गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने का किसके लिए कितना नफा नुकसान?
गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने कांग्रेस के मौजूदा हाल के लिए राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया है - और बताया है कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) मजबूरी में मूकदर्शक बनी हुई हैं... क्या गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान है?
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गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के इस्तीफे पर कांग्रेस का पहला रिएक्शन है - दुर्भाग्यपूर्ण. ऐसा रिएक्शन तभी देखने को मिलता है जब जाहिर करने वाले के मन में थोड़ा बहुत दुख का भाव भरा जरूर होता है, लेकिन जो हो चुका है उसमें वो खुद को बेबस पाता है - लेकिन कांग्रेस नेताओं के बाद के रिएक्शन देखें तो बचाव की मुद्रा में आने के बावजूद आक्रामक होने की कोशिश नजर आती है.
पांच पेज के अपने इस्तीफे में गुलाम नबी आजाद ने अपनी तरफ से सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की हर संभव तारीफ की है, लेकिन ऐन उसी वक्त राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की चुन चुन कर खामियां गिना डाली है. गुलाम नबी आजाद की बातों का लब्बोलुआब यही है कि 2014 में यूपीए के सत्ता से बाहर होने की प्रमुख वजह राहुल गांधी थे - और अब तक कांग्रेस के फिर से अपने पैरों पर खड़ा न होने देने वाले मेन विलेन भी राहुल गांधी ही हैं.
और यही वजह है कि इस्तीफे को दुर्भाग्यपूर्ण बताने के फौरन बाद कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को 'डरपोक' और 'धोखेबाज' साबित करने में जुट जाते हैं. कांग्रेस में डरपोक नेताओं की कैटेगरी असल में राहुल गांधी की ही बनायी हुई है. राहुल गांधी ने एक बार कांग्रेस नेताओं से कहा था, 'जो डरते हैं वे संघ और बीजेपी ज्वाइन कर लें - और जो निडर हैं उनको बाहर से कांग्रेस में लाइये.'
कांग्रेस में G-23 बगावत के नेता रहे गुलाम नबी आजाद का कहना है कि अपना इस्तीफा वो बहुत भारी मन से दे रहे हैं. बगावत में अपने मजबूत साथी कपिल सिब्बल का भी आजाद ने खास तौर पर जिक्र किया है, ये जताते हुए कि जो गांधी परिवार को तमाम कानूनी मुश्किलों से बचाता रहा उसके घर पर राहुल गांधी के ही गुंडों ने धावा बोल दिया था. कपिल सिब्बल सहित जी-23 के काफी सदस्य कांग्रेस छोड़ चुके हैं - और जो बचे हुए हैं सोनिया गांधी ने अलग अलग तरीके से उनको पहले ही मैनेज कर लिया है.
हाल ही में कांग्रेस में मिली कुछ खास जिम्मेदारियों के तत्काल बाद गुलाम नबी आजाद ने इस्तीफा दे दिया था - और उसी तरीके से आनंद शर्मा ने भी खुद को अलग कर लिया था. आनंद शर्मा अभी कांग्रेस में बने हुए हैं और कहा है कि हिमाचल प्रदेश चुनाव में वो पार्टी का प्रचार भी करेंगे.
गुलाम नबी आजाद ने ऐसे वक्त कांग्रेस छोड़ी है जब जोर शोर से भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी हो रही है. साथ ही, कांग्रेस के लिए एक स्थायी अध्यक्ष की मांग को भी पूरा करने की तैयारी चल रही है. हालांकि, ताजा खबर ये आयी है कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी शुभ मुहूर्त के इंतजार में थोड़े वक्त के लिए टाल दिया गया है.
सवाल ये है कि क्या गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा कांग्रेस के लिए कोई बड़ा नुकसान है? और अगर कांग्रेस के लिए नुकसानदेह है तो फायदेमंद किसके लिए है - भारतीय जनता पार्टी के लिए या फिर खुद गुलाम नबी आजाद के लिए?
आजाद ने राहुल को घेरा, कांग्रेस ने 'डरपोक' करार दिया
गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की टाइमिंग ऐसी रही कि रिएक्शन के लिए कांग्रेस को अलग से प्रेस कांफ्रेंस नहीं बुलानी पड़ी - क्या ये संयोग नहीं बल्कि गुलाम नबी आजाद का कोई प्रयोग था?
राहुल गांधी की खामियां गिनाकर गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी की तकलीफ ही बढ़ायी है!
