एक आतंकी के घर वाले हैं असली आतंकवादी
पुलवामा आतंकी हमले में शहीद सैनिकों के मामले में कश्मीरी आतंकियों का समर्थन करने वाले लोगों को एक बार ये वायरल वीडियो जरूर देख लेना चाहिए.
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पुलवामा में फिदाइन हमला करने वाले जैश आतंकी आदिल अहमद डार के घर जाकर उसके परिवार वालों की बेचारगी दिखाने वाले भी गुनाह कर रहे हैं. यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि दरिंदों ने आतंक का रास्ता किसी जुल्म के एवज में उठाया है. जबकि हकीकत ये है कि कश्मीरी युवाओं को मजहब के नाम पर आतंक के रास्ते पर ले जाने का काम यदि कुछ संगठन कर रहे हैं, तो इन आतंकियों के परिवार वालों का इसमें 'नैतिक' समर्थन है. इन्हें ब्रेनवॉश करने वालों ने समझा दिया है कि यदि वे फौज से लड़ते हुए जान देंगे तो शहीद कहलाएंगे.
उदाहरण के लिए ये वीडियो देखिए:
आपको पहले बता दें कि यह वीडियो मूल रूप से काफी पुराना है. लेकिन यहां हो रही बातचीत आपको कश्मीर के हालात और सेना की चुनौती को समझने में मदद करेगी. यह बातचीत उन लोगों को खासतौर पर सुननी चाहिए, जो आतंकवादियों के परिवारों को सहानुभूति की नजर से देखते हैं. इस वीडियो में सेना का अफसर एक कश्मीरी परिवार को समझाने की कोशिश कर रहा है, जिसका बेटा आतंकवादी बन गया है. और पलट के उसे जो जवाब मिल रहा है वह कश्मीरी समस्या को पॉलिटिकल कहने वालों की आंख खोलने के लिए काफी है.
सेना का अफसर जब कहता है कि आप लोग उसे समझाएं तो वो सरेंडर कर देगा. इस पर आतंकी के परिवार का बुजुर्ग कहता है हमारे समझाने से क्या होगा, जिसे जाना है वो तो चला गया. लेकिन बात यहां खत्म नहीं होती. उसी आतंकी के घर की एक महिला मोर्चा संभाल लेती है. वो कहती है हम उसको सरेंडर करने के लिए नहीं बोलेंगे. यदि वो घर पर जिंदा वापस आ जाए, तो मैं खुद उसे शहीद कर दूंगी. जब वो दीन (इस्लाम) के रास्ते पर निकल गया तो हमें क्या जरूरत है उसको वापस बुलाने की. वो अल्लाह के रास्ते पर गया है.
कश्मीर में आतंकवादियों को सुरक्षा देने वाले उनके परिवार वाले ही होते हैं जो बिना सोचे समझे उन्हें शहीद का दर्जा दिलवाना चाहते हैं.
जब अफसर समझाता है कि बच्चे भटक जाते हैं तो वही महिला फिर बोल रही है कि उसने अपनी मर्जी से ये रास्ता चुना है, और हमें लगता है कि यही सही है. अब हम उसका मुंह तभी देखेंगे जब वो शहीद होकर इस घर में आएगा. अगर वो जिंदा वापस आएगा तो मैं खुद उसकी गर्दन उतार दूंगी. खुद अपने हाथों से.
सैनिक अफसर कहता है कि 'हथियार उठाने से क्या फायदा?' महिला पूछती है, आप लोग क्यों हथियार उठाते हो. अफसर कहता है कि हम तो ये देश की रक्षा के लिए करते हैं. तो वो महिला कहती है कि हमारे घर का बच्चा हथियार नहीं उठाएगा तो अल्लाह को क्या मुंह दिखाएगा. आप लोग उसको ऐसे ही तो शहीद नहीं करोगे, ना. जब वो हथियार उठाएगा, आप उसको मारोगे. तभी तो अल्लाह को लगेगा कि उसने अल्लाह के लिए जान दी.
परेशानी यह नहीं है कि यह महिला क्या सोचती है, या यह परिवार क्या सोचता है. चिंता इस बात की है कि इस वीडियो में दिखाई दे रहे दो बच्चे अबोध उम्र से ही ये जहर सुनेंगे तो आगे चलकर किस रास्ते पर पहुंचेंगे.
धारा 370 घाटी में सिर्फ ISIS की रक्षा कर रही है-
आदिल अहमद डार ने जिस तरह आतंक के लिए धर्म का हवाला दिया. जिस तरह उसने भारत में रहने वालों को मुशरिक कहा. जिस तरह वह जन्नत की बातें कर रहा था. किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि कश्मीर में अलगाववाद की कोई समस्या है. दरअसल, कश्मीर को पॉलिटिकल समस्या मानकर हमारी सरकारों ने बड़ी भूल की है. धारा 370 का इस्तेमाल घाटी के लोगों ने धर्मांधता को फैलाने के लिए किया है. मामला पाकिस्तान के झंडे फहराने तक तो ठीक था, पिछले कुछ वर्षों से ISIS के झंडे फहराने को हलके में लेना ठीक नहीं है.
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