ऊंची प्रतिमाओं की रेस में भगवान राम का 'कद' छोटा मत कीजिए
हम मानते हैं कि लौह-पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का यह देश कर्जदार है और उनकी हैसियत किसी भी अन्य महापुरुष से कम नहीं है, लेकिन उनका भी कद भगवान श्री राम से ऊंचा है या हो सकता है, ऐसा हम नहीं मानते.
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में सरयू तट पर भगवान श्री राम की एक बड़ी प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं. कोई 151 मीटर, तो कोई 108 मीटर ऊंची प्रतिमा की बात कह रहा है. लेकिन हमारा कहना है कि या तो यह तय कीजिए कि इस देश में भगवान श्री राम से ऊंची प्रतिमा किसी की नहीं हो सकती, या फिर उन्हें ऊंची प्रतिमाओं के कॉम्पटीशन का हिस्सा मत बनाइए.
हम मानते हैं कि लौह-पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का यह देश कर्जदार है और उनकी हैसियत किसी भी अन्य महापुरुष से कम नहीं है, लेकिन उनका भी कद भगवान श्री राम से ऊंचा है या हो सकता है, ऐसा हम नहीं मानते. भगवान श्री राम द्वारा स्थापित 'राम-राज्य' आज भी भारत के लिए एक सपना है, जिसे कोई भी अन्य शासक/नेता आज तक साकार नहीं कर सका है, इसलिए किसी भी अन्य शासक/नेता का कद उनसे बड़ा हो ही नहीं सकता.
भगवान राम की मूर्ति को ऊंचे होने के कॉम्पटीशन से दूर ही रखें.
इसलिए अगर आप भगवान श्री राम की ऊंची प्रतिमा स्थापित करना ही चाहते हैं, तो इसे 182 मीटर की ऊंचाई से अधिक कीजिए, अन्यथा उनकी सामान्य सी मूर्ति बनाइए, जैसी हर मंदिर में होती है. अगर आप उन्हें ऊंची प्रतिमाओं के कॉम्पीटीशन का हिस्सा बनाएंगे और हर जगह इस बात की चर्चा होगी कि राम की मूर्ति 108/151 मीटर और पटेल की मूर्ति 182 मीटर, तो हम इसका विरोध करेंगे.
आप अगर भावनाओं की राजनीति करते हैं, तो इस भावना को भी समझिए, वरना यह आपको उल्टा भी पड़ सकता है.
एक बात और. हम मानते हैं कि किसी भी सरकार का ध्यान बुनियादी मुद्दों पर अधिक रहना चाहिए, लेकिन बुनियादी मु्द्दों का हल होने तक सांस्कृतिक मुद्दे लंबित रहें, ऐसा भी हम नहीं मानते. रामवृक्ष बेनीपुरी ने 'गेहूं और गुलाब' शीर्षक से अपने लेख में लिखा था कि गेहूं के साथ-साथ गुलाब भी ज़रूरी है.
इसलिए रोटी के साथ-साथ राम भी आवश्यक हो सकते हैं, क्योंकि एक तो दुख, परेशानी, निराशा और विपदा की घड़ी में बहुसंख्य भारतीयों के आध्यात्मिक संबल वही बनते हैं. दूसरे वह लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी से भी सीधे तौर पर जुडे हैं, क्योंकि उनके नाम पर स्थापित तीर्थस्थलों और पर्यटन स्थलों पर सभी समुदायों के लाखों लोगों को रोज़गार भी मिलता है और देश की अर्थव्यवस्था को रफ़्तार भी मिलती है.
इसलिए, राम के नाम पर किए जाने वाले किसी भी काम का, चाहे वे विशुद्ध राजनीतिक मकसद से ही क्यों न किए जा रहे हों, हम तब तक विरोध नहीं करते, जब तक कि उस कदम से किसी अन्य समुदाय या वर्ग के हितों, नागरिक अधिकारों या सुरक्षा को नुकसान पहुंचने की आशंका न हो.
जहां तक राम को केंद्र में रखकर सरयू तट को एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किए जाने का प्रश्न है, तो इससे ऐसी कोई आशंका मुझे नज़र नहीं आती. इसके विपरीत, इसका फायदा सभी समुदायों और वर्गों के लोगों को मिलेगा और सबके कारोबार और आमदनी में वृद्धि होगी. यहां तक कि इसका फ़ायदा उन्हें भी मिलेगा, जो अपने पूर्वाग्रहों के कारण आज खुले तौर पर राम के प्रति ईर्ष्या-भाव दिखा रहे हैं, उनका मखौल उड़ा रहे हैं, या उनके लिए अपने छोटे दिल का प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्हें यह समझना चाहिए कि अयोध्या का विकास उसे केवल और केवल राम की पहचान से जोड़कर ही संभव है.
इस देश में राम सबके हैं. अगर कोई उन्हें किसी ख़ास समुदाय का मानता है, तो यह उसकी संकीर्णता है. राम ने किसी से भेदभाव नहीं किया. भेदभाव-रहित और सबके लिए समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले राज्य का नाम ही राम-राज्य है. इसलिए मेरी अपील है कि राम से भी कोई भेदभाव न करे. उन्हें न तो हिन्दू-तुष्टीकरण की राजनीति का शिकार बनाया जाना चाहिए, न ही मुस्लिम-तु्ष्टीकरण की राजनीति का.
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