कीचड़ उछालने को राजनैतिक टिप्पणी मत कहिये
राम माधव और सीपी जोशी की टिप्पणियों ने एक नयी बहस को जन्म दे दिया है. हर चुनावी सीजन में नेताओं द्वारा इस्तेमाल भाषा का जो स्तर दिख रहा है उसमें समझना मुश्किल हो रहा है कि क्या पॉलिटिकल है और क्या पर्सनल.
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अब कोई ऐसा चुनाव शायद ही बीतता है जिसमें कम से कम दो बातें न होती हों. एक - किसी न किसी ईवीएम में कहीं न कहीं गड़बड़ी. दो - एक दूसरे को टारगेट करते नेताओं की ओछी टिप्पणी. ये दोनों ही बातें एक तरह से चुनाव प्रक्रिया की आवश्यक बुराई बनते जा रही हैं.
विधानसभा चुनावों की हलचल और जम्मू-कश्मीर में हुई राजनीतिक गतिविधियों के बीच दो नेताओं के बयान सुर्खियों का हिस्सा बने हैं. एक हैं बीजेपी नेता राम माधव और दूसरे कांग्रेस नेता सीपी जोशी. राहत की बात बस यही है कि दोनों ही नेताओं ने अपनी करतूतों के लिए खेद प्रकट जरूर कर दिया है. अपने बयान से पलट कर, माफी मांग कर या खेद प्रकट कर ये नेता पल्ला तो झाड़ ले रहे हैं - लेकिन ये सब किस दिशा में जा रहा है वो गंभीर चिंता का विषय है. बीजेपी नेता राम माधव की टिप्पणी और उस पर उनकी सफाई खास तौर पर उल्लेखनीय है जिसमें वो राजनीतिक टिप्पणी को निजी बातों से अलग समझा रहे हैं.
देशद्रोह का इल्जाम राजनीतिक टिप्पणी कैसे?
जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के दावों और गवर्नर सत्यपाल मलिक द्वारा विधानसभा भंग किये जाने के बीच एक ट्वीट ऐसा भी रहा जिस पर अलग से विवाद हुआ. बीजेपी नेता राम माधव ने जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने की कोशिशों के तार पाकिस्तान से जोड़ दिये और इस पर उमर अब्दुल्ला बिफर उठे. राम माधव की टिप्पणी ऐसी रही कि लग रहा था कि बीजेपी के विरोधी जो सूबे में सरकार बनाने की कोशिश कर रहे हैं वे देशद्रोहियों जैसी हरकत कर रहे हैं. उमर अब्दुल्ला ने राम माधव को पाकिस्तान से कनेक्शन साबित करने की चुनौती दे डाली. वैसे ज्यादा देर नहीं बीता और राम माधव ने खेद प्रकट कर दिया. गौर करने वाली बात ये रही कि देशद्रोही होने का इल्जाम लगाने वाले अपने ट्वीट को राम माधव ने राजनीतिक टिप्पणी बताया और इसे निजी तौर पर न लेने की सलाह दी.
No, misplaced attempts at humour won’t work. You HAVE claimed my party has been acting at the behest of Pakistan. I dare you to prove it! Place the evidence of your allegation of NC boycott of ULB polls at Pak behest in public domain. It’s an open challenge to you & your Govt. https://t.co/7cumKwKxuM
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) November 22, 2018
Just landed@Aizawl n saw this. Now tht u deny any external pressure I take back my comment, bt, now tht u proved it ws genuine love btw NC n PDP tht prompted a failed govt formation attempt,u shud fight nxt elections 2gether. ????Mind u it’s pol comnt,not personal https://t.co/DsOYiwwXmo
— Ram Madhav (@rammadhavbjp) November 22, 2018
राम माधव के इस कदम से ये विवाद तो खत्म हो गया, लेकिन साथ ही नयी बहस को जन्म जरूर दे दिया - क्या किसी व्यक्ति या संगठन पर देशद्रोह का इल्जाम लगाना महज एक राजनीतिक टिप्पणी हो सकती है?
इस हिसाब से देखें तो गिरिराज सिंह से लेकर साक्षी महाराज और साध्वी निरंजन ज्योति जैसे जितने भी बीजेपी नेता विरोधियों को पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते हैं उन्हें निजी तौर पर नहीं लिया जाना चाहिये. राम माधव की परिभाषा के मुताबिक ये सभी राजनीतिक टिप्पणियां नहीं हैं तो और क्या हो सकती हैं. इस हिसाब से तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राहुल गांधी और कांग्रेस नेताओं द्वारा जेल वाले या बेल पर छूटे हुए लोग बताये जाने को भी निजी तौर पर नहीं लिया जाना चाहिये. फिर तो बिहार चुनाव के वक्त नीतीश कुमार के डीएनए में खोट बताया जाना भी राजनीतिक टिप्पणी ही रही.
हमले राजनीतिक या निजी?
इसी तरह अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी को 'कायर' और 'मनोरोगी' कहते हैं तो बीजेपी नेताओं को निजी तौर पर कतई नहीं लेना चाहिये.
और जब कांग्रेस नेता सीपी जोशी ने प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय मंत्री उमा भारती की जाति पर सवाल उठाया है तो उसे भी निजी तौर पर क्यों लिया जाना चाहिये.
राम माधव के अनुसार राजनीतिक टिप्पणियों को उसी अंदाज में लेना चाहिये पर्सनल नहीं, फिर राहुल गांधी जब चौकीदार चोर है कहते हैं तो बीजेपी नेताओं को दिक्कत क्यों होती है?
'चौकीदार चोर है' - राजनीतिक टिप्पणी है या निजी?
