प्रधानमंत्री कोई भी बने - भारत को तो मुशर्रफ जैसी हुकूमत से ही डील करनी होगी
पाकिस्तान में चुनाव बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जो भी बैठे, पूरी संभावना है कि उसका रवैया नॉन-स्टेट एक्टर्स जैसा ही होगा. नाम कुछ भी हो सकता है. मूल बात ये है कि भारत को एक बार फिर मुशर्रफ जैसी फौजी हुक्मत से डील करनी पड़ेगी.
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पाकिस्तान में चुनाव तो क्रिकेट जैसा ही होता है, इस उसकी भूमिका कुछ ज्यादा जरूर लगती है. एक वजह तो ये भी है कि जिसका पलड़ा ज्यादा भारी माना जा रहा है, वो शख्स पाकिस्तान क्रिकेट टीम का कामयाब कप्तान रह चुका है - इमरान खान. अगर क्रिकेट की जबान में ही भारत और पाकिस्तान के चुनावों की तुलना करें तो भारत में चुनाव अब भी टेस्ट सीरीज की तरह होते हैं, जबकि पाकिस्तान में 20-20 - और कोई सीरीज नहीं एक ही दिन में फटाफट फैसला. चट मंगनी, पट ब्याह. दिन में वोट, शाम से गिनती और रात में रिजल्ट. वो भी तब जबकि चुनाव EVM नहीं बल्कि अब भी बैलट पेपर से हो रहे हैं. भारत में तो अभी एक साथ चुनाव को लेकर बहस ही चल रही है.
चुनाव में जीत किसी की भी हो, समझने वाली बात ये है कि भारत को अब ज्यादा अलर्ट रहना ही होगा. अब प्रधानमंत्री मोदी के लिए भी किसी विदेश यात्रा से लौटते वक्त बर्थडे की बधाई देने जैसा मौका मिल पाएगा, गुंजाइश बहुत ही कम लगती है. बल्कि, देखा जाये तो अब नॉन-स्टेट एक्टर्स से ही बात करनी होगी - और मजे की बात ये है कि प्रधानमंत्री का नाम इमरान खान हो या कुछ और फर्क नहीं पड़ता. मुद्दे की बात ये है कि भारत के सामने एक बार फिर परवेज मुशर्रफ जैसे ही फौजी हुक्मत से डील करने की मजबूरी होगी.
जिन्हें खुद जीतने का भरोसा नहीं उससे क्या उम्मीद की जाये
किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी ये सवाल तो बाद में आएगा, पहला सवाल तो ये है कि कौन उम्मीदवार कितनी सीटों से जीतेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद के दावेदार किसी भी उम्मीदवार को खुद के ही चुनाव जीतने का यकीन नहीं लगता.
पाक चुनाव में प्रधानमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार इमरान खान को माना जा रहा है, लेकिन अपनी जीत को लेकर सबसे कम आश्वस्त वही लग रहे हैं. अगर ऐसा न होता तो चुनाव लड़ने के लिए तो ज्यादा से ज्यादा दो सीटें काफी होती हैं, लेकिन इमरान खान सबसे ज्यादा पांच सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं - बन्नू, इस्लामाबाद - 2, मियांवाली - 1, लाहौर - 9 और कराची ईस्ट - 2.
इमरान की ही तरह प्रधानमंत्री पद के दावेदार पाकिस्तानी मुस्लिम लीक (नवाज) के शहबाज शरीफ हैं. पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ पांच तो नहीं लेकिन चार जगहों से जरूर चुनाव मैदान में हैं - कराजी वेस्ट - 2, लाहौर - 10, स्वात - 2 और डेरागाजी खान - 4. शहबाज शरीफ ही फिलहाल पीएमएल-एन के मुखिया हैं.
बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभानअल्लाह. दावेदारों में सबसे कम उम्र के बिलावल भुट्टो जरदारी भी हैं, महज 29 साल के. बिलावल पाकिस्तान की तीन सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं - मालाकंद, लरकाना - 1 और ल्यारी. बिलावल पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बेटे हैं.
