खुद को 'नसबंदी वाला दूल्हा' कह रहे हार्दिक पटेल ने राहुल गांधी को समझने में देर कैसे कर दी?
गुजरात चुनाव (Gujarat Election 2022) को लेकर हार्दिक पटेल (Hardik Patel) की फिक्र स्वाभाविक है और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को लेकर निराशा का भाव भी, लेकिन कांग्रेस में अपनी हैसियत को लेकर पाटीदार नेता ने जो कुछ कहा है वो बहुत अजीब बात है.
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हार्दिक पटेल (Hardik Patel) ने कांग्रेस में अपनी हैसियत को लेकर जो मिसाल दी है, वो वाकई काफी अजीब है. गुजरात चुनाव (Gujarat Election 2022) को लेकर उनकी फिक्र और बेचैनी भी स्वाभाविक लगती है. हार्दिक पटेल की बातों से ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व से वो हद से ज्यादा उम्मीद कर बैठे थे.
देखा जाये तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने हार्दिक पटेल को कभी वैसा भाव नहीं दिया जिसके वो हमेशा ही हकदार रहे. जबकि हार्दिक पटेल की वजह से कांग्रेस को 2017 के गुजरात चुनाव में काफी फायदा हुआ था. हालांकि, उसके पीछे हार्दिक पटेल का अकेला ही योगदान नहीं थी. हार्दिक पटेल के साथ साथ अल्पेश ठाकोर और युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी की भी बड़ी भूमिका रही.
एक दौर रहा है जब हार्दिक पटेल भी गुजरात के अरविंद केजरीवाल ही लगते थे. पाटीदार आंदोलन का नेतृत्व कर हार्दिक पटेल ने गुजरात में सत्ताधारी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी थी. ये पाटीदार आंदोलन ही है जिसके चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी - और उसके छह महीने बाद ही चुनावों में बीजेपी ने बहुमत तो हासिल कर लिया लेकिन सीटों की संख्या सौ तक भी नहीं पहुंच सकी थी.
तब हार्दिक पटेल जैसे युवा नेताओं की बदौलत ही राहुल गांधी का नया अवतार दर्ज किया जाने लगा था - और उसी का नतीजा रहा कि गुजरात के साल भर बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत का पूरा क्रेडिट राहुल गांधी को मिला था. गुजरात चुनाव में प्रदर्शन से उत्साहित राहुल गांधी ने नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी संभाल लिया था.
कांग्रेस ज्वाइन करने के तीन साल बाद हार्दिक पटेल के भीतर का दर्द सामने आ गया है, लेकिन बड़ी होशियारी से वो कांग्रेस नेतृत्व पाटीदारों के अपमान करने का भी आरोप लगा दे रहे हैं - समझना ये जरूरी है कि अगर कांग्रेस का रवैया नहीं बदला तो हार्दिक पटेल क्या कदम उठाते हैं?
सुप्रीम कोर्ट की राहत से बढ़ी हिम्मत
हार्दिक पटेल ने विधानसभा चुनावों के ठीक पहले जो कहा है, वो काफी महत्वपूर्ण है, "गुजरात कांग्रेस में मेरी हालत उस दूल्हे जैसी है, जिसकी शादी के बाद नसबंदी करा दी गई हो."
हार्दिक पटेल को कांग्रेस ने 2020 में गुजरात का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था. हार्दिक पटेल ने 2019 के आम चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ज्वाइन किया था, लेकिन वो चुनाव नहीं लड़ सके थे क्योंकि 2015 के हिंसा के मामले में उनको सजा हो गयी थी.
हार्दिक पटेल का दम तो कांग्रेस में पहले से ही घुट रहा होगा, हिम्मत अब बढ़ी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने का रास्ता साफ कर दिया है.
पाटीदार समुदाय को संदेश देने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस में पदाधिकारी तो बना दिया, लेकिन प्रभावी लॉबी ने धीरे धीरे दरकिनार कर दिया. हार्दिक पटेल ऐसी नाराजगी तो पहले भी जताते रहे हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत से हिम्मत काफी बढ़ी हुई लगती है.
