Police commissioner system यूपी की कानून-व्यवस्था के लिए क्यों गेम चेंजर है
अंग्रेजों ने इंग्लैंड में जांची परखी पुलिस व्यवस्था के तहत पुलिस कमिश्नर प्रणाली (Commissioner System) को इन शहरों में लागू किया था, जहां से वे न केवल अपना व्यापार करते थे, बल्कि इनके फोर्ट्स से ब्रिटिश शासन के अधीन आने वाली कानून और व्यवस्था पर भी नियंत्रण रखते थे.
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उत्तर प्रदेश में पहली बार पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने को योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार ने मंजूरी दे दी है. यूपी के पूर्व डीजीपी बृजलाल ने इसे बेहद ही आसान तरीके और अच्छे ढंग से समझाया है. वह बताते हैं- पुलिस आयुक्त प्रणाली देश की एक बहुत पुरानी प्रणाली है, जिसको अंग्रेज शासकों ने कलकत्ता(कोलकाता), बॉम्बे (मुंबई) तथा मद्रास (चेन्नई) में सबसे पहले लागू किया था. उन्होंने इंग्लैंड में जांची परखी पुलिस व्यवस्था के तहत पुलिस कमिश्नर प्रणाली (Commissioner System) को इन शहरों में लागू किया था, जहां से वे न केवल अपना व्यापार करते थे, बल्कि इनके फोर्ट्स से ब्रिटिश शासन के अधीन आने वाली कानून और व्यवस्था पर भी नियंत्रण रखते थे.
कोलकाता में यह प्रणाली 1856 में लागू की गई थी और एस वाऊचोप पहले पुलिस कमिश्नर बनाए गए जो 1863 तक उस पद पर रहे. आजादी के बाद सुरेंद्र नाथ चटर्जी कोलकाता के पहले हिंदुस्तानी पुलिस आयुक्त बनाए गए. मुंबई में यह व्यवस्था 14 दिसंबर 1864 में लागू की गई और सर फ्रैंक साउटर पहले पुलिस कमिश्नर बने जो उस पद पर 24 साल रहे. उसी समय मद्रास(चेन्नई) में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की गई. आज देश के 71 महानगरों में यह पुलिस आयुक्त प्रणाली सफलता पूर्वक चल रही है, जिसमें देश की राजधानी दिल्ली भी है, जहां यह व्यवस्था 1978 में लागू की गई थी. उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी जेएन चतुर्वेदी पहले पुलिस आयुक्त (दिल्ली) बने थे.
योगी आदित्यनाथ ने यूपी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने को मंजूरी दे दी है.
पुलिस कमिश्नर प्रणाली में सीआरपीसी के अंतर्गत जिला मजिस्ट्रेट को दिए गए मजिस्ट्रियल पावर पुलिस आयुक्त को दिए जाते हैं. भीड़ को तितर-बीतर करने, बल प्रयोग करने जिसमें लाठीचार्ज से लेकर गोली चलाने तक की आवश्यकता कभी-कभी पड़ जाती है, बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के यह संभव नहीं होता है. कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट में एक मत न होने के कारण आवश्यक बल प्रयोग में देरी हो जाती है. जिसका असर यह होता है कि उपद्रवी भी ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं और जहां टीयर गैस और लाठीचार्ज करने के काम चल जाता है, वहां पुलिस को मजबूर होकर गोली चलानी पड़ती है.
कभी कभी तो मजिस्ट्रेट समय से मौके पर नहीं जाते जिससे पुलिस सामान्य प्रक्रियाओं के तहत शांति व्यवस्था बनाने में अक्षम महसूस करने लगती है. बल प्रयोग करने के बाद कुछ मजिस्ट्रेट बल प्रयोग करने के आदेश पर दस्तखत न करके अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं. इस तरह से पुलिस विषम परिस्थितियों में अधिकार विहीन दायित्वों का निर्वहन करती है. साल 1992 में वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक मैं था, उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत को मेरठ मंडल में ही गिरफ्तार करने का आदेश दिया.
मेरठ जिले के किठौर में डीएम, एसएसपी, बुलंदशहर, गाजियाबाद को भी कहा गया कि सभी मौजूद रहेंगे. दोनों जिलों के डीएम, एसएसपी आ गए, लेकिन मेरे साथ तैनात रहे डीएम तुलसी गौर न तो खुद गए और न ही किसी मजिस्ट्रेट को भेजा. मैंने टिकैट को गिरफ्तार कर लिया और मेरे पास उस वक्त कोई मजिस्ट्रेट नहीं था जो गिरफ्तारी के वारंट पर हस्ताक्षर कर सके. वायरलेस पर मुझे एसडीएम निखिल शुक्ला की आवाज सुनाई पड़ी. मैंने उन्हें बुलाकर तब वारंट पर दस्तखत कराए और महेंद्र सिंह टिकैट को प्रयागराज(इलाहाबाद) की नैनी जेल भिजवाया. पुलिस आयुक्त प्रणाली में ये पूरे अधिकार पुलिस कमिश्नर में निहित होते हैं. ऐसी स्थिति में बल प्रयोग करने का अधिकार मिलने से किसी कार्रवाई के लिए किसी मजिस्ट्रेट की आवश्यकता नही पड़ती है.
