तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो... क्या गम है जिसको...
यूपी में चुनाव प्रचार के दौरान कई नेताओं के तौर तरीकों में बदलाव महसूस किया जा रहा है. मायावती अब जहां अक्सर मुस्कुराती नजर आ रही हैं, वहीं राहुल गांधी का गुस्सा देखने को लोग तरस जा रहे हैं.
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दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सभा में एक किसान ने आत्महत्या कर ली थी. बाद में आज तक पर किसान गजेंद्र सिंह की बेटी से जब आप नेता आशुतोष का सामना हुआ तो वो फूट फूट कर रोने लगे. आशुतोष को रोते हुए पूरे देश ने लाइव देखा. तब आप नेताओं पर आरोप था कि किसी ने गजेंद्र को बचाने की कोशिश नहीं की.
किसी नेता के रोने का ये कोई पहला वाकया नहीं था. बहुत से नेताओं को ऐसे रोते धोते देखा गया है. ऐसा क्यों लगता है कि नेताओं में स्वत: स्फूर्त नहीं होता. आखिर नेता भी तो इंसान ही होते हैं.
यूपी में चुनाव प्रचार के दौरान कई नेताओं के तौर तरीकों में बदलाव महसूस किया जा रहा है. मायावती अब जहां अक्सर मुस्कुराते नजर आ रही हैं, वहीं राहुल गांधी का गुस्सा देखने को लोग तरस जा रहे हैं.
कहां गया वो गुस्सा...
पिछले चुनावों में राहुल गांधी अक्सर गुस्से में नजर आते थे. बात बात पर उन्हें कमीज की आस्तीन चढ़ाते सरेआम देखा जा सकता था. हाव भाव से भी वो बेहद एग्रेसिव नजर आते रहे.
फरवरी 2012 का एक वाकया है. हो सकता है कुछ लोग भूल गये हों. राहुल गांधी एक चुनावी मंच पर पहुंचे तो उनके हाथ में कुछ कागज दिये गये. गुस्से से लाल होते राहुल गांधी ने पूरे फिल्मी स्टाइल में कागज के टुकड़े टुकड़े कर दिये. यह समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र था. अक्सर पर्दे पर दिखने वाले एंग्री यंग मैन को साक्षात देखना लोगों को अच्छा लगा - और उन्होंने खूब ताली बजायी. उस सभा के पहले भी और कुछ बाद की सभाओं में भी राहुल का तकरीबन एक जैसा ही अंदाज देखने को मिला.
आपको गुस्सा क्योें नहीं आता?
एक दिन वो भदोही पहुंचे. राहुल गांधी ने लोगों से मुलाकात की. किसानों की हालत देख उन्हें जोर का गुस्सा आया. लोगों ने राहुल से बिजली, सड़क और पानी से लेकर भ्रष्टाचार तक की शिकायतें कीं तो उनका गुस्सा और बढ़ गया, बोले "जब मैं यहां आकर प्रदेश की बदहाली देखता हूं तो मुझ्झे बहुत गुस्सा आता है, क्या आप लोगों को नहीं आता?"
चुनावों में राहुल के इस गुस्से का नतीजा उल्टा हुआ. वो गुस्से को मनोरंजन के तौर पर लिये. लोगों ने ताली कहीं और बजाई और बटन कहीं और दबा दिया.
वो गुस्सा कहां गया?
लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. वो पिता राजीव गांधी की तरह मुस्कुराते और हाथ हिलाते नजर आते हैं. आजकल तो हाथों में हाथ डाले भी - क्योंकि यूपी को साथ पसंद है.
इतना जो मुस्कुरा रहे हो...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नियमित तौर पर योग का अभ्यास करते हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कभी विपश्यना तो कभी कुछ न कुछ करते ही रहते हैं. क्या मायावती भी ऐसा कुछ करने लगी हैं?
मायावती में ये तब्दीली शायद 2012 और उसके बाद 2014 के लोक सभा चुनाव में सिफर पर पहुंच जाने के बाद आई है. तब उनका सोशल इंजीनियरिंग फेल हो गया. दलित-ब्राह्मण गठजोड़ के नाकाम होने पर अब वो दलित-मुस्लिम गठजोड़ खड़ा करने में जुटी हैं. तभी तो पिछली बार के मुकाबले इस बार डेढ़ गुना मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किये हैं.
हंसना जरूरी है...
एक वो भी दौर था जब सिर्फ मायावती के लिए एक ही कुर्सी रखी जाती थी. बाकी सभी लोग अमूमन खड़े होते. जो चाहते जमीन पर बैठ सकते थे. मीडिया के सामने भी वो प्रेस नोट लेकर आतीं. माइक के सामने कभी अटक कर तो कभी बिना अटके पढ़तीं और चुपचाप उठ कर चली जातीं. लेकिन अब? अब वो सवालों के जवाब भी हंस हंस कर देती हैं. कभी कभी मजाक भी कर लेती हैं. सहयोगियों के साथ मंच भी शेयर करती हैं. पार्टी दफ्तर में भी अब एक से ज्यादा कुर्सियां रखी जाने लगी हैं.
ये बात तो कार्यकर्ताओं को भी नहीं मालूम लेकिन वो व्यवहार में आई तब्दीली जरूर महसूस कर रहे हैं. कुछ बोलते नहीं ये बात अलग है.
जाने कहां गये वो दिन...
सबसे ज्यादा बदलाव तो शिवपाल यादव में देखने को मिल रहा है. अधिकारियों और कार्यकर्ताओं की मीटिंग ही नहीं, कई बार तो पब्लिक मीटिंग में भी लगता जैसे लोगों को डांट ही पिला रहे हों.
जब भी लोगों के बीच होते हैं दिल का दर्द जबां पर यूं ही आ जाता है. एक चुनावी मीटिंग में शिवपाल कुछ इस तरह भावनात्मक अपील करते हैं, "मैं जिन हालात से गुजर रहा हूं, आप लोग बहुत अच्छे से वाकिफ हो. मैं चुनाव नहीं लड़ रहा हूं, धर्म युद्ध लड़ रहा हूं. मेरा मान-सम्मान आप लोगों के हाथ में है. उसकी रक्षा करना. पहले से कहीं ज्यादा वोटों से जिता देना, ताकि मैं विरोधियों को जवाब दे सकूं."
क्या से क्या हो...
अब तो जिस सभा में भी जाते हैं शिवपाल यादव खुद को पीड़ित बताते हैं, "कई मंत्री तो ऐसे हैं, जिन्होंने कभी कोई काम नहीं किया, लेकिन उन्हें नहीं हटाया गया. सही काम करने वाले मंत्रियों की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी गई. मैंने हमेशा गलत कार्यों का विरोध किया और उसका परिणाम क्या हुआ, यह आपको पता ही है."
शिवपाल के बॉडी लैंग्वेज में हनक और ठसक के गवाह लोग अब उन्हें बदला हुआ देख हैरान हैं. हालांकि, शिवपाल में आये बदलाव की वजह राहुल गांधी और मायावती से अलग है.
वक्त अच्छे अच्छों को बदल देता है. राजनीति में ऐसा वक्त चुनाव का दौर ही होता है.
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