कोर्ट की कसौटी पर खरा नहीं उतरा आरक्षण!
अब समय आरक्षण की नई-नई मांगों को हवा देने का नहीं है, बल्कि इसे तर्कसंगत बनाने का है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आरक्षण की सूची में नई भर्तियों की जगह इसमें से किसी को बाहर करने पर विचार करना होगा.
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हरियाणा में जाट समेत 6 जातियों (जाट, रोर, जट्ट सिख, बिश्नोई, मूला जाट, त्यागी) को नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर पंजाब एंव हरियाणा हाईकोर्ट ने 21 जुलाई तक अंतरिम रोक लगा दी है. कोर्ट के इस फैसले से जहां एक ओर खट्टर सरकार को झटका लगा है. वहीं केंद्र समेत अन्य राजनीतिक पार्टियों को भी करारा जवाब मिला है।
भिवानी के रहने वाले मुरारी गुप्ता ने जनहित याचिका दायर कर नए कानून को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि हरियाणा में जाटों को आरक्षण देने के लिए बनाई गई पिछड़ा वर्ग आयोग की केसी गुप्ता रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है. फिर इस रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण क्यों लागू किया गया है. इसके साथ ही उसने आरोप लगाया गया है कि हरियाणा सरकार ने जाटों के दबाव में आकर उनको आरक्षण दिया है.
याचिका के अनुसार सुप्रीम कोर्ट पहले ही जाटों को आरक्षण देने की नीति को रद्द कर चुका है. राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग सुप्रीम कोर्ट में यह कह चुका है कि जाट पिछड़े नहीं हैं. वह सेना, शिक्षा संस्थानों व सरकारी सेवा में ऊंची पोस्ट पर हैं. गौरतलब है कि फरवरी में हुए वीभत्स जाट आंदोलन के आगे घुटने टेकते हुए हरियाणा सरकार ने 29 मार्च को विधानसभा में जाटों और अन्य पांच समुदायों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए विधेयक पास किया था. इसके तहत पिछड़े वर्ग की नई कैटेगरी 'सी' को जोड़कर कोटे का प्रावधान किया गया था.
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हाईकोर्ट ने इस मामले में हरियाणा सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए 21 जुलाई तक का समय दिया है. लेकिन कोर्ट के फैसले को एकतरफा बताते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि हम इतना लंबा इंतजार नहीं कर सकते हैं. सरकार जल्द से जल्द रोक को हटवाने के लिए हाईकोर्ट जाएगी. हालांकि राज्य सरकार इन नतीजों से पहले ही वाकिफ थी. उसे पता था कि वह जो जाट आरक्षण का पासा फेंक रही है, उसे सिरे से नकार दिया जाएगा. इससे पूर्व की सरकारों ने भी यही सब करने की कोशिश की थी, लेकिन वह भी अपने मंसूबों में पूरी न हो पाई. यहां तक कि पिछले लोकसभा चुनावों से ठीक पहले यूपीए सरकार का केंद्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण देने का निर्णय भी साल भर बाद सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया था.
कब बुझेगी आरक्षण की आग.. |
सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में आदेश दिया था कि आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होगा. लेकिन तब अपने फैसले में अदालत ने यह भी कहा था कि जाट शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की शर्ते पूरी नहीं करते, इसलिए वे आरक्षण के हकदार नहीं है. इसके बावजूद खट्टर सरकार ने पचास फीसदी की लक्ष्मण रेखा लांघ कर पिछड़े वर्ग के लिए एक नई अर्थात् 'सी' श्रेणी बना दी. दरअसल, भाजपा पहले से ही अदालत की भेंट चढ़ चुके जाट आरक्षण पर खेलने की जुगत में लग हुई है. इससे वह जाट समुदाय के बीच अपनी अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब हो सकती है और आरक्षण विधेयक के पास न होने का ठीकरा न्यायालय के सिर फोड़ सकती है.
वहीं दूसरी ओर आरक्षण की आग में जल रहे लोगों पर किसी का भी ध्यान क्यों नहीं जा रहा है. अब वह किस हालत में हैं. जहां तोड़—फोड़ की गई क्या वह घर फिर बस सके? क्या वहां जीवन पटरी पर लौट आया है? नौ दिन चले इस जाट आंदोलन में 30 लोगों ने अपनी जानें गंवाई थीं और 320 लोग घायल हुए थे. क्या उनके परिवार की किसी को भी सुध है. जाट और पाटीदार सम्पन्न परिवारों से आते हैं और वह सरकार को अपने आंदोलन आगे झुकने पर मजबूर कर रहे हैं. हरियाणा के साथ—साथ गुजरात सरकार ने भी पाटीदारों को दस फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की है, लेकिन क्या उसका भी यही हश्र होगा?
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राजस्थान में भी अखिल भारतीय गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने वसुंधरा राजे सरकार से सरकारी नौकरियों में गुर्जर समाज को पांच प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के मामले में स्थिति स्पष्ट करने की मांग करते हुए कहा है कि गुर्जर समाज दो अक्तूबर को दिल्ली में पड़ाव डालेगा. वहीं समिति के प्रमुख कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने राजस्थान सरकार को विशेष पिछड़ा वर्ग के तहत गुर्जर समाज को पांच प्रतिशत आरक्षण देने का मामला केंद्र को भेजा है ताकि संबंधित प्रस्ताव को संविधान की नौंवी अनुसूची में शामिल किया जा सके.
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क्या सरकार को इनकी गीदड़ भभकियों से डर जाना चाहिए? जब बिना आरक्षण प्राप्त तबका मेहनत करके अपने सपनों को साकार कर रहा है, तो ये लोग क्यों बार-बार आरक्षण का राग अलापते रहते हैं? क्यों हर सरकार अपने-अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए इनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो जाती है? क्यों वह अपने चुनावी वादों को पूरा करने में निष्पक्ष और तटस्थ नहीं रह पाती है?
अब समय आरक्षण की नई-नई मांगों को हवा देने का नहीं है, बल्कि इसे तर्कसंगत बनाने का है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आरक्षण की सूची में नई भर्तियों की जगह इसमें से किसी को बाहर करने पर विचार करना होगा. इससे इतर उन युवाओं के बारे में भी सोचना होगा, जो अच्छे शैक्षणिक संस्थानों में जाने व रोजगार पाने की जद्दोजहद में अपने जी जान लगा देते हैं और रोजगार न मिलने पर अपनी जान तक ले लेते हैं.
वैसे, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान में बार-बार उठने वाली आरक्षण की मांग से कहीं न कहीं तीनों राज्यों में बीजेपी ही घिरती नजर आ रही है, क्योंकि तीनों ही राज्यों में उसकी सरकार है. अब देखना होगा कि केंद्र और राज्य सरकारे इससे निपटने के लिए कौन सा रास्ता अपनाती हैं.
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