राहुल गांधी की जो छवि बनी या बनायी गयी है - उसके जिम्मेदार वे खुद हैं?
भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) को लेकर भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का डिस्क्लेमर आ गया है और उसका लक्ष्य अगला आम चुनाव नहीं है, लेकिन कांग्रेस नेता ने अपनी छवि (Rahul Gandhi Image) खराब करने को लेकर दूसरों के सिर पर जो ठीकरा फोड़ा है - क्या उनका कोई योगदान नहीं है?
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए भारत जोड़ो यात्रा बेहतरीन मंच साबित हो रहा है. बहुत ही फायदेमंद भी कह सकते हैं. तमाम मुद्दों पर धीरे धीरे करके वो अपना पक्ष रख रहे हैं. सफाई पेश कर रहे हैं. अपने मन की बात कर रहे हैं - और अब तो अपनी छवि खराब करने को लेकर भी राजनीतिक विरोधियों को कठघरे में खड़ा कर दिया है.
भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) राहुल गांधी के लिए ऐसा फोरम बना है, जहां वो अपनी बात बड़ी ही जिम्मेदारी के साथ रख रहे हैं. औरों की राय अलग हो सकती हैं, लेकिन वो ऐसा ही मानते हैं. राहुल गांधी ने यात्रा के मकसद को लेकर लोगों के कयासों को भी गलत बताया है.
राहुल गांधी ने अब उन बातों को भी खारिज कर दिया है, जिसमें माना जा रहा था कि भारत जोड़ो यात्रा अगले आम चुनाव यानी 2024 के लिए आयोजित की गयी है. एक बात तो वो पहले ही साफ कर चुके हैं, जो लोग ये सोचते हैं कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं तो वे ठीक नहीं समझ रहे हैं.
राहुल गांधी अपनी तरफ से साफ कर चुके हैं कि वो भारत जोड़ो यात्रा में बाकी यात्रियों की तरह ही हिस्सा भर ले रहे हैं - और 2024 वाले इनकार से ये जवाब भी समझ लेना चाहिये कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश यात्रा के रूट में इसीलिए नहीं शामिल किया गया. फिर तो जयराम रमेश अब तक जो बताते रहे हैं, उसे भूल जाना ही बेहतर होगा.
रही बात कर्नाटक की, विधानसभा चुनाव तो वहां भी होना है - 2023 में. कर्नाटक के साथ संयोग जुड़ते जा रहे हैं या कांग्रेस की तरफ से तरह तरह के प्रयोग किये जा रहे हैं, ये समझने वाले अपने तरीके से समझ सकते हैं. राहुल गांधी सिर्फ अपनी बात कह रहे हैं, बाकी लोग क्या सोचते हैं उनको मतलब नहीं है.
संयोग, जैसे कर्नाटक से ही आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे का अघोषित आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ना. जैसे, राहुल गांधी के भाषण के बीच तेज बारिश का होना या बारिश में आगे बढ़ कर कांग्रेस नेता का भाषण देना. जैसे सोनिया गांधी के जूते के फीते का चलते चलते अचानक खुल जाना - और राहुल गांधी का बीच सड़क पर बैठ कर लैस बांधना.
ये भारत जोड़ो यात्रा का ही मंच है जहां से राहुल गांधी ने बहुत पहले ही बोल दिया था कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर वो अपना निर्णय ले चुके हैं - और भारत जोड़ो यात्रा के मंच से ही ये बात भी सामने आयी है कि राहुल गांधी का गौतम अदानी को लेकर बिलकुल भी विरोध नहीं हैं.
जाहिर है, मुकेश अंबानी से भी राहुल गांधी को कोई नहीं होगा. और अपने नये मास्टरस्ट्रोक के बाद, अब तो बहती गंगा में अशोक गहलोत भी हाथ धो ही चुके हैं, 'गौतम अदानी हों या कोई भी अदानी हों... अंबानी हों, अदानी हों या अमित शाह के बेटे नाम जय शाह हैं, वो हों... हम सबका स्वागत करेंगे यहां पर... जो इंडस्ट्री के लोग हैं... हमें तो रोजगार चाहिये, इन्वेस्टमेंट चाहिये.'
मतलब, रोजगार और इन्वेस्टमेंट मुकेश अंबानी भी मुहैया करा दें, चलेगा. शर्तें लागू हैं. चाहे राजस्थान में, चाहें तो छत्तीसगढ़ में कोई भी गिला शिकवा नहीं होगा. चाहें तो झारखंड, तमिलनाडु और अब बिहार में भी ऐसा किया जा सकता है, लेकिन महाराष्ट्र में तो अब कतई नहीं. राहुल गांधी बता चुके हैं कि वो कॉर्पोरेट के विरोधी नहीं हैं.
