CAA बांग्लादेश-अफगानिस्तान से ज्यादा पाकिस्तान को बेनकाब करता है
एक तरफ Citizenship amendment act भारत में सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ नया कानून Pakistan, Bangladesh और Afghanistan में अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीड़न पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्रित करता है.
-
Total Shares
संभव है कि नरेंद्र मोदी सरकार (Modi Government)नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act) को लेकर कई समस्याओं का सामना कर रही है, लेकिन देश की सरकार के इस कदम का तीन पड़ोसी देशों, जिनके नागरिक भारत में अवैध अप्रवासी के रूप में रह रहे हैं, पर गहरा असर पड़ा है. जिनमें से कुछ अब एक बार फिर राष्ट्रीयता हासिल कर सकते हैं. आंतरिक स्तर पर, नागरिकता संशोधन अधिनियम सत्तारूढ़ भाजपा के राष्ट्रवादी हिंदुत्व को दुनिया के सामने दर्शाता है. कानून, गैर-मुस्लिमों के धार्मिक उत्पीड़न खासतौर से वो लोग जो पाकिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना सह रहे हैं उनपर ध्यान केंद्रित करता है. तीन देशों में, जिनके नागरिक नागरिकता संशोधन अधिनियम के लक्षित लाभार्थी हैं, पाकिस्तान (Pakistan Opposing CAA) नए कानून के विरोध में सबसे अधिक मुखर रहा है और लगातर इस मुद्दे पर भारत को घेर रहा है. संयोग से, यह पाकिस्तान ही है जिसने अपने देश में रह रहे अल्पसंख्यकों का सबसे ज्यादा उत्पीड़न किया है और शायद इसी कारण तमाम अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों और मानवाधिकार समूहों ने भी उसकी तीखी आलोचना की है.
नागरिकता संशोधन अधिनियम, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीड़न पर बात करता है
साल 2019 की शुरुआत में, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ब्रुसेल्स में आसिया बीबी मामले में अपने तर्क पेश किये थे और बताया था कि प्रताड़ित अल्पसंख्यकों पर पाकिस्तान का रवैया क्या है. ध्यान रहे कि ईशनिंदा के आरोप में आसिया बीबी को 8 साल जेल में बिताने पड़े थे साथ ही उसे मृत्युदंड की भी सजा हुई थी. पाकिस्तान से आ रहीं रिपोर्ट्स को अगर सही मानें तो गुजरे 30 सालों में केवल ईशनिंदा के कारण अल्पसंख्यक समुदाय के 15,000 लोगों पर मुक़दमे हुए हैं.
बात पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की चल रही है तो बता दें कि पाकिस्तान के पत्रकार और पूर्व सांसद फ़राहनाज़ इसपाहानी ने कई प्लेटफार्मों पर पाकिस्तान को अल्पसंख्यकों से मुक्त करने की भी बात की है. अल्पसंख्यक अधिकार समूह इंटरनेशनल के अनुसार, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के मद्देनजर पाकिस्तान 2019 में नौवां सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश है. बात भारत की हो तो इस लिस्ट में भारत 54 वें स्थान पर है.
अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में नागरिकता संशोधन अधिनियम इस पर भी ध्यान केंद्रित करता है कि पाकिस्तान अपने अल्पसंख्यकों के साथ कैसे और किस तरह का बर्ताव करता है. यह हाल ही में तब स्पष्ट हुआ जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने अमेरिकी समकक्ष माइकल पोम्पिओ के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. नागरिकता प्रदान करने की एक कसौटी के रूप में जब आस्था को लेकर सावला हुआ तो इसपर जयशंकर ने कुछ देशों से उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों की जरूरतों को इंगित किया. इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर ध्यान केंद्रित किया गया था.
पोम्पिओ ने अपनी प्रतिक्रिया में भारत में इस बहस को जोरदार रूप से रेखांकित किया. तर्क ये रखा गया कि भारत के भारत के पड़ोस में धार्मिक उत्पीड़न एक समस्या है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के दायरे में ईसाई अवैध प्रवासियों को शामिल करना भारत को राजनयिक लाभ देगा.
