जब सेंगर-चिन्मयानंद से दिक्कत नहीं तो गोपाल कांडा अछूत क्यों?
गोपाल कांडा अभी बीजेपी के सपोर्ट में खड़े भर हुए हैं - और बवाल मच गया है. बीजेपी ऐसे ही बाबू सिंह कुशवाहा और डीपी यादव को लेकर भी बवाल हो चुके हैं - गोपाल कांडा के केस में क्या होता है देखना बाकी है.
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गोपाल गोयल कांडा बीजेपी को समर्थन देते हैं या नहीं. बीजेपी गोपाल कांडा से समर्थन लेती है या नहीं - ये सब क्या बीजेपी को तय नहीं करने देना चाहिये?
जब बीजेपी को हरियाणा के लोगों ने सबसे बड़ी पार्टी बनाया है. जब हरियाणा के लोगों ने बीजेपी को पिछली बार से तीन फीसदी ज्यादा वोट दिया है तो क्या आगे का रास्ता खुद बीजेपी नहीं बल्कि कोई और तय करेगा?
अब तो ये बीजेपी की सोच पर निर्भर करता है कि वो किसे अपराधी मानती है - अगर गोपाल कांडा को वो महज एक आरोपी और लालू प्रसाद को अपराधी मानती है तो कानूनी नजरिये से गलत क्या है?
बेशक गोपाल कांडा तिहाड़ हो आये हैं तो इससे क्या हो गया? ऐसे बहुत नेता हैं जो तिहाड़ हो आये हैं?
अगर जेल जाने से पहले तक कुलदीप सेंगर यूपी की बीजेपी सरकार में 'माननीय' बने रह सकते हैं - और चिन्मयानंद पर आरोप लगाने वाली यौन शोषण की शिकार लड़की भी जेल भेजी जा सकती है तो गोपाल कांडा के नाम पर इस कदर लोग मुंह क्यों बना रहे हैं?
उमा भारती ने तो बस अपना धर्म निभाया है
देखा जाये तो बीजेपी की बुजुर्ग नेता उमा भारती ने गोपाल कांडा को लेकर विरोध जता कर बस अपना धर्म निभाया है, ताकि परलोक में भी वो डंके की चोट पर कह सकें कि प्रतिकूल हालात में भी वो कभी नहीं बदलीं - उनके लिए भी जो कभी उनके बेहद करीबी रहे. विरोध के मामले में उमा भारती अकेली पड रही हैं क्योंकि महिला मोर्चा खामोश है.
हरियाणा चुनाव के दौरान जब अशोक तंवर ने कांग्रेस में बगावत कर दिया तो कहा था कि पिछले छह महीने में उनके पास बीजेपी से तीन बार ऑफर आये थे - लेकिन उन्होंने मना कर दिया. अशोक तंवर के इस दावे को फौरन ही हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने खारिज कर दिया. मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि अगर बीजेपी ने अशोक तंवर को आमंत्रित किया होता तो वो पार्टी ज्वाइन कर चुके होते.
खट्टर ने अशोक तंवर को नो-एंट्री का बोर्ड दिखाते हुए कह दिया कि वो बीजेपी में एंट्री के काबिल हैं ही नहीं. तभी खट्टर ने किसी भी पार्टी के नेता के लिए बीजेपी ज्वाइन करने की दो शर्तें भी बतायीं - एक जिनका 'अतीत साफ सुथरा' हो और जिनके ऊपर को 'धब्बा' न हो.
असल बात तो ये है कि खट्टर का ये पैमाना बिलकुल किताबी था और अब तो उनके ऐसे बयान देने के लिए कोई आधार भी नहीं बचा है. बीजेपी की थोड़ी भी सीटें और आ गयी होतीं तो शायद खट्टर एक बार फिर मैदान में मजबूती से डटे रह कर कह सकते थे कि वो अपने बयान पर कायम हैं, ताउम्र रहेंगे - और कांडा को तो वो बीजेपी में घुसने नहीं देंगे. खट्टर के हिसाब से देखें तो गोपाल कांडा का अतीत भी साफ सुथरा नहीं है और जो धब्बा लगा है वो बगैरा किसी अदालती आदेश के धुलने से रहा.
मजबूरी तो ऐसी ही होती है, वरना खट्टर और बलात्कार के केस में जेल में सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम की पुरानी तस्वीरें तो अब भी सोशल मीडिया पर नजर आ ही जाती हैं.
हरियाणा के निर्दलीय विधायकों के साथ बीजेपी को सपोर्ट करने जा रहे गोपाल कांडा...