बहुत सी ऐसी परिस्थितियां भी उत्पन्न होती हैं कि पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं जो अब इस व्यवस्था के लागू होने से समाप्त हो जाऐंगें और पुलिस को भी ये मौका नहीं मिलेगा कि वे असफलता का आरोप किसी अन्य पर टाल सके. ऐसी स्थति में जहां उनको अधिकार दिए गए हैं वहीं पर उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ गई है.
अपराध नियंत्रण में गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून धारा 107/116/151 सीआरपीसी, धारा 109/110 सीआरपीसी में कार्रवाई अपराध नियंत्रण के लिए बहुत आवश्यक होती है, जिसमे कार्रवाई जिला मजिस्ट्रेट स्तर से की जाती है. धारा 107/116 सीआरपीसी के अंतर्गत पुलिस जिला मजिस्ट्रेट को प्रेषित करती है कि अमुख स्थान पर दो परिवारों, दो व्यक्तियों और समूहों में तनाव व्याप्त है जो किसी भी समय गंभीर अपराध का रूप ले सकता है अत इन्हें भारी मुचलके पर पाबंद किया जाए.
अकसर देखा जाता है कि एसडीएस कोर्ट में पुलिस की रिपोर्ट पहुंचने के बाद भी अकसर कोई कारर्वाई नहीं होती और कभी होती भी है तो बहुत देर बाद, जिससे आपराधिक घटना घटित हो जाती है और उसके लिए पुलिस को ही जिम्मेदार माना जाता है. यह धारा 107/116/151 में गिरफ्तारी के साथ दो पार्टियों को पाबंद करने के अधिकार पुलिस उपायुक्त/सहायक पुलिस आयुक्त को होगा जिससे त्वरित कार्रवाई करके संभावित शांति भंग और आपराधिक घटनाओं को रोका जा सकेगा. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, गैंगस्टर एक्ट, गुंडा एक्ट में भी पुलिस आयुक्त को अधिकार मिलने से अपराधियों पर समय से कार्रवाई की जा सकेगी जो कभी-कभी एक मत न होने के कारण या तो कार्रवाई होती नहीं थी और अगर हुई भी तो उसमे में देरी होती थी. जो अब नहीं होगी.
पुलिस द्वारा अवैध असलहों की बरामदगी भारी मात्रा में की जाती है. लेकिन जब तक जिलाधिकारी की अनुमति नहीं मिलती तब तक विवेचक न्यायालय में चार्जशीट नहीं लगा सकता है. इसमें विवेचकों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है और थानों में काम छोड़कर जिला अधिकारी की अनुमति के लिए कई कई दिनों तक कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं. अब यह अधिकार पुलिस आयुक्त को मिलने पर समय से न्यायालय में चार्जशीट प्रेषित की जा सकेगी.
शहरों मे धरना, प्रदर्शन, मनोरंजन के कार्यक्रमों में लोग अनुमति के लिए जिलाधिकारी को आवेदन करते हैं, पुलिस द्वारा आख्या मांगी जाती है. तब अनुमति पर आयोजन करने पर निर्णय हो पाता है. अब ऐसे आयोजनों पर पुलिस आयुक्त अपने स्तर से सीधे निर्णय ले सकेगी.
कानून व्यवस्था का कार्य जिलाधिकारी तथा उनके अधीनस्थों के पास से हट जाने के कारण उन्हें अपने जिले में विकास के कार्यों में पूरा समय मिलेगा जो पहले संभव नहीं पाता था. विकास सरकार की प्राथमिकता है, जिससे कमिश्नर प्रणाली के जनपदों में पब्लिक को शीघ्र लाभ मिलेगा. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ जी ने अपनी दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति के कारण प्रदेश के दो महानगरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली संभव हो पाई है.
धर्मवीर कमीशन ने आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार में अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें महानगरों में बेहतर पुलिस व्यवस्था के लिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की संस्तुति की थी. उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव ने 1978 में कानपुर में ये प्रणाली लागू की थी. वासुदेव पंजानी को कानपुर का पुलिस आयुक्त नियुक्त भी कर दिया था. परंतु बाद में उन्होंने इसे वापस ले लिया. क्योंकि उस सरकार में इसे लागू करने की इच्छाशक्ति नहीं थी. तब से इस प्रणाली को लागू करने का मामला लंबित रहा है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा इस प्रणाली को प्रदेश के दो शहरों में लागू कर ऐतिहासिक काम किया है और वे इसके लिए हमेशा याद किए जाएंगे. पुलिस की भी जवाबदेही बढ़ी है और अब उनका कर्तव्य बनता है कि मुख्यमंत्री की अपेक्षाओं पर खरे उतरे और पुलिसिंग का ऐसा आयाम कायम करें जिससे वहां की जनता को लाभ मिले और कानून व्यवस्था की स्थिति को बहुत अच्छा बनाया जा सके. विकास तब तक संभव नहीं हो पाता जब तक वहां की कानून व्यवस्था ठीक नहीं होती है. इस प्रणाली से इन महानगरों में विकास को गति मिलेगी और बेहतर कानून व्यवस्था होने से व्यापारी व निवेशकों को उद्योग-धंधे लगाने में प्रोत्साहन मिलेगा जिससे रोजगार सृजित होंगे और प्रदेश के विकास की रफ्तार तेज होगी.
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