UP Police Commissioner System: नौकरशाही का मिथक तोड़ने में लगे 41 साल
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री Yogi Adityanath के प्रयासों से UP Police Commissioner System लागू हो गया है. माना जा रहा है कि इस सिस्टम से जहां एक तरह अपराधों में कमी आएगी तो वहीं दूसरी तरफ पुलिस को भी नए अधिकार मिलेंगे जिससे वो मजबूत होगी.
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ये 1978 का दौर था. मुख्यमंत्री के तौर पर रामनरेश यादव यूपी में जनता पार्टी की सरकार की कमान संभाल रहे थे. कुछ नया करने की कोशिश में उन्होंने यूपी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम (UP Police Commissioner System) लागू कर दिया. उत्तर प्रदेश अचानक से सुर्खियों में आ गया. नए प्रयोग के लिए रामनरेश यादव की तारीफ हुई. पर इस तारीफ के आलोचनाओं में बदलने में महज 24 घंटे लगे. कानपुर में पहला पुलिस कमिश्नर (First Police Commissioner in UP) बनाए जाने के बाद आईपीएस वासुदेव पंजानी काम संभालने निकल पड़े थे. इसी बीच तस्वीर उलट गई. विरोध की कुछ आवाजें उठते ही मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने पुलिस कमिश्नर सिस्टम वापस ले लिया. एक दिन के पुलिस कमिश्नर वासदेव पंजानी को रास्ते में ही गंगा पुल से वापस लौटना पड़ा.
माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में कमिश्नर सिस्टम लागू किये जाने के बाद सूबे की पुलिस के अधिकारों में इजाफा होगा
इस पूरी घटना से उत्तर प्रदेश की नौकरशाही देश भर में चर्चा की वजह बनी. सरकार की किरकिरी भी हुई. नतीजा, यूपी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम मिथक बन कर रह गया. अगले 41 सालों तक कोई भी मुख्यमंत्री इस मिथक को तोड़ने का ना तो मन बना पाया ना ही साहस जुटा पाया. धीरे धीरे देश के तमाम राज्यों के महत्वपूर्ण शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होता चला गया. पर यूपी अत्याधुनिक पुलिसिंग की इस व्यवस्था से अछूता ही रहा.
लोग ये मान बैठे कि यूपी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम अब शायद कभी लागू नहीं हो पाए. कानून बनाने वालों के साथ ही साथ कानून चलाने वालों की धारणा भी ऐसी ही बनती चली गई कि उत्तर प्रदेश में इस पुलिसिंग की कोई जरूरत नहीं है और इसके बगैर भी काम चल सकता है. हालांकि बीच बीच में प्रदेश ही नहीं उत्तर प्रदेश की सीमा से सटी देश की राजधानी से भी पुलिस कमिश्नर सिस्टम के पक्ष में आवाजें उठती रहीं.
पर ना तो किसी को यकीन था, ना ही कोई ये यकीन दिला पाया कि यूपी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम कभी लागू हो पाएगा. कई रिटायर्ड पुलिस अधिकारी तो सिर्फ इसीलिए मशहूर हुए क्योंकि उन्होंने पुलिस कमिश्नर सिस्टम के पक्ष में कागजी से लेकर अदालती लड़ाई भी लड़ी. पर कामयाबी उन्हें भी नहीं मिली. पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू ना करने के पीछे सरकारों की अपनी मजबूरी भी थी.
नौकरशाही का एक बड़ा और प्रभावी तबका इसके बिल्कुल खिलाफ था.साथ ही राजनीतिज्ञों में भी ये डर भर दिया गया था कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम का मतलब होगा पुलिस को फ्री हैंड और पुलिस के फ्री हैंड होने का अर्थ होगा सियासी दखलंदाजी से पुलिस की मुक्ति. इस डर के चलते ही सरकारें पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने से घबराती रहीं.पुलिस को तमाम सारे अधिकार देने से कतराती रहीं. भले ही बेहतर कानून व्यवस्था के लिए इसकी शिद्दत से जरूरत महसूस की जाती रही.
कहा ये भी जा रहा है कि कमिश्नर सिस्टम के बाद अपराधों का ग्राफ भी काफी नीचे आएगा
दरअसल सरकारें खुद को कभी इस बात के लिए मानसिक तौर पर तैयार ही नहीं कर पाईं कि पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से पूरी तरह आजाद कर सिर्फ जनता के लिए जवाबदेह बनाना चाहिए. पुलिस को ये अधिकार मिलना ही चाहिए कि वह हर उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर सके, जो किसी भी तरह के अपराध में या तो लिप्त है या उसे संरक्षण दे रहा है. क्षेत्रीय दलों की सरकारों ने तो कमिश्नर सिस्टम नाम तक से दूरी बनाए रखी.