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश के साथ प्रेस कांफ्रेंस में आये अजय माकन ने बताया भी कि वे तो दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार और शराब नीति को लेकर मीडिया से बात करने वाले थे, लेकिन वहां पहुंचते ही उनको पता चला कि गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से पूरी तरह इस्तीफा दे दिया है - और ये जानकारी भी उनको मीडिया से ही मिली.
कांग्रेस नेता ने आजाद को लड़ाई के बीच मैदान से भाग खड़े होने जैसा पेश किया, 'ये बहुत दुख की बात है कि जिस समय कांग्रेस पार्टी... राहुल गांधी के नेतृत्व में, सोनिया गांधी के नेतृत्व में... महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है... रैली करने वाली है और भारत जोड़ो यात्रा निकालने वाली है... दुख की बात है कि गुलाम नबी आजाद ने ऐसे समय में कांग्रेस पार्टी को छोड़ने और लड़ाई को छोड़ने का फैसला किया है.'
अजय माकन के मुकाबले कांग्रेस नेता जयराम रमेश थोड़े सख्त नजर आये, 'हमने वह पत्र पढ़ा है... ऐसे समय में जब कांग्रेस का हर सदस्य महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर राहुल गांधी के साथ जुड़ रहा है, उन्होंने अपना इस्तीफा दिया है.'
जैसा कि जयराम रमेश ने बताया कि उन्होंने गुलाम नबी आजाद का पत्र पढ़ा है, तो यात्रा को लेकर उनके सुझाव से वाकिफ तो होंगे ही. गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को संबोधित पत्र में लिखा है, होना तो ये चाहिये था कि भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से पहले कांग्रेस जोड़ो जैसी कोई मुहिम चलायी जाती.
क्या आजाद का जाना कांग्रेस के लिए नुकसान है?
ये समझने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी होगा कि दोनों पक्ष एक दूसरे को अपने हिसाब से कितना महत्व देते थे?
G-23 वाले पत्र से पहले कांग्रेस के अंदरूनी हालात कोई अलग नहीं थे, लेकिन उसके तत्काल बाद बदल गये - क्योंकि अशोक गहलोत से लेकर अंबिका सोनी जैसे गांधी परिवार के करीबियों ने पत्र पर दस्तखत करने वाले नेताओं पर धावा बोल दिया. सख्त एक्शन की मांग करने लगे.
गुलाम नबी आजाद को भी हैरानी इसीलिए हुई क्योंकि पत्र के कंटेंट पर चर्चा के बजाय बाकी सारी बातों पर बहस होने लगी. धीरे धीरे बागी नेताओं को हाशिये पर भेजा जाने लगा - और कई नेता कांग्रेस छोड़ कर जाने भी लगे.
गुलाम नबी आजाद के पत्र से मालूम होता है कि कांग्रेस के भीतर गड़बड़ी की शुरुआत 2013 में ही हो चुकी थी. ये तभी की बात है जब सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया था. अपने पत्र में आजाद ने राहुल गांधी को 2014 की हार से लेकर कांग्रेस की मौजूदा हालत तक के लिए जिम्मेदार साबित करने की कोशिश की है. साथ ही, सोनिया गांधी को भी 2014 से अब तक कांग्रेस की चुनावी हार गिनाते हुए ताने भी मारे हैं.
असल बात तो ये है कि कांग्रेस के लिए तो गुलाम नबी आजाद बहुमूल्य धरोहर जैसे थे, लेकिन वो बोझ की तरह ढोती आ रही थी. ऐसा शायद इसलिए क्योंकि राहुल गांधी के पैमानों पर वो फिट नहीं बैठते थे. या राहुल गांधी की जिस चापलूस टीम की तरफ आजाद ने इशारा किया है, वो उनको आउटडेटेड समझते थे.
लेकिन एक ऐसा अहम मसला भी रहा है जिस पर गुलाम नबी आजाद और राहुल गांधी का स्टैंड एक जैसा रहा है - जम्मू कश्मीर से धारा 370 का हटाया जाना. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को लेकर कांग्रेस की कार्यकारिणी में काफी बहस भी हुई थी.
बैठक में गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के स्टैंड के बारे में समझा रहे थे और पी. चिदंबरम उसका विरोध कर रहे नेताओं को समझाने की कोशिश कर रहे थे - और तब राहुल गांधी और गुलाम नबी आजाद आपस में पूरी तरह सहमत देखे गये. प्रियंका गांधी वाड्रा भी राहुल गांधी के साथ डटी रहीं, लेकिन जनता की भावनाओं की दुहाई देकर विरोध करने वाले नेताओं को गांधी परिवार का कोपभाजन बनना पड़ा था.
