पाटीदार आरक्षण पर हार्दिक की बात '15 लाख' वाले जुमला जैसी ही है
हार्दिक पटेल का पाटीदार आरक्षण पर दावा भी काफी हद तक वैसा ही लगता है, जैसा 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को वो दावा जिसमें उन्होंने विदेश से काला धन वापस लाकर हर नागरिक के अकाउंट में 15-15 लाख रुपये जमा कराने का कहा था. हालांकि बाद में अमित शाह ने उसे चुनावी जुमला बता दिया.
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पाटीदारों को आरक्षण पर हार्दिक पटेल का बयान जुमले जैसा क्यों लगता है? बिलकुल उसी जुमले जैसा जिसे लेकर बीजेपी के विरोधी मोदी पर लगातार हमलावर रहते हैं. 2014 के आम चुनाव में मोदी ने कहा था कि काला धन वापस आ जाये तो देश के हर नागरिक के अकाउंट में 15-15 लाख रुपये आ जायें, लेकिन बाद में अमित शाह ने कह दिया कि वो तो महज चुनावी जुमला था.
पाटीदार आरक्षण पर हार्दिक के बयान में भी वही लोचा दिखता है जो काले धन को लेकर था. हार्दिक का दावा है कि आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की 50 फीसदी कैप के बाद भी पाटीदारों के लिए अलग से आरक्षण दिया जा सकता है. हार्दिक ने कहा कि कांग्रेस ने उन्हें ऐसा भरोसा दिलाया है.
हार्दिक की मांगें
पाटीदार अनामत आंदोलन समिति ( PAAS) के बैनर तले मुहिम चला रहे हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को वोट देने की अपील तो नहीं की, लेकिन बीजेपी की नीयत में खोट बताया. हार्दिक पाटीदारों के लिए सरकारी नौकरियों और स्कूल कॉलेज में दाखिले में आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं. हार्दिक का कहना है कि कांग्रेस उनकी सारी मांगें मान ली हैं.
आरक्षण पर हार्दिक का वादा क्या कहता है...
आरक्षण के नाम पर शुरू हुई इस मुहिम में बाद में कुछ मांगें और जुड़ गयीं. ओबीसी में आरक्षण देने के साथ साथ हार्दिक की मांग रही है कि आंदोलन के दौरान पाटीदार कार्यकर्ताओं पर दर्ज देशद्रोह के मामले वापस लिये जायें. हार्दिक खुद भी देशद्रोह के आरोप में जेल जा चुके हैं और कोर्ट की हिदायत पर उनके गुजरात में एंट्री पर भी महीनों पाबंदी लगी रही.
पाटीदार आंदोलन के हिंसक होने पर 14 लोगों की मौत गयी थी. इसमें कई लोग पुलिस फायरिंग में मारे गये. हार्दिक हर परिवार के लिए 35 लाख रुपये के मुआवजे की मांग करते रहे हैं. पाटीदार आंदोलनकारियों के खिलाफ पुलिस एक्शन के लिए जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ हार्दिक कार्रवाई चाहते हैं. हार्दिक के मुताबिक कांग्रेस की ओर से इसकी जांच के लिए एक जांच समिति बनाने पर सहमति हुई है.
ये आंकड़े 2015 के हैं
हार्दिक की एक मांग बीजेपी सरकार द्वारा बनाये गये आयोग को अमली जामा पहनाने की रही है जिसको लेकर अब तक सिर्फ नोटिफिकेशन जारी हुआ था. हार्दिक के अनुसार कांग्रेस ने उनकी मांग पर गौर करते हुए आयोग का बजट भी छह सौ से दो हजार करने का भरोसा दिलाया है.
और हार्दिक से सबसे बड़ी डिमांड - पाटीदारों के लिए आरक्षण की व्यवस्था. कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने हार्दिक को पाटीदारों के लिए 20 फीसदी अलग से आरक्षण का फॉर्मूला दिया था. इस हिसाब से देखें तो गुजरात में आरक्षण 70 फीसदी पहुंच जाएगा.
अपनी प्रेस कांफ्रेंस में हार्दिक ने दावा किया कि देश के दूसरे राज्यों में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण के इंतजाम किये गये हैं और पाटीदारों के लिए भी कांग्रेस ने वैसा ही करने को कहा है. हार्दिक ने बताया कि कांग्रेस ने इस पर सर्वे कराने के बाद संविधान के दायरे में कोई रास्ते निकालने को राजी है. अब सवाल ये है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने पर पाबंदी लगा रखी है तो वो कौन सा रास्ता होगा?
देश में आरक्षण की स्थिति
1992 में सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी आरक्षण को लेकर व्यवस्था दी कि इससे ज्यादा होने पर लोगों को संविधान द्वारा मिले बराबरी के हक का उल्लंघन होगा. वैसे राज्यों में ऐसे कानून हैं जिनके तहत लोगों को अलग से आरक्षण दिया जा सकता है लेकिन ऐसे कई मामले अब भी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग हैं.
