हाफिज सईद का 'आतंकी' स्टेटस अब बदल गया है
इस चुनाव में सबसे दिलचस्प बात ये रही कि आतंकी हाफिज सईद को पाकिस्तान की जनता ने सिरे से खारिज कर दिया. जहां एक ओर भारत में लोगों को यह बात खुश कर रही है, वहीं दूसरी ओर हमें ये समझ लेना चाहिए कि भारत के लिए खतरा टला नहीं है.
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पाकिस्तान के चुनाव में लोगों ने इमरान खान पर अपना भरोसा दिखाते हुए उन्हें दिल खोलकर वोट दिए हैं. इसी का नतीजा है कि इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. ये तो तय है कि इमरान खान ही प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन इसके लिए उन्हें पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज या पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के साथ गठबंधन करना होगा. इस चुनाव में सबसे दिलचस्प बात ये रही कि आतंकी हाफिज सईद को पाकिस्तान की जनता ने सिरे से खारिज कर दिया. उनकी पार्टी के उम्मीदवारों ने कुल 265 सीटों से चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो सकी. जहां एक ओर भारत में लोगों को यह बात खुश कर रही है, वहीं दूसरी ओर हमें ये समझ लेना चाहिए कि भारत के लिए खतरा टला नहीं है. कल तक तो पाकिस्तान का एक नागरिक और आतंकी हुआ करता था, अब उसने पाकिस्तान की राजनीति में कदम रख दिया है और एक नेता बन चुका है.
पहले से ज्यादा बड़ा है ये खतरा
26/11 मुंबई हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद पाकिस्तान के लिए कितना खतरनाक है ये तो चुनाव आयोग भी समझ चुका है. इसीलिए उसने हाफिज की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग को एक राजनीतिक पार्टी के रूप में रजिस्टर करने से मना कर दिया. लेकिन हाफिज ने इसका भी तोड़ निकाल लिया और उसने अपने 265 उम्मीदवारों को पहले से ही चुनाव आयोग में रजिस्टर 'अल्लाह-हु-अकबर तहरीक' पार्टी के बैनर तले चुनावी मैदान में उतार दिया. अब भले ही हाफिज का कोई भी उम्मीदवार न जीता हो, लेकिन पाक निजाम ने उसे एक आतंकी से नेता तो बना ही दिया है. हाफिज सईद भारत सहित पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा है, वहीं पाकिस्तान में उसे 'जननायक' का दर्जा प्राप्त हो चुका है.
आतंक मुक्त देश होगा पाकिस्तान?
हाफिज सईद की करारी शिकस्त और इमरान खान पर लोगों का भरोसा ये दिखाता है कि जनता आतंक से मुक्ति चाहती है. हाफिज के माथे पर आतंकी होने का कलंक है. उसे सिर पर अमेरिका ने ईनाम तक रखा हुआ है. खुद पाकिस्तान में भी उसे प्रतिबंधित करने को लेकर कुछ लोग कानून बनाने के पक्ष में थे. एक ओर है हाफिज की आतंकी छवि और दूसरी ओर है इमरान खान का वो वादा जो उन्होंने पाकिस्तान की जनता से किया था. इमरान खान ने चुनावों से काफी पहले ही ये कह दिया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो पाकिस्तान से 90 दिनों में आतंकवाद खत्म कर दिया जाएगा. नए पाकिस्तान में दहशतगर्दी के लिए कोई जगह नहीं होगी. भले ही हाफिज कितनी भी बार कहे कि भारत को खत्म करने जैसे बयान देता रहे, लेकिन उसकी आतंकी छवि अधिकतर लोग समझ चुके हैं और उससे दूर रहना चाहते हैं. अब इमरान खान की सरकार तो सत्ता में आना तय है, लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि वो हाफिज के खिलाफ कोई एक्शन लेते हैं या वो भी भारत के खिलाफ किसी जंग का ऐलान करते हुए हाफिज को भारत के खिलाफ किसी मिशन पर लगा देते हैं.
पाकिस्तान का पर्याय बन चुका है आतंक
भले ही पाकिस्तान की जनता ने हाफिज के एक भी उम्मीदवार को नहीं जिताया, लेकिन इस चुनाव में कई आतंकियों ने भी चुनाव लड़ा है. खुद हाफिज सईद के बेटे और दामाद ने इस चुनाव में हिस्सा लिया, जो दिखाता है कि पाकिस्तान से आतंक को अलग करना बेहद मुश्किल काम है. पाकिस्तान से आतंक तब तक खत्म नहीं हो सकता, जब तक पाकिस्तानी लोगों के दिलों-दिमाग से भारत को दुनिया के नक्शे से मिटाने का सपना ना निकल जाए. पैदा होने के साथ ही पाकिस्तान में बच्चों को सिखाया जाता है कि भारत उनका दुश्मन है और यही विचारधारा आगे चलकर हाफिज जैसे आतंकी पैदा करती हैं. हाफिज का रुतबा कितना है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि लाहौर उच्च न्यायालय ने एक बार पाकिस्तानी सरकार को यह दिशा-निर्देश तक जारी कर दिए थे कि हाफिज सईद को परेशान न किया जाए और सरकार उसे सामाजिक कल्याण से जुड़े काम करने की छूट दे. अब हाफिज ने मुंबई में हमला करके कौन सा सामाजिक कल्याण किया ये तो लाहौर उच्च न्यायालय के जज ही बता सकते हैं.
पाकिस्तान में लोगों ने हाफिज को क्यों नकारा, इसके कई कारण हैं. पाकिस्तान में फल-फूल रहे आतंकवाद से जब तक दूसरे देशों का नुकसान होता रहा, तब तक को पाकिस्तान ने भी आतंक के खात्मे के बारे में नहीं सोचा. लेकिन जब पेशावर में मासूम बच्चों की निर्मम हत्या की गई तो उसने आतंक का असली चेहरा सामने ला दिया. इन आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता, इन्हें सिर्फ दहशत फैलानी होती है, चाहे उसके लिए मासूम बच्चों की ही कुर्बानी क्यों न देनी पड़े. पेशावर में स्कूल पर हुए आतंकी हमले ने तो लोगों को झकझोरा ही, उसके बाद भी हाल ही में चुनावी रैलियों में बम धमाकों ने भी लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया. यहां तक कि चुनाव के दिन बलूचिस्तान के क्वेटा में भी आतंकियों ने हमला किया, जिसमें करीब 30 लोगों की मौत हो गई.
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