वे दिन तो कब के पीछे जा चुके जब बीजेपी की महिला मोर्चा को गोपाल कांडा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना पड़ा था - तब की राजनीतिक जरूरत और थी. अब की पूरी तरह अलग है. तभी तो उमा भारती भी अकेली पड़ जा रही हैं. मुश्किल तो ये है कि अगर बीजेपी ने तेजी नहीं दिखायी तो फिर से कांग्रेस का पुराना शासन लौट आएगा. बड़ी मुश्किल से तो मनोहर लाल खट्टर ने पांच साल तक जीरो-करप्शन वाली सरकार दी है.
अगर उमा भारती भी सिर्फ गोपाल कांडा को लेकर ट्वीट करतीं तो वो भी सवालों के घेरे में होतीं - लेकिन उन्नाव रेप को लेकर उमा भारती का पुराना ट्वीट भी नहीं भूला जाना चाहिये.
आज हम सब विभिन्न स्थानों पर इसी मुद्दे पर उपवास पर बैठे। वहां मीडिया के मित्रों ने मुझसे उन्नाव के विषय पर सवाल किए, यह वाजिब सी बात है सवाल होने ही थे क्योंकि यह जघन्यतम कृत हुआ है। मैंने जो कहा वह इस प्रकार है-
— Uma Bharti (@umasribharti) April 12, 2018
सिर्फ कुलदीप सेंगर ही क्यों उमा भारती ने तो चिन्मयानंद केस में भी स्टैंड नहीं बदला. साफ साफ कह दिया कि वो हमेशा बेटियों के साथ रही हैं और जो भी बेटियों का उत्पीड़न करेगा, उसके विरोध में रहेंगी. ध्यान देने वाली बात ये है कि राम मंदिर आंदोलन में स्वामी चिन्मयानंद भी उमा भारती के साथ रहे थे - और बीजेपी में बगावत कर उमा भारती ने अपनी भारतीय जनशक्ति पार्टी बनायी तो भी चिन्मयानंद उनके साथ खड़े रहे.
कांडा से पहले भी बीजेपी में बवाल हो चुके हैं
बीजेपी में दागी नेताओं की एंट्री का एक मामला 2012 का भी है - बाबू सिंह कुशवाहा का. वही बाबू सिंह कुशवाहा जो कभी मायावती के करीबी मंत्री हुआ करते थे और जिसे NRHM घोटाले में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था.
बाबू सिंह कुशवाहा के मामले का उमा भारती से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यूपी बीजेपी के नेता विनय कटियार ने उमा भारती के प्रभाव को कम करने के लिए ही तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी को बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में लेने की सलाह दी थी.
विधानसभा चुनाव से पहले बाबू सिंह कुशवाहा को लेकर बीजेपी में खूब बवाल हुआ मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो खुल कर इस बात का विरोध किया था. तब योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में एक प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था, 'हम इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते कि जिन्हें हत्या का अभियुक्त बनाना चाहिए, उनके प्रति हमदर्दी...' इसके साथ ही योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी छोड़ने तक की धमकी दे डाली थी.
बाद में कुछ बीजेपी नेता बाबू सिंह कुशवाहा को इस बात के लिए राजी करने में जुट गये कि वो खुद ही बीजेपी छोड़ दें और एक दिन हुआ भी ऐसा ही.
बीजेपी से जुड़ा एक वाकया तो 2004 का भी है जब यूपी के बाहुबली नेता डीपी यादव को पार्टी में शामिल करने का फैसला हुआ - लेकिन तब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ऐतराज के चलते यादव को अलग होना पड़ा. याद रहे डीपी यादव को शिवपाल यादव भी समाजवादी पार्टी में शामिल कराना चाहते थे लेकिन अखिलेश यादव के अड़ जाने के कारण पीछे हटना पड़ा.
अब गोपाल कांडा कोई पी. चिदंबरम या डीके शिवकुमार जैसे 'आपराधिक छवि' वाले नेता तो हैं नहीं. अगर शरद पवार भी अपना राजनीतिक तेवर नहीं दिखाते और राहुल गांधी की तरह कमजोर पड़ गये होते तो वो भी एजेंसियों के चक्कर खा रहे होते. बीजेपी ज्वाइन करने से महीने भर पहले ही तो टॉम वडक्कन ने कहा था - बीजेपी में जाने के बाद सभी पवित्र हो जाते हैं. हिमंत बिस्वा सरमा, मुकुल रॉय और नारायण राणे जैसे नेताओं के नाम इस सूची में पहले ही आ जाती है. गोवा में बीजेपी जिन्हें मटका किंग का तमगा दे चुकी थी चंद्रकांत कावलेकर भी तो अब पाक साफ हो ही चुके हैं.
वैसे जिस कदर बवाल चल रहा है, मुमकिन है गोपाल कांडा को भी एक बार बाबू सिंह कुशवाहा जैसे व्यवहार की सलाह दी जाये लेकिन ये जरूरी भी तो नहीं कि वो अपने बढ़े हुए कदम पीछे खींच लें.
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