क्या प्रणब मुखर्जी के 'मन की बात' को PM मोदी अब भी वैसे ही अपनाएंगे?
2015 में जब असहिष्णुता को लेकर देश में बवाल चल रहा था तो प्रणब मुखर्जी की बातों को प्रधानमंत्री ने ब्रह्म वाक्य के तौर पर पेश किया था. देखना है पूर्व राष्ट्रपति के नागपुर संदेश को प्रधानमंत्री किस रूप में लेते हैं.
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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नागपुर पहुंचने का कांग्रेस और बीजेपी दोनों को इंतजार है. सोच तो RSS के लोग भी रहे होंगे कि प्रणब मुखर्जी ट्रेनी प्रचारकों को क्या संदेश देने वाले हैं. मगर, फिक्र सबसे ज्यादा कांग्रेस नेताओं को है. अव्वल तो कांग्रेस नेताओं को प्रणब मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में जाने पर ही आपत्ति है, पर चिंता इस बात की है कि वो क्या कहने वाले हैं? पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी ने भी साफ कर दिया है कि अब तो वो जो भी बोलेंगे 7 जून को ही बोलेंगे.
सवाल ये है कि प्रणब मुखर्जी संघ के परिवेश में बोलते क्या हैं? बोलते हैं तो कौन उनकी बातें प्रेम से सुनता है? अगर कोई उनकी बातें प्रेम से सुनता है तो क्या वो उसे अपनाएगा भी? सबसे बड़ा सवाल यही है.
कांग्रेस की अपनी मुश्किल है
कांग्रेस के कई नेता पूर्व राष्ट्रपति के संघ का न्योता स्वीकार करने पर हैरानी जता चुके हैं. जयराम रमेश और सीके जाफर शरीफ की तो कोशिश रही है कि प्रणब मुखर्जी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दें. सीनियर कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम की सोच जयराम रमेश से बिलकुल अलग है, 'अब जब उन्होंने न्योता स्वीकार कर ही लिया है तो इस पर बहस का कोई मतलब नहीं है कि क्यों स्वीकार किया?' चिदंबरम की सलाहियत है कि प्रणब मुखर्जी जा रहे हैं तो जाकर संघ को बतायें कि उनकी विचारधारा में क्या खामी है?
शख्सियत को सलाम!
एक इंटरव्यू में भी प्रणब मुखर्जी से इस बारे में सवाल हुआ तो उनका जवाब था, 'जो कुछ भी मुझे कहना है, मैं नागपुर में कहूंगा. मेरे पास कई पत्र आये और कई लोगों ने फोन भी किया, लेकिन मैंने किसी का जवाब नहीं दिया है.'
प्रणब मुखर्जी के कार्यक्रम पर कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है. असल में संघ के साथ कांग्रेस का विचारधारा के मामले में सिर्फ छत्तीस का आंकड़ा ही नहीं है - बल्कि, दोनों एक दूसरे के सियासी खून के प्यासे नजर आते हैं. अगर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 'खून की दलाली' जैसी टिप्पणी करते हैं तो उसके मूल में भी वही गहरी खीझ है. ये खीझ चुनाव दर चुनाव ज्यादा भड़की हुई दिखती है.
कांग्रेस और संघ के इस गला काट दुश्मनी की वजह सिर्फ बीजेपी का सत्ता पर काबिज हो जाना नहीं है, राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का एक मुकदमा भी है. ये मुकदमा राहुल गांधी की एक टिप्पणी को लेकर है जो उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या के लिए संघ पर की थी. राहुल गांधी के सामने इस केस में माफी मांगने या फिर ट्रायल फेस करने की शर्त रखी गयी थी - राहुल ने दूसरा विकल्प चुना. ये मामला फिलहाल कोर्ट में चल रहा है और इस 12 जून को सुनवाई की अगली तारीख है.
तब के महामहिम की वो बातें और...
बात 2015 की है जब असहिष्णुता के खिलाफ आंदोलन काफी लंबा चला था. कई साहित्यकारों और कलाकारों ने सरकार द्वारा दिये गये सम्मान वापस कर दिये थे. दादरी में अखलाक की हत्या के बाद ये आंदोलन पूरे देश में जोर पकड़ चुका था. ये उन दिनों की बात है जब बिहार विधान सभा के चुनाव के लिए प्रचार अभियान भी तेजी पर रहा.
तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर भी सवाल उठने लगे थे. मोदी चुनावी रैलियां तो खूब करते और तमाम मुद्दों पर बीजेपी का बचाव और विरोधियों पर तीखे हमले करते लेकिन असहिष्णुता आंदोलन और अखलाक की हत्या को लेकर खामोश रहे. वैसे मोदी सरकार के मंत्री जरूर उचित कार्रवाई जैसी बातें किया करते रहे.
जीएसटी लागू हो जाने की खुशी!
फिर राष्ट्रपति भवन में एक कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी ने कहा था, "हम अपनी सभ्यता के आधारभूत मूल्यों को खोने नहीं दे सकते... हमारे आधारभूत मूल्य हैं कि हमने हमेशा विविधता को स्वीकार किया है, सहनशीलता और अखंडता की वकालत की है..."
प्रणब मुखर्जी ने आगे कहा, "बहुत-सी प्राचीन सभ्यताएं नष्ट हो गईं... हमलों-दर-हमलों के बावजूद हमारी सभ्यता इन्हीं आधारभूत मूल्यों की वजह से बची रही... अगर हम ये बात याद रखें, कोई भी हमारे लोकतंत्र को आगे बढ़ते रहने से नहीं रोक सकता..."
फिर बिहार की एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने चुप्पी तोड़ी, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बयान के हवाले से. मोदी ने कहा, ''छोटे-मोटे लोग राजनीतिक फायदा उठाने के लिए उल्टे-सीधे बयान देते रहते हैं. मैं अपील करता हूं कि इनकी बात न सुनें... आप नरेंद्र मोदी की बात भी न सुनें... राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जो कल कहा है, उसे सुनें. राष्ट्रपति ने सद्भाव का जो रास्ता दिखाया है हम सबको मिलकर उस पर चलना होगा...''
अब वही प्रणब मुखर्जी आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे हैं. प्रणब मुखर्जी संघ के कार्यक्रम में क्या बोलेंगे ये कोई नहीं जानता, लेकिन एक बात तो तय है वो जो भी बोलेंगे उनके 'मन की बात' होगी. अब उन पर न तो किसी संवैधानिक पद के दायरे में रह कर बयान देने की बाध्यता है, न ही किसी पार्टी लाइन की सीमा के भीतर.
ये ठीक है कि कांग्रेस नेता बुराड़ी सम्मेलन के ड्राफ्ट में संघ की आतंकवादियों से तुलना की बातें याद दिला रहे हैं, लेकिन वे ये भूल जा रहे हैं कि राष्ट्रपति बनने से पहले वो कांग्रेस को छोड़ चुके थे.
अलग अलग विचारधारा होने के बावजूद सरकार में साथ काम करने के दौरान मोदी और मुखर्जी का एक दूसरे के व्यक्तित्व और कार्यशैली के प्रति सम्मान भी दिखा और तारीफें भी सार्वजनिक रूप से सुनने को मिलीं. जीएसटी को राहुल गांधी भले ही गब्बर सिंह टैक्स करार दें, लेकिन जब आधी रात को प्रणब मुखर्जी ने घंटी बजाने के साथ ही जो कुछ कहा उसमें संतोष ही झलक रहा था. मोदी सरकार के उस कार्यक्रम का कांग्रेस ने बहिष्कार किया था. कांग्रेस ने विपक्ष को भी रोकने की कोशिश की लेकिन उसमें फूट पड़ गयी.
प्रणब मुखर्जी ने मोदी को फास्ट-लर्नर बताया. मसलन, प्रणब मुखर्जी बोले, कभी संसद का अनुभव न होने के बावजूद मोदी ने विदेशी मामलों पर बड़ी ही जल्दी अच्छी पकड़ हासिल कर ली. मोदी भी मुखर्जी को पिता तुल्य बता चुके हैं.
अब जबकि प्रणब मुखर्जी संघ के बुलावे पर मेहमान बन कर जा रहे हैं - और नागपुर में संघ को, मोदी को और उनके साथियों को कुछ सलाह देते हैं तो प्रधानमंत्री तब के महामहिम की बातों को वैसे ही लेंगे जैसे दादरी कांड के वक्त बताये थे - और उसे अपनाएंगे भी या कांग्रेस मुक्त भारत वाले डस्ट बिन में डाल देंगे?
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