ऐसे मामलों में तमिलनाडु का केस बेहतरीन मिसाल है. तमिलनाडु सरकार ने जाति आधारित आरक्षण के तहत 69 फीसदी आरक्षण देने के इंतजाम किये जो करीब 87 फीसदी आबादी के लिए फायदेमंद हो सकता था. जब इस ऑर्डिनेंस के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट में अपील हुई तो अदालत ने रोक लगाने से मना कर दिया. बाद में एक अदालती आदेश में तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल करने को कहा गया, ताकि वो ज्युडिशियल रिव्यू के दायरे में न आये. हालांकि, इस बारे में भी अदालत के आखिरी फैसले का इंतजार है.
मोदी जैसा रोड शो...
तकरीबन तमिलनाडु जैसा ही महाराष्ट्र का भी मामला है. जब महाराष्ट्र सरकार की ओर से मराठी लोगों को 16 फीसदी आरक्षण देने का आदेश लाया गया तो बॉम्बे हाई कोर्ट ने रोक लगा दी. बीजेपी की फडणवीस सरकार ने जब इस मामले में हाई कोर्ट से चार हफ्ते के लिए स्टे की गुजारिश की तो कोर्ट ने ठुकरा दिया. सरकारी फरमान के बाद सामान्य लोगों के लिए महज 23 फीसदी कोटा ही बच पा रहा था.
तमिलनाडु और महाराष्ट्र की तरह ही झारखंड में 60 फीसदी और त्रिपुरा को छोड़ कर नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में अनुसूचित जनजातियों के लिए 80 फीसदी आरक्षण की बात है.
50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण तभी संभव हो पाएगा जब सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कोई फैसला सुनाये या फिर केंद्र सरकार संविधान के तहत कोई इंतजाम करे.
हार्दिक के दावों को समझना हो तो राजस्थान का मामला बेहद दिलचस्प है. जिस कांग्रेस के बूते हार्दिक गुजरात में पाटीदारों को भरोसा दिला रहे हैं, राजस्थान में कांग्रेस उसी का मजाक उड़ा रही है.
पाटीदारों के लिए राजस्थान का मामला नजीर है
सितंबर 2015 में बीजेपी की मौजूदा वसुंधरा राजे सरकार ने गुर्जरों के लिए 5 फीसदी और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए 14 फीसदी आरक्षण देने की कोशिश की. ऐसे में सामान्य वर्ग के लिए एक तिहाई कोटा ही बचता. 2009 में भी ऐसी कोशिश हुई थी लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था. वसुंधरा सरकार ने ये प्रस्ताव गुर्जर आंदोलन के हिंसक हो जाने बाद लाया. जब मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट के 50 फीसदी कैप का हवाला देते हुए खारिज कर दिया गया.
तब राजस्थान की बीजेपी सरकार ने कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों का उदाहरण देते हुए हार्दिक की ही तरह दावे किये. वसुंधरा सरकार के मंत्रियों ने भी कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेने के बाद ये कदम उठाने की बातें की.
राहुल जैसे मंदिर दर्शन
हार्दिक जिस कांग्रेस के बल पर पाटीदारों को आरक्षण देने का वादा कर रहे हैं उसी पार्टी के नेता सचिन पायलट ने सरकार के दावों को हास्यास्पद और आंखों में धूल झोंकने वाला बताया. सचिन पायलट ने कहा कि ये तमाशा है और कानूनी समीक्षा में टिक नही पाएगा. सचिन पायलट इन दिनों गुजरात में कांग्रेस के चुनाव प्रचार में भी जोर शोर से जुटे हुए हैं.
बीजेपी के ऐसे आरक्षण के दावों की जो कांग्रेस राजस्थान में खिल्ली उड़ा रही है उसकी बातों पर हार्दिक को गुजरात में यकीन क्यों और कैसे हो रहा है? हार्दिक भले ये दावा करें की कांग्रेस ने उनकी सारी बातें मान ली हैं, लेकिन सीटों को लेकर तस्वीर अब तक साफ नहीं है. हार्दिक ने कांग्रेस से 22 सीटों की मांग थी लेकिन कांग्रेस छह से ज्यादा नहीं देना चाहती थी और जैसे तैसे नौ सीटों पर राजी होने की चर्चा है. दूसरी तरफ अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस ने हार्दिक से ज्यादा सीटें देने की बात मान ली है.
सेक्स सीडी को लेकर हार्दिक बीजेपी को जैसे भी घेरने की कोशिश करें, लेकिन खुद उनका भी जवाब ऐसा नहीं है जो किसी के गले उतर सके. हार्दिक के पांच मजबूत साथी उन्हें छोड़ कर बीजेपी में जा मिले हैं. हार्दिक लगातार कमजोर होते दिख रहे हैं और कांग्रेस यही बात समझ में आ गयी है. या तो कांग्रेस हार्दिक की मजबूरियों का फायदा उठाकर उन्हें जैसे तैसे बहला-फुसला रही है, या फिर खुद हार्दिक बचाव के सुरक्षित रास्ते से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. नतीजा ये है कि जैसा व्यवहार कांग्रेस हार्दिक के साथ कर रही है, तकरीबन वैसा ही वो पाटीदारों के साथ कर रहे हैं - और यही वजह है कि उनकी बातें जुमला जैसी लगती हैं.
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