ताजपोशी कुमारस्वामी की हुई और सेहरा विपक्ष ने बांध लिया
गुजरात विधानसभा चुनाव के समय से ही शायद आपने देखा होगा कि विपक्षी दलों को चुनावी फायदा मिला है. लेकिन जहां तक वोट शेयर का सवाल है तो राष्ट्रीय दलों की तुलना में क्षेत्रीय दलों के पास ज्यादा है.
-
Total Shares
कर्नाटक में जेडीएस के कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के सभी बड़े नेता एकजुट हुए. एकदूसरे से गर्मजोशी से गले मिलते, चेहरे पर लंबी मुस्कुराहट लिए, कानों में फुसफुसाते हुए और पुराने समय को याद करते ये नेता अच्छे लग रहे थे. वास्तव में ये सिर्फ राज्य में सरकार के गठन की नहीं बल्कि उससे कहीं आगे की शुरुआत थी.
एकजुट तो हैं पर समानता बहुत कम है-
कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण में विपक्ष ने अपनी एकता का पुरजोर प्रदर्शन किया. लेकिन उनके "धर्मनिरपेक्ष" होने के दावे और एक ही विरोधी, बीजेपी, के अलावा उनके बीच समानता के नाम पर बहुत कुछ नहीं है. सोनिया गांधी ने जिस तरीके से मायावती को गले लगाया और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने पश्चिम बंगाल की अपनी समकक्ष ममता बनर्जी से बात नहीं की. ये घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि दूरियां दिखाने के लिए मिटी हैं जमीनी हकीकत शायद अलग नहीं है.
Congratulations to Shri HD Kumaraswamy & Shri Dr. G Parameshwara for taking oath as CM & DyCM of Karnataka. A host of top leaders from across the nation attended this historic event. #UnitedInVictory pic.twitter.com/QxRTxAf5bc
— Karnataka Congress (@INCKarnataka) 23 May 2018
कर्नाटक कांग्रेस ने अपने ट्वीट में लिखा- श्री एचडी कुमारस्वामी और श्री डा. जी परमेश्वरा को सीएम और डिप्टी सीएम के रुप में शपथ लेने के लिए बधाई. इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह पूरे देश के बड़े नेता बने.
Congratulations to the people of Karnataka, Shri Kumaraswamy and Shri Parameshwara. Parties from all over India stand with you. May this be the first step towards ensuring BJP and RSS don't steal elections. #Bengaluru pic.twitter.com/xLqiAyVQRt
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) 23 May 2018
सीताराम यचूरी ने ट्वीट किया- कर्नाटक की जनता, श्री कुमारस्वामी और श्री परमेश्वरा को बधाई. पूरे भारत की पार्टियां आपके साथ खड़ी हैं. आशा है कि ये आरएसएस और भाजपा के विरुद्ध पहला कदम साबित होगा.
Met with @MamataOfficial & Mayawati ji at the swearing in ceremony of @hd_kumaraswamy as Karnataka's CM. We're here to strengthen the regional parties and will work together to protect and promote national interests. pic.twitter.com/OuSwgnt6zx
— N Chandrababu Naidu (@ncbn) 23 May 2018
We've come here to witness swearing in ceremony of HD Kumaraswamy & express our solidarity to him. In future we'll work together to protect & promote national interest. We're here to strengthen all regional parties: Andhra CM N Chandrababu Naidu&WB CM Mamata Banerjee in Bengaluru pic.twitter.com/bRy7Qp1wWb
— ANI (@ANI) 23 May 2018
एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के समय ममता बनर्जी जी और मायावती जी से मिला. हम यहां क्षेत्रीय पार्टियों को मजबूत करने के लिए इकट्ठा हुए हैं और राष्ट्रीय हित को बचाने और बढ़ाने के लिए मिलजुल कर काम करेंगे.
क्षेत्रीय बनाम राष्ट्रीय-
कर्नाटक का फैसले लगभग साफ ही था. अगर आप यह निष्कर्ष निकालना चाहते हैं कि कर्नाटक की जनता ने भाजपा विरोधी फैसला दिया था तो ऐसा आप कर सकते हैं. और अगर आप ये मानते हैं कि यह कांग्रेस-जेडी(एस) के समर्थन में फैसला था तो आप ऐसा मानने के लिए भी स्वतंत्र हैं.
लेकिन अगर आप हाल के दिनों में आए चुनाव परिणामों को देखते हैं तो एक बात बिल्कुल स्पष्ट है. गुजरात विधानसभा चुनाव के समय से ही शायद आपने देखा होगा कि विपक्षी दलों को चुनावी फायदा मिला है. विपक्षी दलों में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, टीआरएस, टीडीपी, वाईएसआरसीपी, आम आदमी पार्टी और कुछ अन्य राष्ट्रीय दलों सहित वामपंथी दलों समेत मजबूत क्षेत्रीय दल शामिल हैं.