हार्दिक पटेल का कहना है, 'मुझे प्रदेश कांग्रेस कमेटी की किसी भी बैठक में नहीं बुलाया जाता... कोई फैसला लेने से पहले वो मेरी राय भी नहीं लेते... तब इस पद का क्या मतलब है.'
" गुजरात में कार्यकारी अध्यक्ष का महत्व शादी के बाद नसबंदी जैसा है "?? pic.twitter.com/j0swmKrJN0
— BALA (@erbmjha) April 14, 2022
हाल की एक घटना का जिक्र करते हुए हार्दिक पटेल कहते हैं, 'उन्होंने राज्य में 75 नये महासचिव और 25 नये उपाध्यक्षों के नाम घोषित किये. मुझसे एक बार भी नहीं पूछा कि हार्दिक भाई आपकी नजर में कोई मजबूत नेता इस सूची से गायब तो नहीं है.'
सुप्रीम कोर्ट के उनकी सजा पर रोक लगा देने के बाद हार्दिक पटेल ने ट्विटर पर चुनाव लड़ने के संकेत दिये. हालांकि, उनका कहना था कि सिर्फ चुनाव लड़ना ही उनका मकसद नहीं है.
सिर्फ़ चुनाव लड़ना ही मेरा मक़सद नही है बल्कि गुजरात के लोगों की सेवा मज़बूती से कर पाऊँ यही मेरा उद्देश हैं। आज से तीन साल पहलें एक झूठे मुक़दमे में मुझे दो साल की सजा सुनाई थी लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने दो साल की सजा पर रोक लगाई है, मैं न्यायपालिका का ह्रदय से धन्यवाद करता हूँ।
— Hardik Patel (@HardikPatel_) April 12, 2022
गुजरात में 2015 में पाटीदारों को ओबीसी के रूप आरक्षण देने को लेकर हार्दिक पटेल आंदोलन चला रहे थे. उसी दौरान हुई हिंसा को लेकर उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया और अदालत ने दोषी पाकर सजा सुना दी. गुजरात हाई कोर्ट ने सजा को तो सस्पेंड कर दिया था, लेकिन उनके दोषी साबित होने पर कोई रोक नहीं लगायी - और वो 2019 का चुनाव नहीं लड़ पाये. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला आने तक सजा और दोषसिद्धि दोनों पर रोक लगा दी है, लिहाजा हार्दिक पटेल के चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है.
कांग्रेस ने इस्तेमाल तो किया, विश्वास नहीं किया
हार्दिक पटेल ऐसे समय कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं जब नरेश पटेल के कांग्रेस ज्वाइन करने की खबर आ रही है. खोडलधाम ट्रस्ट के मुखिया नरेश पटेल पाटीदारों के लेउवा समाज से आते हैं, जबकि हार्दिक पटेल कड़वा. नरेश पटेल के साथ प्लस प्वाइंट ये है कि उनकी दोनों ही समाज में अच्छी पैठ है. माना जा रहा है कि नरेश पटेल कांग्रेस ज्वाइन कर लेते हैं तो पार्टी को सौराष्ट्र और कच्छ की 50 से ज्यादा सीटों पर फायदा मिल सकता है.
नरेश पटेल के पहले आम आदमी पार्टी में जाने की संभावना जतायी जा रही थी. कहा तो यहां तक जाने लगा था कि नरेश पटेल को अरविंद केजरीवाल पंजाब से राज्य सभा भी भेज सकते हैं, लेकिन राज्य सभा चुनावों के साथ ही ये कहानी खत्म सी हो गयी. जो पेंच फंसा होगा, वो इतना आसान भी नहीं होगा कि विधानसभा चुनाव से पहले कोई और रास्ता निकाला जा सके.
एक खबर ये भी है कि चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी कांग्रेस के गुजरात चुनाव कैंपेन में नरेश पटेल की वजह से ही दिलचस्पी दिखा रहे हैं. कांग्रेस ज्वाइन करते करते रह गये, प्रशांत किशोर को लेकर खबर है कि सिर्फ गुजरात चुनाव में कांग्रेस के लिए काम करना चाहते हैं. हालांकि, चर्चाओं के आगे अभी तक न तो प्रशांत किशोर की तरफ से और न ही कांग्रेस नेतृत्व की ओर से ही कोई आधिकारिक जानकारी दी गयी है.
