काशी तो क्योटो नहीं बना, लेकिन क्योटो जरूर बनारस बन गया
जापान से भारत वापस आकर पीएम मोदी ने वाराणसी की जनता से वादा किया था कि उनका शहर क्योटो जैसा खूबसूरत हो जाएगा. तब से लेकर अब तक वाराणसी के लोगों की आंखें उस क्योटो को देखने के लिए तरस गई हैं, जिसका वादा पीएम ने किया था.
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2014 के लोकसभा चुनावों के बाद सत्ता में आए पीएम मोदी ने वाराणसी के लोगों से एक वादा किया था. उन्होंने कहा था कि बनारस शहर को जापान के क्योटो तीर्थस्थल जैसा बना देंगे. जब पीएम मोदी जापान के दौरे पर गए थे तो क्योटो-वाराणसी पार्टनर सिटी एग्रीमेंट की नींव रखी गई थी. जब पीएम मोदी जापान के क्योटो में पहुंचे तो 1 हजार मंदिरों के उस शहर की खूबसूरती देखकर मंत्र-मुग्ध हो गए और भारत वापस आकर वाराणसी की जनता से वादा किया कि उनका शहर क्योटो जैसा खूबसूरत हो जाएगा. तब से लेकर अब तक वाराणसी के लोगों की आंखें उस क्योटो को देखने के लिए तरस गई हैं, जिसका वादा पीएम ने किया था. खैर, वाराणसी तो क्योटो नहीं बन सका, लेकिन यूं लग रहा है जैसे जापान का क्योटो भारत के बनारस जैसा बन गया है.
जब पीएम मोदी क्योटो में पहुंचे तो उस शहर की खूबसूरती देखकर मंत्र-मुग्ध हो गए
क्योटो में बढ़ गई है भीड़
जापान के क्योटो में पर्यटकों की इतनी अधिक भीड़ होने लगी है कि सरकार उनकी मॉनिटरिंग की कोशिशें कर रही है. यहां आने वाले बहुत से पर्यटकों और यहां रहने वाले स्थानीय लोगों ने इस बात की शिकायत की है कि यहां बहुत अधिक भीड़-भाड़ होती है, जिससे परेशानियां होती हैं. 2017 में हुए एक सर्वे से ये बाद सामने आई कि भीड़ की वजह से लोगों की दिक्कतें हो रही हैं. आपको बता दें कि 2013 से लेकर अब तक क्योटो में हर साल करीब 5 करोड़ पर्यटक आते रहे हैं.
वाईफाई और सेंसर से होगी निगरानी
जापान की सरकार ने क्योटो के अराशियामा इलाके में होने वाली भीड़ को मॉनिटर करने की तैयारी भी कर ली है. शुरुआती दौर में फैसला किया गया है कि इस इलाके की 8 जगहों पर भीड़-भाड़ का अपडेट ऑनलाइन मुहैया कराया जाएगा. इसके लिए सेंसर लगाए गए हैं, जो एक्टिव वाईफाई सिग्नल ट्रैक करेंगे और डेटा जमा करेंगे. सितंबर से ही 13 जगहों पर सेंसर लगाए गए थे, जो लोगों के मोबाइल के वाई-फाई सिग्नल ट्रैक करेगा और उससे मिले डेटा के अनुसार ये पता चलेगा कि कितने लोग वहां आए और कितनी देर तक रुके. भीड़-भाड़ के बारे में ऑनलाइन जानकारी मिलने से लोगों को भी सहूलियत होगी और वह उसी समय आएंगे जब भीड़ कम हो. इस तरह भीड़-भाड़ की परेशानी एक हद तक सुलझ सकती है. क्योटो शहर के एक अधिकारी का कहना है कि इससे भीड़ से निजात मिलने की उम्मीद है और अगर सब कुछ सही रहा तो अन्य इलाकों में भी ऐसे इंतजाम किए जाएंगे.
2013 से लेकर अब तक क्योटो में हर साल करीब 5 करोड़ पर्यटक आते रहे हैं.
अराशियामा, जियोन और कियोमिजू टेंपल पर दुनिया भर से लोग आते हैं. पीक सीजन में तो भीड़ बहुत अधिक हो जाती है और दिक्कत होती है. सबसे अधिक लोग Fushimi Inari Taisha और Shinto shrine हैं, जहां लगभग हमेशा ही भीड़ रहती है. क्योटो में बहुत सारे ऐसे भी तीर्थ स्थल है, जहां पहले बहुत से लोग आते थे, लेकिन अब वहां कम लोग जाते हैं. उत्तरी क्योटो में स्थित Jakko-in और Sanzen-in मंदिर इन्हीं में से एक हैं, जहां अब काफी कम लोग आते हैं. 1970 के दशक में ये इलाका लोगों की पहली पसंद हुआ करता था, लेकिन लोगों के लिए तरस रहा है. इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि वहां जाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं. जापान सरकार ये भी कोशिश कर रही है कि उन इलाकों को भी रेलवे लाइनों और बसों से अच्छे से जोड़ा जाए, ताकि लोग वहां भी जा सकें. इससे भी लोगों की भीड़ कम करने में मदद मिलेगी.
वाराणसी को क्योटो बनाने की कोशिशें अभी हो ही रही हैं और ये भी नहीं पता है कि कब तक इसे क्योटो बनाया जा सकेगा. वाराणसी क्योटो जितना खूबसूरत तो पता नहीं कब तक बनेगा, लेकिन वाराणसी जैसी भीड़ क्योटो में जरूर हो रही है, जिससे पर्यटकों और वहां रहने वाले लोगों को दिक्कत हो रही हैं. सरकार ने भीड़ को काबू करने की कोशिशें तो शुरू कर दी हैं, लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि जापान की सरकार अपनी कोशिश में सफल हो पाती है या नहीं.
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