ये भी देखा गया कि सोनिया गांधी से प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ के दौरान गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को प्रेस कांफ्रेंस के लिए बुलाया गया था - और आजाद ने सरकार से कड़े शब्दों में सवाल भी पूछा था. ये कहते हुए कि जंग में भी महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता जैसा सोनिया गांधी के साथ हो रहा है.
जिस तरीके से कांग्रेस की मौजूदा लड़ाई का जिक्र कर कांग्रेस नेता प्रेस कांफ्रेंस में आजाद के इस्तीफे के फैसले को पेश करने की कोशिश की, लगता तो ऐसा ही है कि कांग्रेस को उनकी काफी जरूरत थी - लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को आगे बढ़ कर आजाद के प्रति अपनी भावनाएं जाहिर करनी चाहिये थी.
आखिर आजाद ने कांग्रेस के लिए एक स्थाई अध्यक्ष की ही तो मांग की थी. ये ठीक है कि वो अपनी राज्य सभा सदस्यता के खत्म होने को लेकर भी चिंतित थे और फिर से न राज्य सभा न भेजे जाने के कांग्रेस के रुख से नाराज भी.
बेशक गुलाम नबी आजाद के लिए उम्र के इस पड़ाव पर पार्टी छोड़ना जोखिम भरा है - और कांग्रेस में राहुल गांधी के साथी भले ही बोझ समझ रहे हों, लेकिन कपिल सिब्बल का वो ट्वीट एक बार फिर प्रासंगिक लगने लगा है जो वो कांग्रेस नेता रहते पोस्ट किये थे.
Worried for our party Will we wake up only after the horses have bolted from our stables ?
— Kapil Sibal (@KapilSibal) July 12, 2020
आजाद के सामने चुनौतियां और अवसर
गुलाम नबी आजाद के साथ ये प्लस प्वाइंट है कि वो जम्मू-कश्मीर से आते हैं और 2019 के बाद से इस केंद्र शासित क्षेत्र की अहमियत काफी बढ़ी हुई है. लेकिन ये भी उनको मालूम होगा ही कि कांग्रेस छोड़ने के बाद एसएम कृष्णा का कर्नाटक की राजनीति में क्या हाल हुआ और टॉम वडक्कन का केरल में क्या हाल है?
कुछ सवाल हमेशा होते हैं. ऐसे सवाल जिनके जवाब नहीं मिलते. फिर भी पूछे जाते हैं. नहीं भी पूछे जाते हैं तो मन में आते ही हैं. ऐसा ही एक सवाल है कि अगर कांग्रेस में गुलाम नबी आजाद को घुटन हो रही थी तो अब तक क्यों झेलते रहे? आजाद ने ये फैसला इतनी देर से क्यों लिया? जब तक वो राज्य सभा में कांग्रेस के नेता रहे तब तक ऐसी कोई शिकायत बाहर क्यों नहीं आयी? और ये ऐसे सवाल हैं जो उठाये तो जा सकते हैं, लेकिन जवाब कभी व्यावहारिक नहीं होते.
फिर भी आजाद का ऐसे वक्त कांग्रेस छोड़ना जब उनको प्रेस कांफ्रेंस के लिए कांग्रेस दफ्तर में बुला कर मैसेज देने की कोशिश की गयी. मतलब, ये भी रहा कि अशोक गहलोत और भूपेश बघेल से काम नहीं चल रहा था - और मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस नेतृत्व को गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे नेताओं की अहमियत समझ में आ चुकी थी.
ऐसे समय जब कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ा होने की नये सिरे से कोशिश कर रही है, आजाद ने कांग्रेस क्यों छोड़ी है? कुछ तो सोचा ही होगा - आगे का प्लान क्या है? जयराम रमेश के ट्वीट से तो लगता है कांग्रेस अभी से आजाद को प्रधानमंत्री मोदी के आभामंडल से प्रभावित मानने लगी है.
A man who has been treated by the greatest respect by the Congress leadership has betrayed it by his vicious personal attacks which reveals his true character. GNA's DNA has been modi-fied.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 26, 2022
क्या गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की वजह कांग्रेस के नये अध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी हो सकती है. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया टाले जाने वाले अपडेट से पहले ये खबर भी आयी थी कि अगर अशोक गहलोत मैदान में उतरते हैं तो उनके खिलाफ आजाद खेमे से भी किसी को खड़ा किया जा सकता है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि गुलाम नबी आजाद ने अपने पत्र में लिखा है, 'कांग्रेस को चलाने के लिए एक और कठपुतली की तलाश हो रही है.'
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