नॉन-पॉलिटिकल गवर्नर का आइडिया कम से कम हंसराज भारद्वाज की ओर से नहीं आना चाहिए
नॉन पॉलिटिकल गवर्नर का मतलब तो ये है कि उस गवर्नर का राजनीति से कोई संबंध ना हो, लेकिन यहां एक सवाल जरूर उठता है कि आखिर जो पार्टी एक शख्स को गवर्नर का पद देगी, उस पार्टी के प्रति गवर्नर की निष्ठा क्यों नहीं होगी?
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कर्नाटक चुनाव में राज्यपाल वाजूभाई वाला की भूमिका पर जो सवाल उठे, उसने एक विवाद पैदा कर दिया है. राज्यपाल के फैसले के खिलाफ तो कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक जा पहुंची और फैसला भी उनके पक्ष में ही मिला. वाजूभाई वाला के भाजपा की ओर झुकाव को देखते हुए यूपीए के दौरान कर्नाटक के गवर्नर रहे हंसराज भारद्वाज ने अपनी राय व्यक्त की है. उन्होंने कहा है कि अब वक्त आ गया है कि गवर्नर पद पर उस व्यक्ति को रखा जाए, जो राजनीति से न जुड़ा हुआ हो. यानी भारद्वाज चाहते हैं कि गवर्नर नॉन-पॉलिटिकल हो, लेकिन ये आइडिया कम से कम हंसराज भारद्वाज की ओर से नहीं आना चाहिए था. अब सवाल ये उठता है कि क्यों, तो आइए जवाब जानते हैं.
भारद्वाज ने बर्खास्त कर दी थी भाजपा की सरकार
हंसराज भारद्वाज 2009 से 2014 तक कर्नाटक के राज्यपाल रह चुके हैं. राज्यपाल रहने के दौरान उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. आपको बता दें कि उस समय बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे, लेकिन राज्यपाल ने भाजपा पर गलत तरीके से बहुमत हासिल करने का आरोप लगाया और दोबारा से बहुमत साबित करने के लिए कहा. ये बात किसी से छुपी नहीं है कि हंसराज भारद्वाज कांग्रेस में केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं और कर्नाटक में उन्होंने जो किया, उसमें कहीं न कहीं कांग्रेस के प्रति उनका झुकाव साफ दिखता है. जिस मकसद को पूरा करने के लिए हंसराज भारद्वाज ने नॉन पॉलिटिकल गवर्नर का आइडिया पेश किया है, उस पर खुद भारद्वाज ने ही अमल नहीं किया था.
नॉन पॉलिटिकल गवर्नर भी तोड़ चुके हैं भरोसा
नॉन पॉलिटिकल गवर्नर का मतलब तो ये है कि उस गवर्नर का राजनीति से कोई संबंध ना हो, लेकिन यहां एक सवाल जरूर उठता है कि आखिर जो पार्टी एक शख्स को गवर्नर का पद देगी, उस पार्टी के प्रति गवर्नर की निष्ठा क्यों नहीं होगी? इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं रोमेश भंडारी, जो 1996 से 1998 तक उत्तर प्रदेश के गवर्नर थे. गवर्नर रहने से पहले वह एक विदेश सचिव (आईएफएस) थे. गवर्नर पद पर रहते हुए उन्होंने 1998 में कल्याण सिंह के नेतृत्व की सरकार को बर्खास्त कर दिया और देखते ही देखते जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. हालांकि, इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट ने राज्यपाल के इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया. जगदंबिका पाल महज दो दिन तक ही मुख्यमंत्री रह सके और उसके बाद कल्याण सिंह ने फिर से अपनी सरकार बना ली.
क्यों दे रहे हैं नॉन पॉलिटिकल गवर्नर का आइडिया?
हंसराज भारद्वाज का ये आइडिया कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर आया है. जिस प्रकार कर्नाटक के राज्यपाल वाजूभाई वाला ने कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन को मौका न देते हुए भाजपा को बहुमत साबित करने और सरकार बनाने का मौका दिया, उससे वाजूभाई वाला की भाजपा के प्रति निष्ठा दिखाई दी. यूं तो वाजूभाई वाला के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया, लेकिन अपने एक फैसले के चलते वाजूभाई वाला विवादों में आ गए. अब इस विवाद पर भारद्वाज ने अपनी राय रखी है. उनका मानना है कि अगर गवर्नर राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं होगा, तभी वह सही फैसले ले सकता है. और अगर उनका खुद का काम देखा जाए तो उनका आइडिया सही भी है, क्योंकि उन्होंने खुद भी राजनीति से जुड़े होने के चलते कांग्रेस के प्रति निष्ठा दिखाई थी. हालांकि, नॉन-पॉलिटिकल गवर्नर रोमेश भंडारी ने यूपी में जो किया, वो हंसराज भारद्वाज के आइडिया पर सीधी चोट मारता है.
इन सब बातों से साफ होता है कि गवर्नर जो भी हो, भले ही राजनीति से जुड़ा हो या राजनीति से बाहर का हो, लेकिन किसी न किसी पार्टी की ओर उसका झुकाव रहता ही है. आखिर जिस पार्टी ने उसे राज्यपाल के पद तक पहुंचाया है, उनका अहसान भी तो उतारना है. ऐसे में हंसराज भारद्वाज का आइडिया सिर्फ एक आइडिया बनकर ही रह जाएगा, जिसे एक निमय बनाकर लागू करना नामुमकिन है.
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