अंग्रेजों के जमाने के नियम से मजबूर हमारा चुनाव आयोग
प्रधानमंत्री मोदी की बागपत रैली को लेकर अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा था. आयोग ने आपत्ति खारिज कर दी क्योंकि रैली सीमा क्षेत्र से बाहर होनी थी. क्या आज के जमाने में रैली की बातें कैराना तक नहीं पहुंची होंगी?
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ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे को चालू करने की डेडलाइन 31 मई थी. सुप्रीम कोर्ट ने हर हाल में इसे शुरू करने का हुक्म दिया था. कोर्ट को ऐसा फरमान तब जारी करना पड़ा जब पता चला कि प्रधानमंत्री की व्यस्तता के चलते एक्सप्रेस वे का उद्घाटन नहीं हो पा रहा है. ये उन दिनों की बात है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक के चुनाव प्रचार में व्यस्त थे.
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने कैराना चुनाव से पहले ही उद्घाटन भी कर दिया और बागपत में रैली भी कर लिये. प्रधानमंत्री की मौजूदगी में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने लगे हाथ इलाके के लोगों के लिए तोहफों झड़ी भी लगा दी.
ये अंग्रेजों के जमाने का कानून है
चुनाव आयोग की भी स्थिति लगता है थानों की पुलिस जैसी हो चुकी है. चुनाव आयोग भी इलाके की पैमाइश अंग्रेजों के जमाने के सिस्टम से करता है. जिस तरह पुलिस वाले शिकायत दर्ज कराने आये लोगों को घटनास्थल सीमा क्षेत्र से बाहर होने पर दूसरे धाने भेज देते हैं, विपक्ष के साथ चुनाव आयोग भी वैसे ही पेश आया. ठीक थाने की पुलिस की तरह मामले के व्यावहारिक पक्ष पर विचार किये बगैर ही नियमों के आधार पर फैसला सुना दिया. आ
गन्ना किसानों को आश्वासन तो मिला...
आरएलडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर अपनी शिकायत दर्ज करायी थी. रैली की खबर आने के बाद अपनी शिकायत में आरएलडी प्रवक्ता ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम अपरोक्ष रूप से कैराना चुनाव को प्रभावित करने के लिए रखा गया है. प्रवक्ता की शिकायत रही कि बीजेपी पहले से ही कैराना लोकसभा क्षेत्र के गांवों में प्रधानमंत्री की रैली के लिए भारी संख्या में लोगों को बागपत पहुंचने की अपील कर रही है. प्रवक्ता ने ये भी आशंका जतायी थी कि प्रधानमंत्री की घोषणाएं ऐसी भी हो सकती हैं जिनका सीधा असर चुनाव क्षेत्र के लोगों को भी हो.
चुनाव आयोग को आरएलडी प्रवक्ता की आशंकाओं में दम नहीं दिखा और उसने रैली पर रोक लगाने से इंकार कर दिया. वैसे आयोग को भी तो किताबी नियमों से ही चलना था, कह दिया - बागपत में आचार संहिता नहीं लागू है. सही बात है. जहां नियमों से चलना हो विवेक के इस्तेमाल की क्या जरूरत है?
आचार संहिता का व्यावहारिक पक्ष
नियमों के मुताबिक कैराना में चुनाव प्रचार 26 मई को ही खत्म हो गया. नियमों के मुताबिक नियत वक्त पर प्रशासन इलाके की सीमाएं भी सील कर देता है. चुनाव प्रचार के लिए बाहर से आये नेताओें को भी सीमा क्षेत्र छोड़ देने की हिदायत होती है.
बागपत तो बाहर है...
प्रधानमंत्री मोदी की रैली बागपत में हुई और वहां आचार संहिता नहीं लागू थी इसलिए उन्होंने खुल कर अपने मन की बात कही. प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को आश्वस्त करने की कोशिश की कि सरकार गन्ना किसानों के मुद्दों को लेकर संवेदनशील है और जल्द से जल्द उनकी मुश्किलें सुलझाने की कोशिश कर रही है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा 'गन्ना किसानों को चीनी मिलों से बकाया मिलने में देरी न हो, इससे जुड़ा एक बड़ा फैसला लिया गया है... सरकार ने तय किया है कि प्रति क्विंटल गन्ने पर 5 रुपये 50 पैसे की आर्थिक मदद चीनी मिलों को दी जाएगी... ये राशि चीनी मिलों को न देकर सीधे गन्ना किसानों के खाते में ट्रांसफर की जाएगी...'
देखा जाये तो प्रधानमंत्री ने ये सारी बातें बागपत में की जो कैराना से 50 किलोमीटर से ज्यादा दूर है. तकनीकी तौर पर ये बातें कैराना में नहीं हुईं. क्या सोशल मीडिया और सूचना के त्वरित प्रसार वाले इस दौर में ये बातें कैराना नहीं पहुंची होंगी? गन्ना किसानों का मुद्दा कैराना में छाया हुआ है - और बार बार वहां गन्ना बनाम जिन्ना की ओर बहस को मोड़ने की कोशिश हो रही है.
क्या चुनाव आयोग दावे के साथ कह सकता है कि जब मोदी गन्ने की बातें कर रहे थे तो वे कैराना के किसानों के कानों तक नहीं पहुंची होंगी? जब नितिन गडकरी इलाके को जोड़ने वाले नये हाइवे की घोषणाएं कर रहे थे तो क्या उसे कैराना के लोग नहीं सुन पा रहे होंगे - और क्या कैराना के लोगों के लिए उसमें फायदे की कोई चीज नहीं होगी?
विपक्षी दल भी जितना ईवीएम को लेकर इतना हो हल्ला करते हैं, लेकिन ऐसी बातों के लिए महज पत्र लिखने की रस्मअदायगी निभा कर चुप हो जाते हैं. अब इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी कि डिजिटल इंडिया में अंग्रेजों के जमाने के नियमों से काम चलाया जा रहा है.
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