Voted! Every vote counts. #DemocracyistheBestRevenge pic.twitter.com/81iq5xSDWy
— BilawalBhuttoZardari (@BBhuttoZardari) July 25, 2018
पाकिस्तान में भी नियम वही है - कोई भी उम्मीदवार जीतने के बाद एक ही सीट अपने पास रख सकेगा. बाकी सीटों से इस्तीफा देना ही होगा.
प्रधानमंत्री का नाम खान, शरीफ, भुट्टो या सईद कुछ भी क्यों न हो
चुनाव में इमरान खान खुद को बाकी सियासी पार्टियों से अलग पेश करने की कोशिश कर रहे हैं और चुनाव जीतने पर 'नया पाकिस्तान' बनाने का दावा कर रहे हैं.
नवाज शरीफ के पाकिस्तान आकर गिरफ्तारी देने का फायदा ये जरूर हुआ है कि लड़ाई से बाहर होती उनकी पार्टी फिर से मैदान में डट गयी है. ऐसा भी नहीं कि पीएमएल-एन के चुनाव जीतते ही नवाज शरीफ और उनकी बेटी जेल से बाहर निकल जाएंगे. हां, ये जरूर है कि संघर्ष के मुश्किलात कुछ आसान जरूर हो जाएंगे. जेल में कम से कम नवाज शरीफ के वकीलों की दलील सुनी तो जाएगी - और नवाज शरीफ का भी तो यही कहना है कि अगर उनकी बातें सुन ली जाएं तो केस में जरा भी दम नहीं है. बल्कि, मरियम शरीफ का फ्रॉड केस ज्यादा गंभीर है.
पाकिस्तान का चुनाव आयोग रंग तो भारत में टीएन शेषन के जमाने जैसा दिखा रहा है, लेकिन वो भी कदम वही उठा रहा है जो फौज मन भाये. सुरक्षा के नाम पर बूथों के भीतर तक फौज को तैनात कर दिया है. अब कोई उसे हाथी के खाने या दिखाने वाले दांत जो भी समझे - हाफिज सईद की पार्टी को आयोग ने चुनाव लड़ने की इजाजत तो नहीं ही दी है. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कुल 342 सीटें हैं. 70 सीटें रिजर्व कैटेगरी की हैं - 60 महिलाओं के लिए और 10 अल्पसंख्यकों के हिस्से की. बाकी बची 272 सीटों में बहुमत के लिए सिर्फ 137 सीटें जीतनी जरूरी हैं. पाकिस्तान के साथ ही मुल्क के चार प्रांतों - पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में भी नई सरकारें चुन कर आनी हैं. देश में न सही, पंजाब में नवाज की पार्टी सत्ता में वापसी की उम्मीद जरूर कर रही होगी.
Lahore: PML-N President Shehbaz Sharif stand in a queue outside a polling station in Model Town to cast his vote for #PakistanElections2018 pic.twitter.com/d6AErF3LSv
— ANI (@ANI) July 25, 2018
मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद भले ही खुद चुनाव मैदान में न हो या किसी को टिकट न दिया हो, लेकिन उसके बेटे हाफिट तल्हा और दामाद खालिद वलीद सहित 260 ऐसे उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं जिन्हें उसका सपोर्ट हासिल है. इन्होंने 'अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक' के उम्मीदवार के रूप में नॉमिनेशन फाइल किया है. फर्ज कीजिए 260 में से 137 उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं या फिर सबसे बड़े ग्रुप के तौर पर उभरते हैं तो प्रधानमंत्री पद का रास्ता मुश्किल नहीं रह पाएगा. फिर तो बड़े आराम से हाफिज सईद पीएम बन जाएगा और पाकिस्तान के न्यूक्लियर सेंटर की मास्टर की उसके हाथ लग सकती है.
Lashkar-e-Taiba chief and Mumbai 26/11 attacks mastermind Hafiz Saeed casts his vote at a polling booth in Lahore. #PakistanElections2018 pic.twitter.com/nKdXt3kQZA
— ANI (@ANI) July 25, 2018
ऐसे बेहद खतरनाक हालात में भारत को बहुत ही अलर्ट मोड में रहना होगा - और नौबत भले न आये सर्जिकल स्ट्राइक से भी कहीं आगे की तैयारी के साथ 24x7 मुस्तैद रहना होगा.
