क्या मुलायम-अखिलेश ने बांट ली है केंद्र और सूबे की राजनीति
आखिर मुलायम और अखिलेश के बयान अलग अलग इशारे क्यों कर रहे हैं? क्या केंद्र की मोदी सरकार को लेकर समाजवादी पार्टी दोहरा रवैया अख्तियार कर रही है?
-
Total Shares
दलितों पर वीके सिंह के बयान को लेकर जब विपक्ष लोक सभा से वॉकऑउट करता है तो मुलायम सिंह टस से मस नहीं होते हैं. उनके बेटे अखिलेश यादव कहते हैं ‘अच्छे दिन आएंगे’ कहकर मोदी ने देश की जनता से धोखा किया है.
आखिर मुलायम और अखिलेश के बयान अलग अलग इशारे क्यों कर रहे हैं? क्या केंद्र की मोदी सरकार को लेकर समाजवादी पार्टी दोहरा रवैया अख्तियार कर रही है?
अखिलेश... अखिलेश
समाजवादी पार्टी का चुनावी जिंगल बदल गया है. आगे से पार्टी कार्यक्रमों में 'मन से मुलायम...' नहीं बल्कि 'अखिलेश... अखिलेश' सुनने को मिलेगा. नए जिंगल में यूपी के सीएम अखिलेश यादव और उनके विकास के मुद्दे का खूब बखान किया गया है, "तरक्की का शुभारंभ, प्रगति का श्री गणेश... अखिलेश अखिलेश"
नये जिंगल के बोल हैं, “यूपी को प्रगति के पथ पर यदि तुम लाओगे, हर इच्छा, हर एक सपना पूरा कर दिखलाओगे, हर आंगन तुमसे बदलेगा, सूत्रधार तुम परिवर्तन के, समृद्धि के तुम पर्याय, तुम ही आशा हर एक वादे के, तरक्की का शुभारंभ, प्रगति श्री गणेश, अखिलेश अखिलेश, साथी सबका अखिलेश."
ये गीत भी उदय प्रताप सिंह ने ही लिखा है. समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने जब अंग्रेजी हटाओ आंदोलन शुरू किया था तो मुलायम और उदय प्रताप ने साथ हिस्सेदारी की थी. ये साथ तब से बरकरार है. फिलहाल उदय प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के प्रमुख हैं. उदय प्रताप ने मुलायम को 12वीं में अंग्रेजी पढ़ाई थी, इसीलिए मुलायम उन्हें अपना गुरु मानते हैं.
गुरु के गीतों का नायक बदल चुका है. मुलायम पर कई गीत लिख चुके उदय प्रताप सिंह ने अपनी नई गीत में अखिलेश को नायक की तरह पेश किया है. क्या ये सिर्फ विरासत के हैंडओवर होने का संकेत है या फिर किसी छुपी हुई रणनीति का हिस्सा?
इरादे भी मुलायम
'मन से मुलायम...' से पहले भी उदय प्रताप ने मुलायम पर कई गीत लिख चुके हैं. 1996 में जब मुलायम ने तीसरे मोर्चे के गठन में बड़ी भूमिका निभाई तो उदय प्रताप ने उनके यशगान में लिखा, "नाम मुलायम सिंह है लेकिन काम बड़ा फौलादी है, सब विपक्ष की बिखरी ताकत एक मंच पर ला दी है."
क्या मुलायम भी अपने रिश्तेदार और आरजेडी नेता लालू प्रसाद के रास्ते पर चल रहे हैं. बिहार में लालू पार्टी की विरासत धीरे धीरे अगली पीढ़ी के हवाले करते जा रहे हैं. हालांकि, दोनों के केस अलग हैं. लालू चारा घोटाले में जमानत पर छूटे हुए हैं, लेकिन मुलायम के साथ अब तक ऐसा कुछ नहीं है. माना जाता रहा है कि दोनों पर केंद्र की सत्ताधारी पार्टी का दबाव रहता है. पर्दे के पीछे सीबीआई को खड़ा कर सत्ताधारी पार्टी दोनों को बारी बारी अपनी शर्तों पर नचाती रहती है.
हाल के दिनों में मुलायम का हर राजनीतिक कदम मोदी सरकार के पक्ष में नजर आता है. चाहे वो बिहार में महागठबंधन से हटने की बात या लोग सभा में विपक्ष से दूरी बना वीके सिंह के मुद्दे पर सदन से वॉक ऑउट न करने का फैसला.
जबकि अखिलेश यादव मोदी सरकार को लगातार टारगेट कर रहे हैं. एक टीवी शो में जब अखिलेश से पूछा गया कि अगर वो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आमने सामने आ जाएं तो वो उन्हें क्या संदेश देना चाहेंगे? अखिलेश का जवाब था, "फेसबुक पर कम बात हो, जमीन पर ज्यादा काम हो."
एक कार्यक्रम में अखिलेश के सामने जब यूपी में कांग्रेस के साथ महागठबंधन की बात उठी तो उन्होंने कहा कि राहुल गांधी से उनकी पुरानी दोस्ती है. अखिलेश ने कहा कि अगर राहुल कहते हैं कि नेताजी अगले पीएम बनेंगे और वो खुद डिप्टी पीएम होंगे, तो वह अभी इसी वक्त गठबंधन के लिए 'हां' कहते हैं. इस कार्यक्रम में राहुल गांधी भी मौजूद थे. जब अखिलेश की बात पर राहुल की टिप्पणी मांगी गई तो वो सिर्फ मुस्करा कर रह गए.
ये बातें तो यही इशारा करती हैं कि मुलायम और अखिलेश के बीच केंद्र और सूबे की राजनीति का बंटवारा हो गया है. वजह जो भी हो नेताजी मन से ही नहीं उनके इरादे भी मुलायम नजर आ रहे हैं.
आपकी राय