की सलाह देना भी मुनासिब नहीं समझा?
लेकिन जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने जो बात बीबीसी को बताई है उससे लगता है कि ऐसी कोई बात जरूर है जो छिपायी जा रही है. कन्हैया कुमार बताते हैं, "मैं पिछली बार जब उनसे मिलने गया तो मैंने पूछा था कि आप जिस तरह काम कर रही हैं, जैसा लिखती हैं आपको ख़तरा हो सकता है. तो उन्होंने बताया कि ख़तरा बहुत ज़्यादा है. उन्होंने मुझे दिखाया कि घर में दोहरे दरवाज़े लगवाए गए थे और बाहर सीसीटीवी लगवाया था. लेकिन वो इस बात के लिए तैयार नहीं थीं कि काम नहीं करेंगी, लिखेंगी नहीं. उनका किसी राजनीतिक पार्टी से सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं था."
असल खतरा किससे था?
कन्हैया की बातों से ये तो साफ है कि गौरी को अपनी जान पर खतरे का अहसास था. पुलिस से भी बातचीत में खतरे की बात सामने आ रही है. मीडिया रिपोर्ट से भी पता चलता है कि वो जान जोखिम में डाल कर अपना काम कर रही थीं.
अब तो सवाल खड़े होते हैं - पहला, अगर खतरा था तो उन्होंने सिक्योरिटी ली नहीं, या फिर उन्हें मिली नहीं? दूसरा, गौरी को खतरा था तो किससे? ये समझने के लिए गौरी के भाई और उनकी बहन के बयान महत्वपूर्ण हो जाते हैं. गौरी की बहन कविता लंकेश से खतरे की बात की पुष्टि होती है और उनके भाई इंद्रजीत लंकेश से हत्या के मकसद के संकेत मिलते हैं.
कविता लंकेश ने पुलिस को दिये बयान में कहा है, "एक हफ्ते पहले ही गौरी बानाशंकरी स्थित मेरे घर बीमार मां को देखने आई थी. उस वक्त गौरी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थी. उसने कहा था कि कुछ संदिग्ध उसके घर के आसपास घूमते रहते हैं." कविता ने पुलिस को बताया कि खुद उन्होंने और उनकी मां दोनों ने गौरी को इस बारे में पुलिस से बात करने की सलाह दी थी, जिस पर गौरी का जवाब था कि ऐसे लोग अगर दोबारा दिखेंगे तो वो जरूर ऐसा करेंगी.
सीसीटीवी फुटेज से मालूम हुआ है कि तीन गोली मारे जाने के बाद भी गौरी जान बचाने के लिए घर की ओर भागीं हैं, लेकिन अंदर तक नहीं पहुंच सकीं. हेल्मेट पहने होने के कारण हमलावरों का चेहरा भी नहीं देखा जा सकता और जिन बाइकों से वे आये उन पर नंबर प्लेट भी नहीं थी.
अब गौरी के भाई इंद्रजीत लंकेश की बात. एनडीटीवी से बातचीत में इंद्रजीत का कहना था कि गौरी को नक्सलियों से धमकी मिली थी. इंद्रजीत के मुताबिक गौरी नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए काम कर रही थीं और कुछ मामलों में सफल भी रहीं. इंद्रजीत के अनुसार गौरी नक्सलियों के निशाने पर थीं और उन्हें धमकी भरी चिट्ठी और ईमेल आते थे.
Gauri Lankesh brother tells me yday: no threats ever received; now claims Gauri was threatened by Naxals! What changed in 24 hours?
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) September 6, 2017
गौरी लंकेश की एक दोस्त नंदना रेड्डी 'इंडियन एक्सप्रेस' में लिखे अपने कॉलम में बताती हैं - गौरी संघ और बीजेपी के साथ साथ सत्ताधारी कांग्रेस के कामकाज की बराबर आलोचक रहीं. फिर तो साफ है कि गौरी को न तो संघ के लोगों के बराबर ही कांग्रेस वाले भी नापसंद करते होंगे. बीजेपी नेताओं ने तो गौरी को कोर्ट में भी घसीट डाला जहां उन्हें सजा और जुर्माना दोनों हुआ, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिल जाने के कारण जेल नहीं जाना पड़ा. सवाल ये उठता है कि गौरी लंकेश को असली खतरा किससे था - और कौन उनसे सबसे ज्यादा खतरा महसूस कर रहा था? क्या नक्सलियों को गौरी के काम का तरीका पसंद नहीं आ रहा था? ऐसा तो नहीं कि नक्सलियों का वो धड़ा जो नहीं चाहता था कि गौरी मुख्यधारा में लौटने वाले नक्सलियों की मदद करें, वही उनसे नाराज रहा? या फिर गौरी संघ और बीजेपी नेताओं के निशाने पर थीं, जिस ओर फिलहाल हर किसी का फोकस है. लेकिन गौरी की दोस्त नंदना की मानें तो सत्ता पक्ष भी उनसे उतना ही खफा होगा जितना बाकी सारे.
कहीं ऐसा तो नहीं कि गौरी मर्डर केस में जांच की दिशा भटकाने की कोशिश की जा रही है. हत्या के पीछे कोई और है और शक की सुई किसी और तरफ मोड़ दी जा रही है!
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