महागठबंधंन को लेकर परीक्षा नीतीश की, टेंशन में लालू हैं
महागठबंधन अब ऐसे भंवर में फंस गया है वहां से निकलने के लिए कुछ लोगों की बली चढ़ानी पड़ सकती है. सीबीआई के द्वारा बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर एफआईआर करना इसका सबसे बड़ा कारण बनने जा रहा है.
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बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की मिसाल पेश कर रही बिहार की महागठबंधन की सरकार अब पलीता लग गया है. महागठबंधन अब ऐसे भंवर में फंस गया है वहां से निकलने के लिए कुछ लोगों की बली चढ़ानी पड़ सकती है. सीबीआई के द्वारा बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर एफआईआर करना इसका सबसे बड़ा कारण बनने जा रहा है. भ्रष्टाचार के मामले में दर्ज सीबीआई के केस में हालांकि आरजेडी सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री राबडी देवी भी हैं. पर आरजेडी को सबसे ज्यादा झटका तेजस्वी का नाम इसमें शामिल होने से लगा है.
तेजस्वी यादव आरजेडी के उभरते हुए नेता हैं और माना जा रहा है कि आरजेडी सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव के उत्तधिकारी बनने की क्षमता है उनमें में, लेकिन भ्रष्ट्राचार के मामले में सीबीआई की इस एफआईआर से तेजस्वी यादव के करियर पर ब्रेक लग सकता है. नेताओं पर केस होना कोई नई बात नहीं है खुद लालू प्रसाद यादव चाराघोटाले मामले में सीबीआई के अभियुक्त हैं, लेकिन लालू प्रसाद यादव पर जब केस हुआ उस समय वो एक मुकाम पर थे पर तेजस्वी यादव की तो ये शुरूआत है. ऐसे में सीबीआई केस का दाग लगना करियर के लिए अच्छी बात नहीं है.
तेजस्वी यादव पर केस होने के पीछे आरजेडी चाहे जो राजनैतिक कारण बताये, लेकिन वो एक ऐसे मुख्यमंत्री के मंत्रिमंडल के सदस्य है जो इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता है. बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हो रही है. तेजस्वी यादव उन्हीं के मंत्रिमंडल के सदस्य है जिन पर सीबीआई ने भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया है. नीतीश कुमार दागी मंत्रियों को अपने मंत्रिमंडल में पसंद नहीं करते. कई उदाहरण है इसके पर ये केस आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव पर है. ये आम मंत्री पर हुआ केस नहीं है. केस उस व्यक्ति पर है जो महगठबंधन के सबसे बड़े दल के नेता का बेटा है. ऐसे में फैसला लेना कोई आसान नहीं है. तभी तो सीबीआई की कार्रवाई के इतने दिन बीतने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुप हैं, वो चुप हैं तो पूरा जनता दल यूनाइटेड चुप है.
हांलाकि, सीबीआई की कार्रवाई को लेकर कई राजनैतिक दलों ने लालू प्रसाद यादव को सपोर्ट किया है. लेकिन नीतीश कुमार के लिए मुश्किल ये है कि वो भ्रष्टाचार से समझौता नहीं कर सकते. नोटबंदी का समर्थन इसका उदाहरण है उन्होंने नोटबंदी का समर्थन ही नहीं किया बल्कि बेनामी सम्पति पर भी हमला करने के लिए केन्द्र सरकार से अपील की. ऐसे में बेनामी सम्पति के मामले में वो तेजस्वी यादव का बचाव कैसे कर सकते हैं. माना कि वो उनके मंत्रिमंडल के उपमुख्यमंत्री है आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेटे हैं. लेकिन इनसब के बीच में देश में विपक्षी एकता को एकजुट करने की मुहिम को कड़ा धक्का लगा है.
राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के अलग-अलग रूख के कारण इस एकता में डेन्ट पहले ही पड़ चुका है रही सही कसर सीबीआई के इस केस ने पूरी कर दी है. हांलाकि, लालू प्रसाद यादव के समर्थक मानते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार के पक्ष माहौल बनाने में लालू प्रसाद यादव सबसे आगे थे और इसी कारण चुनाव से ठीक पहले ये कार्रवाई की गई है लेकिन यह सिर्फ एक आरोप है. लालू प्रसाद यादव पर बेनामी सम्पति रखने का आरोप पिछले तीन महीनों से लग रहा है.
नीतीश कुमार ने पिछले दिनों ही कहा था कि देश में 2019 के चुनाव के लिए केवल विपक्षी एकता से काम नहीं चलेगा बल्कि इसके लिए ऐजेन्डा तय करना होगा. केवल नाकारात्मक राजनीति नहीं बल्कि अपने लिए विपक्ष टारगेट फिक्स करे और इसके लिए सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को आगे आना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि राष्ट्रपित चुनाव में रामनाथ कोविंद को व्यक्ति के कारण समर्थन दे रहें है बीजेपी की वजह से नहीं.
पर अब ताजा हालात में बिहार की महागठबंधन की सरकार में ही पलीता लग गया है. इस भंवर से निकलने के बाद ही देश में विपक्षी एकता पर चर्चा होगी. हांलाकि, आरजेडी हो या जनता दल यूनाइटेड दोनों पार्टियां ये कहने से पीछे नहीं हट रही है कि महागठबंधन एकजुट है. लेकिन क्या ये एकजुटता इस केस में चार्जशीट दायर होने के बाद भी रहेगी. रह भी सकती है अगर आरजेडी चाहे तो, लेकिन इसके लिए कुर्बानी देनी होगी.
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