ये भी प्रशांत किशोर का ही आइडिया बताया जा रहा है कि नरेश पटेल को कांग्रेस साल के आखिर में होने जा रहे चुनाव में पार्टी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये. पाटीदार वोट बैंक और उस पर नरेश पटेल का प्रभाव देख कर काफी दिनों से हर पार्टी उनको अपने साथ जोड़ना चाहती है.
नरेश पटेल के कांग्रेस में आने के बाद तो हार्दिक पटेल की पूछ और भी कम हो जाएगी, फिर भी वो कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर दे रहे हैं. हार्दिक पटेल का कहना है कि नरेश पटेल के बारे में कोई फैसला न लेकर कांग्रेस पाटीदार समाज का अपमान कर रही है. हालांकि, गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष जगदीश ठाकोर का कहना है कि पार्टी की तरफ से कोई रुकावट नहीं है. मतलब, अगर कहीं कोई बात फाइनल नहीं हो पा रही है तो वो नरेश पटेल की तरफ से ही है.
नरेश पटेल का कांग्रेस ज्वाइन करना हार्दिक पटेल के लिए कोई खुशी की वजह तो नहीं लगती, लेकिन वो राजनीतिक फायदा उठाने का कोई मौका भी नहीं छोड़ रहे हैं. हार्दिक पटेल अपने बाद नरेश पटेल को भी कांग्रेस के इस्तेमाल करने का शक जता रहे हैं. हार्दिक की बातों से यही लगता है कि वो मान चुके हैं कि कांग्रेस ने पाटीदार नेता का इस्तेमाल तो खूब किया, लेकिन कभी विश्वास नहीं किया.
हार्दिक पटेल का कहना है, 'मैं टीवी पर देख रहा हूं... कांग्रेस 2022 चुनाव के लिए नरेश पटेल को पार्टी में लाना चाहती है... मैं उम्मीद करता हू कि वो 2027 चुनावों के लिए कोई और पटेल न खोजें... कांग्रेस उन लोगों का इस्तेमाल ही क्यों नहीं करती जो पार्टी में हैं?'
फिर तो आप का ही आसरा है
कांग्रेस में अगर हार्दिक पटेल का यही हाल रहा या नरेश पटेल के कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद मुश्किलें बढ़ी तो वो क्या करेंगे? बीजेपी विरोध के साथ तो उनकी राजनीति ही शुरू हुई है - और अब हार्दिक पटेल का पहले की तरह असर भी नहीं रहा कि वो अपनी पार्टी खड़ा कर सकें.
ऐसे में हार्दिक पटेल के सामने एक ही विकल्प नजर आता है - आम आदमी पार्टी. 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले कई बार ऐसा लगा कि हार्दिक पटेल और अरविंद केजरीवाल हाथ मिला सकते हैं. बात शायद इसलिए भी नहीं बन पायी क्योंकि हार्दिक पटेल कांग्रेस के साथ भी डील कर रहे थे. राहुल गांधी से मुलाकात भी हुई थी, लेकिन हार्दिक पटेल की हाई डिमांड कांग्रेस नेतृत्व को मंजूर नहीं थी.
2016 में अरविंद केजरीवाल और हार्दिक पटेल को ट्विटर पर एक दूसरे का सपोर्ट करते भी देखा गया था. तब देखने में आया था कि अरविंद केजरीवाल, हार्दिक पटेल की वो हर पोस्ट रीट्वीट करते थे जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह से जुड़ी होती थी.
यहां तक कि जब हार्दिक पटेल ने ट्विटर पर अपने फेसबुक पेज का लिंक शेयर किया था और अपना ऑफिशियल पेज बताते हुए लाइक करने को कहा, उसे भी अरविंद केजरीवाल रीट्वीट किया - क्या ये सब फिर से होने वाला है?
अरविंद केजरीवाल और हार्दिक पटेल क्या फिर ऐसे व्यवहार करने वाले हैं?
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