आपको बता दें कि पोम्पिओ का ये कमेंट उसके अगले दिन आया था जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जिनेवा में आयोजित शरणार्थियों के ग्लोबल फोरम में इस मुद्दे को उठाया था. तब इमरान ने कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम से शरणार्थी संकट पैदा हो सकता है क्योंकि मुसलमान भारत से भाग सकते हैं और पाकिस्तान उन्हें शरण नहीं देगा.
गौरतलब है कि इससे पहले, पाकिस्तान की संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर भारत को नागरिकता संशोधन अधिनियम को रद्द करने की मांग की थी. मामले में दिलचस्प बात ये है कि इसमें पाकिस्तान ने भारत को धर्मनिरपेक्षता और समाज के बहुलतावादी स्वरूप के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की याद दिलाई थी, लेकिन प्रस्ताव ने अपना मूल्य इसलिए खोया क्योंकि इसे इस्लामी गणतंत्र की नेशनल असेंबली द्वारा पारित किया गया जिसकी ईशनिंदा कानून पर खुद नीयत साफ़ नहीं थी.
वहीं बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के संबंध में, भारत ने तर्क दिया कि मौजूदा वितरण ने अपने देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं. लेकिन अतीत में, भारत ने तर्क दिया था कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को सताया गया है. यह कथन बांग्लादेश और अफगानिस्तान दोनों सरकारों पर पूरी तरह सूट करता है. नए नागरिकता कानून पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए बयानों के बाद बांग्लादेश की प्रारंभिक प्रतिक्रिया दो द्विपक्षीय यात्राओं को बंद करने के आई थी.
बात अगर शेख हसीना की सरकार की हो तो वो बांग्लादेश में ब्लॉगर्स पर हमले के कारण अंतरराष्ट्रीय संगठनों के निशाने पर थीं. कहा यहां तक गया था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के सुरक्षित नहीं होने को मान्य करने के लिए लाया गया. लेकिन जैसा कि भारत, बांग्लादेश में शेख हसीना की अवामी लीग के धार्मिक उत्पीड़न पर सख्त हुआ चीजें संभल गयीं. बांग्लादेश सरकार ने एक बयान जारी कर कहा कि अगर बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से भारत में रहते पाए गए तो वह अपने नागरिकों को वापस ले लेंगे.
अफगानिस्तान ने भी अल्पसंख्यकों विशेषकर सिखों के उत्पीड़न से इनकार किया. लेकिन इस तथ्य को भी माना गया कि वहां अल्पसंख्यकों के साथ उत्पीड़न तबी हुआ जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था. साथ ही अफगानिस्तान की तरफ से ये भी कहा गया कि वो उन सिखों का स्वागत करने को तैयार है जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण अफगानिस्तान से चले गए थे.
यह पाकिस्तान को मुख्य रूप से खुद के लिए निर्भर होने के लिए छोड़ देता है क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम दो चीजों पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्रित करता है: पहला है अवैध रूप से भारत में रहने वाले लोग और दूसरा ये कि भारत के पड़ोस में धार्मिक उत्पीड़न एक तथ्य है क्योंकि ये लोग बचने के लिए अपने देशों से भाग गए. इन्हें खतरा था कि इन्हें अल्पसंख्यक होने के कारण बहुसंख्यक आबादी का प्रकोप या फिर उत्पीड़न झेलना पड़ेगा.
अल्पसंख्यकों के धार्मिक शोषण के मुद्दे पर पाकिस्तान पर ध्यान केंद्रित करना सीएए के मद्देनजर दिलचस्प है क्योंकि भारत में रहने वाले अधिकांश अवैध प्रवासी बांग्लादेश से आए हैं. बहरहाल, मोदी सरकार की बड़ी चुनौती देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक भारतीय मुसलमानों के बीच से डर निकालना है. उन्हें यह डर बना हुआ है कि राष्ट्रव्यापी एनआरसी इसलिए ही लाया जा रहा है ताकि भारत को आसानी से हिंदू राष्ट्र बनाया जा सके.
ये भी पढ़ें -
शाहीन बाग का गुमनाम CAA protest ही असली है बाकी सब 'दंगा' है!
Army chief Bipin Rawat ने सही बात कहने के लिए गलत समय, गलत विषय चुना!
CAA-NRC: अमित शाह ने तैयार किया कंफ्यूजन का 'डिटेंशन कैंप'!
आपकी राय