अशोक गहलोत और गौतम अदानी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर आने के बाद राहुल गांधी ने अपनी तरफ से ये साफ करने की कोशिश की है कि उनका विरोध अदानी से नहीं, बल्कि खास तौर तरीके से है. यानी, अदानी को उस तरीके से फायदा नहीं पहुंचाया जाना चाहिये जैसे मोदी सरकार पहुंचा रही है! राहुल गांधी की बातों को समझें तो - गहलोत सरकार की तरह चलेगा! और अगर गहलोत सरकार भी मोदी सरकार जैसी हरकत करने लगी तो वो उसका विरोध भी वैसे ही करेंगे - सरेआम ये वादा भी किया है.
और अब भारत जोड़ो यात्रा से ही राहुल गांधी का वो बयान भी आया है, जो उनकी छवि (Rahul Gandhi Image) से जुड़ा है. वो छद्म-छवि, जो राहुल गांधी के मुताबिक, राजनीतिक विरोधियों ने गढ़ी है - और ऐसा करने के लिए, बकौल राहुल गांधी, अब तक हजारों करोड़ रुपये भी खर्च किये जा चुके हैं.
क्या वास्तव में ऐसा ही है? क्या राहुल गांधी का अपनी तरफ से जरा सा भी योगदान नहीं है? बदनाम किये जाने को लेकर बीजेपी नेताओं की तरफ उनका इशारा तो साफ है, लेकिन क्या राहुल गांधी की एक खास छवि गढ़ने में प्रशांत किशोर का भी कोई रोल हो सकता है - आपको क्या लगता है?
दिल में प्यार, जुबां पे दर्द!
राहुल गांधी को कभी अपनी छवि की परवाह करते नहीं देखा गया है. वो हमेशा ही अपने मन की करते हैं. किसी की भी नहीं सुनते, ये भी उनकी पर्सनालिटी का ही एक हिस्सा है. ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि वो सत्ता की हनक भरे माहौल में पले बढ़े हैं - और हाल ही में ये सब बताते हुए राहुल गांधी ने समझाने की कोशिश की थी कि कैसे बाकियों की तरह वो सत्ता या राजनीति के बारे में कभी क्यों नहीं सोचते. राहुल गांधी ने बताया कि वो अपने देश से किसी प्रेमिका की तरह प्यार करते हैं - और भारत जोड़ो यात्रा ऐसे ही प्रयोगों का एक नया फलक है.
लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही राहुल गांधी ने बरसों से अंदर दफन की हुई एक पीड़ा भी साझा की है. ये पीड़ी उनके राजनीतिक विरोधी की तरफ से गढ़ी गयी उनकी खास छवि को लेकर है.
राहुल गांधी पहली बार अपनी छवि को लेकर खुल कर कुछ बोले हैं - क्या आगे अलर्ट भी रहेंगे?
एक किताब के विमोचन के मौके पर जब राहुल गांधी सत्ता और राजनीति में अपनी दिलचस्पी न होने के बारे में बता रहे थे, बोले, 'देश ने मुझे सिर्फ प्यार ही नहीं दिया है... जूते भी मारे हैं... नहीं आप समझ नहीं सकते हैं.'
हालांकि, मोदी सरकार की पिछली पारी में लाये गये अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान संसद में राहुल गांधी अपनी छवि का जिक्र अलग तरीके से किया था. तब राहुल गांधी ने कहा था, 'आपके अंदर मेरे लिए नफरत है... आपके अंदर मेरे लिए गुस्सा है... आपके लिए मैं पप्पू हूं... आप मुझे अलग अलग गाली दे सकते हो, लेकिन आपके प्रति मेरे अंदर थोड़ा था गुस्सा नहीं है.'
और अब अपनी उसी गढ़ी हुई छवि को लेकर राहुल गांधी ने नये सिरे से अपनी बात रखी है. राहुल गांधी का कहना है कि उनको झूठा साबित करने और गलत तरीके से उनकी छवि पेश करने के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं - मीडिया का पैसा और ऊर्जा उनको बदनाम करने में झोंक दिया गया है, जो झूठा और बिलकुल गलत है.
कर्नाटक के तुमकुर इलाके में राहुल गांधी ने राजनीतिक विरोधियों के प्रोपेगैंडे को लेकर प्रेस कांफ्रेंस में काफी बातें रखीं. राहुल गांधी का कहना रहा, समझने वाली बात ये है कि मैं हमेशा एक निश्चित विचार के लिए खड़ा रहा हूं, जो बीजेपी और RSS को परेशान करता है... हजारों करोड़ मीडिया का पैसा और ऊर्जा मुझे ऐसे पेश करने के लिए खर्च किया गया है - जो झूठा और गलत है.