लेकिन जहां तक वोट शेयर का सवाल है तो राष्ट्रीय दलों की तुलना में क्षेत्रीय दलों के पास ज्यादा है.
कांग्रेस ने गुजरात में अच्छा प्रदर्शन किया जो भाजपा को झटके देने के लिए पर्याप्त था. लेकिन फिर भी इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि सत्ता विरोधी जैसे कारकों का कितना योगदान रहा. चुनाव इन सभी मुद्दों का बहुत बड़ा योगदान होता है क्योंकि मतदाता इन्हें ध्यान में रखकर वोट करता है.
फरवरी में राजस्थान में हुए तीन उप-चुनावों में कांग्रेस ने बीजेपी को मात दी थी. फिल्म के पद्मावत के रिलीज के साथ साथ कुछ अल्पकालिक मुद्दे भी थे. हालांकि अगर पूरी तस्वीर देखें तो मौजूदा सरकार द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों में विकास लाने में विफलता इस हार के लिए ज्यादा जिम्मेदार थी. अगर कोई भी सरकार अपने वादे को पूरा करती है और अपने एजेंडे पर कायम रहती हो तो भी कोई भी मुद्दा उनकी जीत रोक नहीं सकती.
दोस्त दुश्मन में बदल जाते हैं और दुश्मन दोस्त बन जाते हैं-
शिवसेना और बीजेपी के बीच टकराव की स्थिति चल रही है. वहीं शपथ ग्रहण के दौरान मंच पर दिखे विपक्षी दलों में से कोई भी शिवसेना से गठबंधन करने के लिए तैयार नहीं होगा. ज्यादा से ज्यादा ये लोग शिवसेना से बाहर से समर्थन लेने के लिए तैयार हो जाऐंगे.
राजनीति में न तो स्थायी दोस्ती होती है न ही दुश्मनी
टीडीपी और टीआरएस की अपनी लड़ाई है. मुख्य रूप से वाईएसआरसीपी के साथ. एक तरफ जहां जगनमोहन रेड्डी भाजपा के "नए सहयोगी" बनने में कामयाब रहे हैं, वहीं एन चंद्रबाबू नायडू को एनडीए छोड़ने के बाद से क्षेत्रीय दलों के गठबंधन को बनाने की कोशिश में देखा जा रहा है. इसके अलावा जगनमोहन एनडीए के साथ जाएंगे या नहीं, इसका फैसला तिलंगाना और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनावों में वाईएसआरसीपी के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा.
पहचान बचाने की कोशिश-
बैंगलोर में शपथ ग्रहण के साथ ये बदला कि कांग्रेस ने राज्य की राजनीति में अपनी भूमिका को उलट दिया है. हालांकि ये कोई पहली बार नहीं है. इसका उदाहरण हम बिहार में भी देख चुके हैं. लेकिन कर्नाटक में अलग ये था कि यहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी. अपने गठबंधन के सहयोगी की तुलना में उसने पर्याप्त संख्या में सीटें भी जीती थी, लेकिन फिर भी सत्ता में उसे दूसरे पायदान पर रहना पड़ा.
अगर ये फैसला कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने लिया है तब तो ये एक स्वागत योग्य संकेत है. ये इस बात का संकेत है कि कांग्रेस ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि अपनी राष्ट्रीय स्थिति को बनाए रखने के लिए, इसे अपने क्षेत्रीय भागीदारों के साथ दूसरे पायदान पर रहना भी मंजूर करना होगा. यह राजनीतिक प्रतिष्ठा का विषय नहीं है बल्कि यह तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में अपनी स्थिति को बनाए रखने की जद्दोजहद है.
एक तरह से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्ष के लिए एक कैटेलिस्ट यानी उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं. बीजेपी और उसके सहयोगी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किलों पर अपना कब्जा बनाए रखना चाहेंगे. जबकि विपक्षी इन राज्यों में भी अपनी संभावनाएं तलाशेंगे. खासतौर पर अगर संयुक्त वोट शेयर को देखें तो विपक्ष को स्पष्ट रूप से लाभ मिलने का संकेत है.
लेकिन फिर भी कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि कर्नाटक में इसके "मुख्य रणनीतिकार" सिद्धारामैया थे. इन्होंने बीजेपी की आक्रामकता को रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था. इससे यह भी पता चलता है कि स्थानीय दिग्गजों के सहारे कांग्रेस को अधिक वोट और सीटें मिल सकती हैं.
ये भी पढ़ें-
कारण जो बताते हैं कि, कर्नाटक का नया मुख्यमंत्री लम्बी रेस का घोड़ा नहीं है!
2019 लोकसभा चुनाव में भी कामयाब हो सकता है 'कर्नाटक मॉडल' बशर्ते...
पेट्रोल डीजल को रातोंरात सस्ता करने का रामबाण इलाज है जर्मनी के पास
आपकी राय