गुजरात दंगों के पीड़ित को आखिर अमित शाह के खिलाफ लड़ने की जरूरत क्यों पड़ी?
गुजरात दंगों के पीड़ित फिरोज़ खान पठान अमित शाह के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर एक अजीब बात चल रही है जो उनकी चुनावी मंशा पर ही सवाल उठा रही है.
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गुजरात यानी भाजपा को गढ़ में एक नई लड़ाई शुरू हुई है. ये लड़ाई है 2002 में गुलबर्ग सोसाइटी कत्लेआम में बच गए दो भाइयों की और भाजपा की. यहां बात हो रही है इम्तियाज़ पठान और फिरोज़ खान पठान की. ये दोनों ही अब राजनीति में आ चुके हैं और खेड़ा और गांधीनगर लोकसभा सीटों से अपना नामांकन भर चुके हैं.
इम्तियाज़ पठान जो अपना देश पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं उनका चुनाव चिन्ह प्रेशर कुकर है और फिरोज़ खान पठान भाजपा चीफ अमित शाह के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. अब अगर किसी का सवाल है कि ऐसा क्यों और इसमें खास क्या है तो मैं आपको बता दूं कि ये दोनों भाई गुजरात दंगा पीड़ित हैं और गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में इनके परिवार के 10 लोग मारे गए थे. ये वही हत्याकांड था जिसमें कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी मारे गए थे. फिरोज़ खान पठान असल में एहसान जाफरी के पड़ोसी ही थे.
फिरोज़ शाह वेजलपुर के रहने वाले हैं जो गांधीनगर संसद क्षेत्र का हिस्सा है और उनके भाई इम्तियाज़ शहर के गोमतीपुर इलाके में रहते हैं. अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी पर जब भीड़ ने हमला किया था तो इस परिवार के 10 लोग मारे गए थे. उन लोगों में फिरोज़ की मां भी शामिल थीं.
अमित शाह के खिलाफ चुनाव लड़ने के पीछे क्या राज़ है ये तो फिरोज़ ने नहीं बताया, लेकिन उनका कहना है कि वो गुजरात दंगा पीड़ितों के लिए कुछ करना चाहते हैं.
क्या कहना है पठान भाईयों का?
इम्तियाज़ जो गुलबर्ग सोसाइटी केस में अहम गवाह हैं उनका कहना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सरकारों ने दंगा पीड़ितों के लिए कुछ नहीं किया. वहीं फिरोज़ पठान का कहना है कि जो एनजीओ दंगा पीड़ितों के लिए काम कर रहा था उसने भी धोखा दिया. यहां तक कि उन्होंने सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सेताल्वाड और उनके पति जावेद आनंद के खिलाफ केस भी किया है. उनपर ये इल्जाम लगाया गया है कि उन्होंने दंगा पीड़ितों के लिए इकट्ठा किए गए पैसों का गलत इस्तेमाल कर लिया.
फिरोज़ कहते हैं कि 2002 से लेकर अभी तक उन्हें न्याय नहीं मिला है. वो अभी भी उसके लिए लड़ रहे हैं. उन्हें NGO का सपोर्ट मिला था, लेकिन वहां भी धोखाधड़ी ही हुई. यही कारण है कि मैंने चुनाव लड़ने का सोचा. अगर 2.5 लाख दलित और 3 लाख मुस्लिम वोटर हमें वोट दें तो ऐसा हो सकता है कि कांग्रेस और भाजपा को हराया जा सके.
हालांकि, उनका ये भी कहना है कि उनके हिंदू दोस्त उन्हें सपोर्ट कर रहे हैं. उन्होंने सौहाद्र और भाईचारे की बात भी की. उनका कहना है कि ऐसा कोई मुस्लिम एमपी नहीं जो उनकी बात सुन सके और उनके लिए आवाज़ उठाए. कांग्रेस लीडर अहमद पटेल से भी उन्हें कोई उम्मीद नहीं. उनके हिसाब से पूर्व कांग्रेस एमपी एहसान जाफरी अगर होते तो बात होती, वो अकेले थे जो उनके लिए काम कर रहे थे.
फिरोज़ ने तो अपने चुनाव लड़ने का यही कारण बताया. 28 फरवरी 2002 को उस कालोनी में 68 लोग मारे गए थे और फिरोज़ उनके हक के लिए ही काम करना चाहते हैं.
फिरोज़ भले ही लोगों की सेवा के लिए वोट मांग रहे हैं, लेकिन उन्होंने कोई कैंपेन नहीं की है और साथ ही स्थानीय स्तर पर उनके लिए एक बात चल रही है कि उन्हें भाजपा की तरफ से ही रखा गया है ताकि कांग्रेस के वोट काटे जाएंग. सिर्फ स्थानीय स्तर पर नहीं बल्कि लोगों ने तो सोशल मीडिया पर भी इस तरह की बातें शुरू कर दी हैं.
सोशल मीडिया पर फिरोज़ खान पठान को लेकर लोग इस तरह की बातें भी कर रहे हैं.
फिरोज़ खान पठान का सपोर्ट करने वाले भी कई लोग हैं और सोशल मीडिया पर जब से ये खबर आई है तब से ही उन्हें बधाई देने वालों की भी कमी नहीं रही है, लेकिन साथ ही ये सच भी है कि अगर फिरोज़ खान के पास वाकई इतने सपोर्टर हैं तो ये कांग्रेस के वोट काटने की बात तो हो ही सकती है. गुजरात में 23 अप्रैल को वोटिंग हो चुकी है और अब देखना ये है कि फिरोज़ खान पठान की उम्मीदवारी 23 मई को क्या रंग लाती है.
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