अपने खिलाफ जी जान से जुटी एक मशीनरी की चर्चा करते हुए राहुल गांधी ने कहा, मेरी सच्चाई अलग है... ये हमेशा अलग है... और जो लोग ध्यान से देखने की परवाह करते हैं, वे देखेंगे कि मैं किसके लिए खड़ा हूं - और मैं किसके लिए काम करता हूं.
भारत जोड़ो यात्रा को अगले आम चुनाव से जोड़े जाने की बातों को खारिज करते हुए राहुल गांधी समझा रहे थे, 'मेरे लिए यात्रा का राजनीतिक मकसद भी है, लेकिन असली मकसद लोगों से सीधे संवाद करना है... ये मेरे लिए तपस्या जैसा है... तपस्या मेरे और मेरे परिवार की फितरत है... मैंने कार आराम से यात्रा करने की जगह, परेशानी भरा मुश्किल रास्ता चुना... ये कार या हवाई जहाज में जाने या मीडिया के माध्यम से पहुंचने से बहुत अलग है.
ये समझना कोई मुश्किल नहीं है कि राहुल गांधी के निशाने पर कौन है, लेकिन 2014 से पहले तो राहुल गांधी को संघ और बीजेपी के खिलाफ खड़े रहने की कोई जरूरत क्यों रही? तब तो वो डंके की चोट पर कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में धावा बोल कर कैबिनेट के मंजूर किये गये ऑर्डिनेंस को फाड़ कर फेंक देते रहे - और मजाल कि कोई कुछ बोल पाये.
राहुल गांधी तो पहले ऐसी बातें करते भी नहीं थे. वो तो सिस्टम बदलने की बातें करते थे. वो कांग्रेस की युवा विंग में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराये जाने के लिए जाने जाते हैं. लेकिन ये भी सच है कि कांग्रेस कार्यकारिणी में उसे वो नहीं लागू करा पाये - और तब भी कुछ नहीं बोले जब G-23 वाले कांग्रेस नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा था.
अपनी ताजातरीन तपस्या को लेकर राहुल गांधी ने जो कुछ कहा है, कांग्रेस की तरफ से उनका वीडियो क्लिप ट्विटर पर भी अलग से शेयर किया गया है - जिसमें वो अपनी छवि खराब करने के लिए बेतहाशा पैसे खर्च करने का विरोधियों पर इल्जाम लगा रहे हैं.
Crores of media money have been spent to shape me in a way which is untruthful. Those who care to look carefully will see what I stand for.I believe in Tapasya. I wanted an element of suffering when I talk to my people.:Shri @RahulGandhi#1MonthOfBharatJodoYatra pic.twitter.com/QrIsz6Wqz1
— Congress (@INCIndia) October 8, 2022
राहुल गांधी अपने जिस स्टैंड की बात कर रहे हैं, उसकी भला 2014 से पहले जरूरत क्यों पड़ी थी? तब तो कांग्रेस में किसी को भी नहीं लगता था कि संघ और बीजेपी का इतना प्रभाव बढ़ जाएगा कि वो केंद्र की सत्ता पर भी काबिज हो जाये. अगर ऐसा नहीं होता तो क्या मणिशंकर अय्यर ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी के लिए चाय पिलाने वाली बात कही होती?
ये सब तो 2014 के बाद शुरू हुआ है. बल्कि, शुरू तो पहले ही हो गया था, 2014 के बाद बस जोर पकड़ा है. जब कांग्रेस कमजोर हो गयी है - और पांच साल बाद भी सत्ता में वापसी तो दूर ठीक से खड़े होने लायक भी नहीं बची है.
ऐसे में माना तो यही जाएगा कि राहुल गांधी को संघ और बीजेपी के खिलाफ 2014 के बाद खड़ा और 2019 के बाद हद से ज्यादा आक्रामक स्टैंड लेना पड़ा है.
राहुल गांधी छवि किसने खराब की है?
राहुल गांधी के खिलाफ दुष्प्रचार की मुहिम अब भले ही एक नियमित राजनीतिक कैंपेन लग रही हो, लेकिन क्या उसके लिए कांग्रेस नेता के राजनीतिक विरोधी ही जिम्मेदार हैं?
मौका तो वो खुद भी देते रहे हैं - और अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ किसी को मौका मिलेगा तो वो खेल भावना का प्रदर्शन करने थोड़े ही जाएगा, वो तो नेस्तनाबूद करने में ही जुट जाएगा.