1. कारगिल अलर्ट जरूरी है: बदलती दुनिया के बदले हालात में परवेज मुशर्रफ ने जिया-उल-हक से अलग रास्ता अख्तियार किया. अव्वल तो मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को फांसी पर नहीं लटकाया, ऊपर से अपनी हुकूमत पर जम्हूरियत का जामा पहनाने के लिए चुनाव भी करवा लिये - और खुद को फौजी तानाशाह की जगह अवाम द्वारा चुना गया मुल्क का नुमाइंदा घोषित कर दिया. फिलहाल मुशर्रफ मुल्क से बाहर शरण लिये हुए हैं और नवाज शरीफ फिर से पाकिस्तान की जेल में बंद हैं.
कारगिल जैसे खतरे की आशंका बढ़ी...
मुशर्रफ के शासन की बहुत सी कड़वी यादें होंगी, मगर भारत को के लिए दो ही काफी हैं - एक आगरा सम्मेलन और दूसरा अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा के बाद कारगिल की जंग. ध्यान देने वाली बात ये है कि एक बार फिर वैसे ही हालात पैदा होने के संकेत मिलने लगे हैं.
2. मुंबई जैसा हमला: जेल में बिरयानी की बातें भले ही जुमले जैसी रही हों, लेकिन कसाब को स्वतंत्र और निष्पक्ष ट्रायल के पश्चात फांसी पर लटकाये जाने के लंबे अरसे बाद ही सही - नवाज शरीफ का बयान तो आ ही चुका है कि मुंबई हमले में पाकिस्तान का हाथ रहा. नवाज शरीफ ने चाहे जिन परिस्थियों में और चाहे जिस मजबूरी में बयान दिया हो, खुद शरीफ ने ही भारत के प्रति कौन सी शराफत दिखायी है जिससे कोई बेहतर उम्मीद की जाये. अब इससे खराब स्थिति क्या हो सकती है जब हाफिज सईद प्रधानमंत्री भले न बन पाये, चुनाव में समर्थक उम्मीदवारों की जीत के बाद नेशनल असेंबली में उसका दबदबा कायम हो जाये. दुनिया भर में बतौर दहशतगर्द कुख्यात रहने के बावजूद अगर सिर्फ फौजी सपोर्ट से वो पूरे साल भारत के खिलाफ जहर उगलता रहता है तो चुनाव जीतने पर जो हालत होगी बस कल्पना की जा सकती है.
3. शराफत-ए-इंतफदा: ये नवाज शरीफ ही है जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी के लिए इंतफदा का बात कही थी. मतलब साफ है, नवाज की पार्टी भी आती है तो सरहद पार से कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन कम कहां होने वाला है.
शराफत तो कभी नवाज ने भी नहीं दिखायी...
वोटिंग के ठीक एक दिन पहले पाकिस्तानी चुनाव आयोग की भी आंख खुली है. आयोग ने अल्ला-हो-अकबर तहरीक के तीन उम्मीदवारों को राष्ट्रीय पहचान पत्र और पासपोर्ट की कॉपी दाखिल करने का फरमान जारी करना पड़ा. ये उम्मीदवार हैं - मोहम्मद अशरफ, जफर इकबाल और एहसान रांझा. पाक मीडिया के मुताबिक आयोग को सूचना मिली थी कि इन तीन के नाम संयुक्त राष्ट्र के आतंकियों की सूची में शामिल है. वैसे तीनों ही पाक चुनाव आयोग के सामने पेश हो चुके हैं - जांच जारी है.
बात पते की
पाकिस्तानी पत्रकार वुसअतुल्लाह खान बीबीसी रेडियो डायरी में कहते हैं - "पाकिस्तान में यह चुनाव अरेंज मैरेज जैसा लगता है." वुसअतुल्लाह खान को लगता है - "दिल अंदर जाने से रोक रहा है पर दिमाग आगे ढकेल दे रहा है. पहचान पत्र दिखाइये, ये लीजिए बैलट पेपर, पर्दे के पीछे चले जाइए, मुहर वहीं है. मुहर लगाओ जहां भी पड़ जाए. अरेंज मैरेज में पूछना क्या दिखाना क्या - कबूल है, कबूल है. मुबारक सलामत. वोटर कौन है अहम नहीं, अहम ये है कि गिनता कौन है?"
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