जाहिर है ऐसे में 41 साल बाद अगर राज्य में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने का मिथक टूटा है तो राज्य के मुखिया योगी आदित्यनाथ की दाद देनी होगी. उन्होंने इस फैसले को लागू करने में दृढ इच्छाशक्ति भी दिखाई है और पुलिस को अपार शक्तियां देने का साहस भी. यूपी पुलिस को उम्मीद से ज्यादा मिला है. असल में योगी पहले ही दिन से राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर कुछ अलग करने में जुटे हैं. इसके परिणाम दिख भी रहे हैं.
यूपी में माफिया तंत्र टूटा है. अपहरण व रंगदारी उद्योग बंद हो चुका है. जिन माफियाओं के डर से लोग जान की सलामती की गुहार लगाते थे, महफूज ठिकाना ढूंढते थे. आज वे ही माफिया अदालतों में गुहार लगा रहे हैं कि पुलिस उन्हें गलत तरीके से मार सकती है. ये माफिया खुद डरे हुए हैं और जेलों से बाहर आने को तैयार नहीं. आंकड़ों के मुताबिक योगी सरकार में हुई पुलिस मुठभेड़ों मे अब तक सौ के करीब अपराधी ढेर हो चुके हैं.
ऐसे में परंपरागत पुलिसिंग से आगे बढ कर स्मार्ट पुलिसिंग की दिशा में योगी सरकार ने जब कमिश्नर सिस्टम लागू करने जैसा अप्रत्याशित कदम उठाया है, तब उनकी प्रशंसा हो रही है. सभी पूर्व पुलिस महानिदेशकों समेत अधिकांश नौकरशाहों ने इस फैसले की तारीफ की है. मुख्यमंत्री योगी के इस कदम के पीछे एक बड़ा कारण यूपी की नौकरशाही में तैरने वाली वे घटनाएं भी हैं जिनसे प्रदेश के आमजन भी बहुत हद तक वाकिफ है.
यूपी पुलिस के इतिहास में कई मौकों पर ऐसे वाकए देखने को मिले जब जानलेवा खतरों से घिरी पुलिस बल प्रयोग के लिए सरकारी औपचारिकता पूरी करने की खातिर सक्षम अधिकारियों से अनुमति की गुहार लगाती रही. या तो उसे अनुमति नहीं मिली या फिर मिली भी तो बहुत देर से. इसके चलते बहुत से मौकों पर पुलिस के जवान घायल हुए. उनका मनोबल भी टूटा. पुलिस कमिश्नर सिस्टम ने इसकी गुंजाइश ही खत्म कर दी है.
अब पुलिस के अनुभवी, वरिष्ठ और जवाबदेह अफसरों को ही तय करना है कि उन्हें कब और कितना बल प्रयोग करना है. इसके लिए किसी मजिस्ट्रेट की अनुमति की जरूरत अब नहीं होगी. जाहिर है ऐसे में उपद्रवियों को अराजकता फैलाना अब महंगा पड़ सकता है. नई व्यवस्था यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली में सिंगल विंडो सिस्टम की तरह काम करेगी.
जहां अब गुंडे, माफियाओं और सफेदपोशों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के लिए पुलिस की फाइलें एक दफ्तर से दूसरे दफ्तरों का चक्कर काट काट मोटी नहीं होंगी. बल्कि खुद पुलिस महकमे के बड़े और अनुभवी अधिकारियों को ये निर्णय लेने का अधिकार होगा कि वे ऐसे तत्वों के खिलाफ कब और कैसी कार्रवाई चाहते हैं.
इस फैसले को लागू कर मुख्यमंत्री योगी ने राज्य की नौकरशाही को भी ये संदेश दिया है कि वे लोगों के हित में कड़े और बड़े निर्णय लेने से कतई पीछे नहीं हटेंगे. अब जबकि यूपी के दो शहरों लखनऊ और नोएडा में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो चुका है तब लोगों की आकांक्षाएं भी बढी हुई हैं. ऐसे में उन अधिकारियों की जवाबदेही बढ जाती है जिन्हें सरकार ने अहम जिम्मेदारियां दी हैं. इन अधिकारियों के सामने आम जनता के विश्वास पर खरे उतरने के साथ ही साथ सरकार की कसौटी पर खरे उतरने की भी चुनौती रहेगी.
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