क्या राहुल अपनी जिम्मेदारी बिलकुल नहीं मानते: ये सही है कि राहुल गांधी को देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल में ऐसी चीजों से जूझना पड़ रहा है, जिसके बारे में न तो गांधी परिवार और न ही कांग्रेस में किसी ने कल्पना तक की थी - मगर आज की हकीकत तो यही है.
1. मान लेते हैं कि राहुल गांधी की बातों और उनके एक्ट को टारगेट किया जा रहा है, लेकिन गैर जिम्मेदाराना रवैया तो कांग्रेस नेता की तरफ से भी देखने को मिलता रहा है. ऐसे कई राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण मौके देखने को मिले हैं जब राहुल गांधी बगैर किसी की परवाह किये छुट्टी पर चले जाते रहे.
कांग्रेस नेताओं के लिए मीडिया के सवालों के जवाब देते नहीं बनता है. किसी न किसी बहाने सवाल को टाल जाने की ही कोशिश रहती है. प्रेस कांफ्रेंस में बस इधर उधर देख कर मुस्कुरा कर रह जाते हैं. हालांकि, कोरोना संकट के बाद से ऐसी गतिविधियों में काफी कमी आयी है - और भारत जोड़ो यात्रा में अब तक टिके रह कर राहुल गांधी ने लोगों को गलत भी साबित करने की कोशिश की है.
2. कुछ हास्यास्पद ऐक्ट तो राहुल गांधी की तरफ से खुद ही किया जाता है. कभी कहते हैं कि बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा. कभी कहते हैं उनको संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा है - अब ऐसी बातें करेंगे तो लोग भला क्या समझेंगे.
भरी संसद में लाइव टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट के पास जाकर गले मिलना - और साथी सांसदों से मुखातिब होकर आंख मारना, आखिर कैसी छवि पेश करेगा?
राहुल को बदनाम करने में प्रशांत किशोर की कितनी भूमिका है: देखा जाये तो राहुल गांधी को टारगेट किये जाने का सिलसिला तो 2014 के बाद से बढ़ा है - लेकिन नींव तो बहुत पहले ही पड़ चुकी थी.
आपको याद होगा प्रशांत किशोर ने 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव कैंपेन शुरू किया था - और फिर 2014 में तो ये सब व्यापक स्तर पर किया. कहते हैं कि प्रशांत किशोर ने उससे पहले राहुल गांधी से भी संपर्क साधा था, लेकिन न तो उनको उसकी अहमियत समझ में आयी, न ही उनके सलाहकारों को.
2014 के आम चुनाव की तैयारी तो काफी पहले ही शुरू हो चुकी थी. पब्लिसिटी स्टंट तो किसी भी ऐसी मुहिम का हिस्सा होती है, लेकिन प्रशांत किशोर तो अलग तरीके से ही करते हैं. प्रशांत किशोर के कैंपेन की खासियत ये भी होती है कि वो चुनाव कैंपेन में अपने क्लाइंट के साथ साथ उसके प्रतिद्वंद्वी की भी अलग छवि गढ़ने की कोशिश करते हैं. बाद के दिनों में भले ही ये थोड़ा कम हुआ हो, लेकिन 2014 में तो पूरा जोर ही इसी पर रहा.
और उसी के चलते प्रशांत किशोर ने एक छवि अपने क्लाइंट नरेंद्र मोदी की गढ़ी और दूसरी छवि उनके प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी की गढ़ डाली. प्रशांत किशोर ने तभी जो पब्लिसिटी मैटीरियल तैयार किया था - बीजेपी के आज भी काम आ रहा है.
जो तरीका प्रशांत किशोर ने टीम मोदी-शाह को सिखाया, वही चीजें आगे चल कर नीतीश कुमार को उनके खिलाफ ही सिखा दिया. और बाद में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी को भी सिखा ही दिया.
राहुल गांधी या उनके सलाहकारो ने पहले ध्यान नहीं दिया. और जब मामला गंभीर होता गया तो काउंटर करने या न्यूट्रलाइज करने के लिए कोई कारगर तरीका नहीं खोज सके. राहुल गांधी संभलने का नाम नहीं ले रहे थे - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाते हुए बीजेपी की प्रचार आर्मी टूट पड़ती है.
ऊपर से राहुल गांधी गलतियां करते जाते हैं. अपने लोगों के मना करने पर भी नहीं मानते. कांग्रेस के ही नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी पर निजी हमले से बचने की सलाह देते रहे, लेकिन उनका भी दिल है कि मानता नहीं. 2019 में राहुल गांधी ने 'चौकीदार चोर है' का नारा लगया और लगवाया. मोदी और बीजेपी की बल्ले बल्ले हो गयी - राहुल गांधी खुद तो अमेठी हारे ही कांग्रेस भी चारों खाने चित्त हो गयी.
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