Hijab verdict by Karnataka HC: तो बात साफ़ हुई, देश कानून से चलेगा धर्म से नहीं
ये वही कानून है जिसने धर्म की कुरीति 'तीन तलाक़','हलाला' से छुटकारा दिलाया और सम्पत्ति का अधिकार दिलाया. कानून की मज़बूती से अपने को मज़बूत बनाओ. तो कुल मिला कर स्वेच्छा से चुनने की आज़ादी पर चिमटा ढोल बजाने वाली अप्पियों और दीदियों से गुज़ारिश की संतुलित चुनाव सोच समझ कर रखिये.
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कानून के हाथ लम्बे होते हैं. ये सुना ही होगा लेकिन कानून का दिमाग संतुलित होता है ये समय समय पर कानून को साबित करना पड़ता है. शायद यही काम आज तीन जज वाली बेंच ने मिल कर किया. मुख्य न्यायाधीश ऋतू राज अवस्थी, न्यायाधीश कृष्णा एस दीक्षित जे एम् ख़ाज़ी ने हिजाब को बैन करने के फैसले को चुनौती देने वाले इस केस पर फैसला 25 फरवरी को ही ले लिया लेकिन ग्यारह दिन तक फैसला सुरक्षित रखा गया. आज 15 मार्च को आये एक संतुलित बयान आया जिसने शिक्षा को धर्म की कटटरता के ऊपर रखते हुए एक फैसला सुनाया. फैसले में हिजाब को बैन करने वाले स्कूल के नियम को चुनौती देने वाले इस केस को ख़ारिज किया गया. इस बेंच ने क्रमवार तरिके से हर सवाल का जवाब दिया.
हिजाब मामले पर सही फैसला कर्नाटक हाई कोर्ट ने बिलकुल सही समय पर दिया है
पहले बिंदु में कोर्ट ने माना है कि हिजाब इस्लाम को मानने के लिए ज़रूरी नहीं. बिल्कुल वैसे ही जैसे बिना घूँघट के हम हिन्दू ही रहते है. यकीन जानो ये ऊपरवाला जो भी हो- राम या रहीम हमारे सर ढंकने के कपड़े से बड़ी सोच है उसकी और ये नीचेवाले तो साड़ी घूंघट हिजाब उम्र कुछ नही देखते. तुम उनके लिए रहोगी मांस का लोथड़ा ही, हिजाब या बेहिजाब!
दूसरे बिंदु में छात्र स्कूल यूनिफॉर्म को मना नहीं कर सकते. शायद लोगों को पता हो कि कुछ कॉलेज भी यूनिफॉर्म मानते हैं और पढ़ने वाले उसे मानते हैं. स्कूल में यूनिफॉर्म मानने का नियम आज से नहीं और इसका विरोध भी इन लड़कियों के दिमाग का हो ये अजीब है. हाँ बचपन से ही धर्म के समर्पण के नाम पर हिजाब की घुट्टी पिला दी जाए तो अलग बात है.
ये घुट्टी चाटना छोड़ना न छोड़ना तुम्हारी बुद्धि पर है लेकिन थोड़ा नज़र घुमाओ और दुनिया देखो, समझो. इस फैसले का एक महत्वपूर्ण बिंदु है जहां कोर्ट ने कहा कि संस्थान के नियम किसी की व्यक्तिगत पसन्द से ऊपर है. ये बिंदु आर्टिकल 25 को अलग नज़रिए से देखता मालूम होता है. संस्थान के नियम ज़रूरी है वरना फौज पुलिस कहीं भी तारतम्यता नही दिखेगी.
बहुत से ऑफिस भी ड्रेस कोड मानते हैं, सालो साल काली पेंट सफेद कमीज़! सोच कर देखिये की अगर यूनिफार्म को बदलने की आज़ादी होती तो उसका नाम 'यूनिफार्म' क्यों ही होता. बाकि ऐसी किसी भी जगह पर जाना न जाना आपके हाथ में है. 'पहले हिजाब फिर किताब' बोल कर या बुलवा कर अपनी पसंद बता दी थी और कोर्ट के फैसले से बच्चियों को ये निर्णय लेने में और आसानी मिलेगी.
किताब दिमाग खोलेगी हालांकि हिजाब का बोझ के तले ये कितना काम करेगा ये देखना होगा. कोर्ट ने इस मुद्दे को आग की तरह हवा देने के पीछे भी अंदेशा जताया है कि कुछ अराजक और अशांति फैलाने वाले चेहरे हिजाब के पीछे हैं. वैसे यहां हम और कोर्ट दोनों की बुद्धि बिलकुल एक सी चली क्योंकि ये तो हम भी जानते है.
पांच साल पहले तक यही बच्चियां बिना हिजाब बेझिझक जाती थी और आज ! वक़्त के साथ मर्दों की नियत और बिगड़ गयी या देश की शांति और सौहार्द और दक्षिण में शिक्षा का बढ़ता प्रतिशत किसी की आंखों में खटक गया ये सतर्क हो कर समझना होगा. तो कुल मिला कर स्वेच्छा से चुनने की आज़ादी पर चिमटा ढोल बजाने वाली अप्पियों और दीदियों से गुज़ारिश की संतुलित चुनाव सोच समझ कर रखिये.
स्त्री पुरुष की बराबरी की लड़ाई में अक्सर ऐसे भटकाव वाली मोड़ पर पुरुषो की जमात आपका हाथ पकड़ कर उधर ही ले जाएगी जहां से आप चली थी. जहां आप वो ही सोचेंगी जो आपकी सोच में भरा जायेगा. ऐसे भटकाव से बचिए. कानून ने इस फैसले से एक बार फिर साबित किया है कि धर्म से देश नही चलता न चलेगा.
धर्म को किसी भी हाल में अपनी शिक्षा और अपने स्वावलंबन के ऊपर मत रखोये वही कानून है जिसने धर्म की कुरीति 'तीन तलाक़', 'हलाला' से छुटकारा दिलाया और सम्पत्ति का अधिकार दिलाया. कानून की मज़बूती से अपने को मज़बूत बनाओ. अब बारी तुम्हारी है कि धर्म को अपनी ज़िन्दगी की बेड़ी के स्थान पर अपनी ताकत बनाओ. उड़ो खुले आसमान में.
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