राजस्थान चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने सीपी जोशी के बयान पर वैसे ही कड़ा ऐतराज जताया है जैसे गुजरात चुनाव के वक्त रिएक्ट किया था. जोशी के खिलाफ राहुल गांधी ने कोई एक्शन तो नहीं लिया है, लेकिन माफी मांगने की सलाह जरूर दी और जोशी ने अपनी ओर से नपे तुले शब्दों में खेद जता भी दिया है.
सीपी जोशी ने प्रधानमंत्री मोदी और उमा भारती की जाति पर टिप्पणी की थी और दावा किया था कि धर्म का ज्ञान सिर्फ ब्राह्मण के पास होता है. ये सवर्णों को खुश करने की वजह से हो सकती है, लेकिन ब्राह्मणों का नाम लेकर जोशी ने ब्राह्मणों के अलावा बाकी सवर्ण समुदाय को नाराज जरूर किया होगा.
ऐसी टिप्पणियों के मामले में राहुल गांधी की पॉलिसी भी समझ में नहीं आती. अगर मणिशंकर अय्यर प्रधानमंत्री मोदी के लिए नीच शब्द का प्रयोग करते हैं तो एक्शन लेते हैं. अच्छी बात है. सीपी जोशी मोदी और उमा भारती की जाति पर सवाल खड़े करते हैं तो भी फटकार लगाते हैं. ये भी अच्छी बात है.
लेकिन खुद राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी के बारे में कभी 'झूठा' तो कभी 'खून की दलाली' करने वाले कहा करते हैं उसका क्या? हाल फिलहाल तो राजस्थान से लेकर छत्तीगढ़ और मध्य प्रदेश तक उनकी शायद ही कोई जन सभा होती है जो कार्यकर्ताओं द्वारा 'चौकीदार चोर है' का नारा लगवाये बगैर खत्म होती है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी भी मोदी के खिलाफ राजनीतिक टिप्पणी करते हैं और अगर मोदी खुद आपत्ति जतायें तो कह देंगे इसे निजी तौर पर न लें क्योंकि ये राजनीतिक टिप्पणी है - और राजनीतिक टिप्पणियों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिये. मतलब, चौकीदार चोर नहीं है. यही ना! या जस की तस ही समझा जाये.
राजनीतिक और निजी कैटेगरी की लक्ष्मण रेखा क्या है?
राम माधव ने जैसे भी उमर अब्दुल्ला को बहला फुसला का झगड़ा खत्म कर लिया हो, लेकिन राजनीतिक और निजी टिप्पणियों के बीच फर्क करना मुश्किल है. अपराध की दुनिया में एक अघोषित ट्रेंड रहा जिसमें लड़ाई प्रोफेशनल होती रही, घर परिवार को दूर रखा जाता रहा. पहले राजनीति में भी ऐसा ही होता आ रहा था. माना जाता है कि सार्वजनिक जीवन में सवालों से परे कोई नहीं होता, लेकिन जब सोनिया गांधी की बीमारी और इलाज को लेकर सवाल पूछे गये तो कांग्रेस नेताओं ने निजता की दुहाई देकर बात टाल दी - और पूछने वाले मान भी गये.
बात मुद्दे की जो भी हो, लेकिन ये राजनीतिक टिप्पणियां निजता के अधिकार का कितना ख्याल रखती हैं, कहना मुश्किल होगा. दोनों में फर्क जरूर है लेकिन साफ तौर पर कहीं कोई लक्ष्मण रेखा नहीं रह गयी है.
1. 2007 में सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को 'मौत का सौदागर' कहा था - और 2018 आते आते राहुल गांधी मोदी को चौकीदार के नाम पर चोर-चोर चिल्लाने और कार्यकर्ताओं से नारे भी लगवाने लगे हैं.
2. बीच के 11 साल में मोदी के लिए विभिन्न कांग्रेस नेताओं द्वारा जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया, वे हैं - बदतमीज, नाली का कीड़ा, बंदर, घांची, गंगू तेली, भस्मासुर, रावण, नपुंसक, पागल, नीच और गब्बर सिंह.
3. 2009 में मोदी को बीके हरिप्रसाद ने नाली का कीड़ा बताया था, जिनके लिए राज्य सभा उपसभापति चुनाव के दौरान मोदी ने भी 'बिके हरि' शब्द का प्रयोग कर डाला - और बाद में उसे संसद की कार्यवाही से डिलीट करना पड़ा.
4. प्रधानमंत्री मोदी सहित बीजेपी नेताओं के निशाने पर तमाम कांग्रेस नेता भी लगातार रहे हैं. 2004 में मोदी ने सोनिया गांधी को 'जर्सी गाय' और राहुल गांधी को 'हाइब्रिड बछड़ा' बताया था. उसके बाद तो राहुल गांधी के लिए - पप्पू, बुद्धू, पागल, छोटा भीम, मसखरा और मंदबुद्धि बालक जैसे शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो चुका है. गुजरात चुनाव के दौरान बीजेपी की चुनाव प्रचार मुहिम में राहुल गांधी के लिए पप्पू शब्द का इस्तेमाल हुआ था जिसे चुनाव आयोग के ऐतराज के बाद हटाना पड़ा.
5. बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी तो प्रियंका गांधी को 'पियक्कड़' तक कह चुके हैं. स्वामी के ट्वीट में अक्सर 'ताड़का' और 'पूतना' जैसे शब्दों का इस्तेमाल देखा जा सकता है जिसका आशय किसी और से नहीं बल्कि सोनिया गांधी से ही होता है. स्वामी के ट्वीट में 'बुद्धू' का मतलब राहुल गांधी ही होता है. कानून के हिसाब से तकनीकी तौर पर ये शब्द व्यक्तिगत टिप्पणी के तौर पर साबित नहीं हो सकते.
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