पूर्वांचल में आखिर कहां तक पहुंची बनारस के बिगुल की आवाज?
सबसे दिलचस्प बात, मोदी ने बहुमत का शुकराना और फिर बोनस तो मांगा, लेकिन हिसाब देने की बारी आई तो बोले - '2022 में देंगे'. बढ़िया है - लोगों को ये मैसेज समझ लेना चाहिये कि अब उन्हें 2019 के बाद ही किसी बात की उम्मीद करनी होगी.
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छठे चरण में वोटिंग प्रतिशत से ज्यादा लोगों की दिलचस्पी बनारस के बड़े दिन पर रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों से मिलते जुलते मंदिर पहुंचे और पूरी भाव-भक्ति से दर्शन पूजन किया - काशी विश्वनाथ का भी और पहली बार काशी के कोतवाल काल भैरव का भी. फिर चुपचाप निकल लिये, बोले जौनपुर पहुंच कर.
जय श्रीराम और मोदी-मोदी जैसे नारे थमे तो गली मोहल्लों जिंदाबाद-जिंदाबाद गूंजने लगा. कई जगह तो कार्यकर्ताओं का हुजूम नारेबाजी करते करते एक दूसरे को ललकारने भी लगे - और चौकाघाट में तो पथराव भी हो गया.
थोड़ी देर से ही सही लेकिन शो-स्टॉपर डिंपल यादव ने भी यूपी के लड़कों का रोड शो ज्वाइन कर ही लिया, ताकि कोई ये न कह पाये कि उन्हें ये साथ पसंद नहीं है.
'ऊं गायत्री प्रजापति नम:'
अपने मंत्री गायत्री प्रजापति को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को रक्षात्मक होना पड़ा है. अखिलेश यादव कहने लगे हैं कि कैमरा लेकर आओ और मेरा घर देख लो. प्रधानमंत्री मोदी ने जौनपुर में इसी मुद्दे पर समाजवादी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की.
हिसाब दूंगा मगर...
मोदी ने कहा, "हम अच्छा काम करते हैं तो गायत्री मंत्र बोलते हैं लेकिन समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन गायत्री-प्रजापति-मंत्र बोलता है." मोदी अब रैलियों में इस बात का भी जोर देकर जिक्र करते हैं कि प्रजापति के लिए वोट मांगने मुख्यमंत्री भी गये थे.
मोदी की ही तरह मायावती ने भी गंगा की सफाई पर केंद्र सरकार के काम को पाप-पुण्य से जोड़ दिया. मायावती ने भी मोदी पर उन्हीं के अंदाज में हमला बोला, "इन लोगों ने अभी गंगा को तक साफ नहीं किया. आपके साथ इस बार मां गंगा भी इनको सजा देगी."
हिसाब लिख लेना
उधर, जौनपुर में मोदी ने मायावती के साथ सारे विरोधियों को एक साथ लपेटे में लिया - "नोटबंदी से बुआ जी को भी तकलीफ, भतीजे को भी तकलीफ, भतीजे के यार को भी तकलीफ हुई."
जौनपुर में मोदी ने OROP से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक जैसी उपलब्धियां गिनाईं तो बनारस में मायावती ने अपनी रैली में मंडल कमीशन की भी याद दिला दी, शायद इस उम्मीद के साथ कि उनके मतदाताओं तक मैसेज पहुंच जाये. मालूम नहीं उन्हें ध्यान रहा या नहीं कि मैसेज तो मंडल विरोधियों तक भी उसी मात्रा में पहुंचेगा.
एक खास बात ये रही कि प्रधानमंत्री को भी किसानों के कर्ज की बात करनी पड़ी. मोदी ने राहुल गांधी के आरोपों से बचते हुए अपनी बात कही, "सरकार बनने के बाद पहली मीटिंग में ही किसानों के कर्ज को माफ करने का निर्णय कर दिया जाएगा."
आखिरकार बनारस में भी साथ आये...
पिंडरा की सभा में राहुल गांधी ने किसानों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी को खूब खरी खोटी सुनाई थी. राहुल का इल्जाम रहा कि प्रधानमंत्री को किसानों की जरा भी परवाह नहीं. राहुल ने अपनी रैली में लोगों को बताया था कि जब वो मोदी से किसानों के बारे में सवाल पूछे तो वो चुप हो गये. इस बात को राहुल ने एक्टिंग करके दिखाया था.
मोदी ने भले ही अपनी बातों में कटिया से खटिया भिड़ा दी हो, लेकिन ये तो मानना पड़ेगा कि समाजवादी पार्टी के साथ साझा प्रोग्राम में तो उसे शामिल किया ही गया - प्रधानमंत्री मोदी को भी किसानों का कर्ज माफ किये जाने की बात जोर देकर कहनी पड़ी है.
सबसे दिलचस्प बात, मोदी ने बहुमत का शुकराना और फिर बोनस तो मांगा, लेकिन हिसाब देने की बारी आई तो बोले - '2022 में देंगे'. बढ़िया है - लोगों को ये मैसेज समझ लेना चाहिये कि अब उन्हें 2019 के बाद ही किसी बात की उम्मीद करनी होगी.
नयी परंपरा
विश्वनाथ मंदिर में पूजा से पहले मोदी अचानक दूर खड़े बीजेपी विधायक श्यामदेव राय चौधरी दादा तक पहुंचे और उन्हें दर्शन के लिए साथ लेते हुए आगे बढ़ गए. नाराज दादा को मनाने की मोदी की ये स्टाइल देख लोग हैरान रह गये. असल में सात बार के विधायक दादा का टिकट काटकर इस बार नीलकंठ तिवारी को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है. चर्चा थी कि संघ ने मोदी को दादा की नाराजगी दूर करने की सलाह दी थी.
बनारस में मोदी गंगा आरती और काशी विश्वनाथ का दर्शन तो कर चुके थे, लेकिन काल भैरव के दरबार में पहली बार पहुंचे. काशी में मान्यता रही है कि जो भी एसपी-डीएम आता है कार्यभार संभालने से पहले मत्था टेक कर काशी के कोतवाल से इजाजत जरूर लेता है - और तभी टिकता भी है.
तो क्या काशी में मोदी के डेरा-डंडा डालने की जो वजह मानी जा रही है, काशी के कोतवाल के पास जाकर आशीर्वाद लेना भी उसी तरफ इशारा कर रहा है?
खैर, मोदी लीक से हट कर चलते हैं. वो नये ट्रेंड में यकीन रखते हैं. गिलास में पानी को भी आधा हवा और आधा पानी वाले नजरिये से देखते हैं. बात काल भैरव के दर्शन की आई तो उसमें नयी परंपरा की शुरुआत कर दी. आने वाले दिनों में नये एसपी और डीएम के पास अब दूसरा विकल्प भी मौजूद होगा. बाकी जैसी जिसकी श्रद्धा.
मोदी द्वारा नयी परंपरा शुरू करने पर वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार रमेश सिंह अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, "कलयुग है दोस्तों; आज बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद काल भैरव की अनुमति ली जाती है, जबकि पहले काशी के कोतवाल के अनुमति के बाद ही बाबा के दर्शन की मान्यता थी... "
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