कैसी होगी 'धर्मनिरपेक्ष' शिवसेना सरकार
बीजेपी से अलग होकर शिवसेना को कदम कदम पर ठोकरें खानी पड़ रही हैं. बार बार समझौते भी करने पड़ रहे हैं. अब इससे ज्यादा बुरी बात क्या होगी कि हिंदुत्व की राजनीति छोड़ शिवसेना को धर्म निरपेक्षता का रास्ता अख्तियार करना पड़े!
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शिवसेना, NCP और कांग्रेस की जिस संभावित सरकार की चर्चा हो रही है, उसमें शिवसेना को एक कदम और पीछे हटना पड़ा है. ताजा कदम 'धर्म निरपेक्षता' को लेकर पीछे खींचना पड़ा है. पहले वीर सावरकर को भारत रत्न देने और मुस्लिम छात्रों को शिक्षा में आरक्षण देने को लेकर रहा. उसी क्रम में हिंदुत्व की जिद छोड़ धर्मनिरपेक्षता कबूल कर लेना शिवसेना के खाते में एक और समझौता दर्ज होना ही तो है.
शिवसेना और कांग्रेस का हाथ मिलाना बीजेपी और पीडीपी गठबंधन से ज्यादा नहीं तो कम पेंचीदा भी नहीं है. एक तरफ हिंदुत्व है तो दूसरी तरफ सेक्युलरिज्म. CMP में बाद यहीं पर आकर अटक गयी थी - फिर बीच का रास्ता निकाला गया. बीच का रास्ता क्या कहें कांग्रेस का दबाव ही चला क्योंकि शिवसेना को तो पीछे ही हटना पड़ा है.
हैरान करता है शिवसेना का हिंदुत्व की जिद छोड़ देना
आखिरकार तय हुआ कि CMP में भारतीय संविधान की प्रस्तावना को शामिल किया जाएगा. चुनावी रैली की बात और होती है और दो विरोधी रानीतिक दलों की मीटिंग की और. वो भी तब जब शिवसेना का स्वार्थ हो और प्रतिष्ठा भी फंसी हुई हो. शिवसेना के लिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना को शामिल करने से इंकार करना मुश्किल था जिसमें 'पंथ-निरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य' बनाने की बात की गयी है.
शिवसेना के खिलाफ एक और बात फिल्टर होकर आ रही है - अब पता चला है कि शिवसेना के हिस्से में मुख्यमंत्री की कुर्सी सिर्फ ढाई साल की ही रह सकती है. पहले CMP को लेकर बताया गया था कि शिवसेना का मुख्यमंत्री पूरे पांच साल के लिए होगा. कांग्रेस और एनसीपी के डिप्टी सीएम होंगे. शिवसेना और एनसीपी के 14-14 मंत्री होंगे और कांग्रेस के हिस्से में 12. अब ये नंबर भी बदल चुका है.
धर्मनिरपेक्षता पर कांग्रेस ने शिवसेना को झुकाया
अब माना जा रहा है कि एनसीपी मुख्यमंत्री पद शिवसेना के साथ 2.5-2.5 साल के लिए बांटने पर भी अड़ सकती है. हां, मुख्यमंत्री की पहली पारी शिवसेना को जरूर मिल सकती है - जो डिमांड बीजेपी से शिवसेना की रही. उससे ज्यादा कुछ नहीं.
स्थाई सरकार का सपना अधूरा न रह जाये
महाराष्ट्र में जो महागठबंधन खड़ा करने की कोशिश हो रही है, उसमें भी कांग्रेस और एनसीपी का ही टोन सुनाई दे रहा है - 'महाविकास अघाड़ी' यानी प्रोग्रेसिव अलायंस और इस मुख्य एजेंडा किसान और विकास होंगे. थोड़ा ध्यान दीजिए महागठबंधन का नाम छोटे UPA जैसा नहीं लग रहा है!
शुरू से ही सुनने में आ रहा है कि सोनिया गांधी विचारधारा पूरी तरह अलग होने के चलते शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर फैसला नहीं कर पा रही थीं. बीच में ये भी मालूम हुआ कि शरद पवार भी बातचीत को अपने तरीके से घुमा-फिरा रहे थे. तब तक जब तक कि अहमद पटेल जैसे नेता अहम मीटिंग से दूर हुआ करते रहे.
सोनिया गांधी को शिवसेना के साथ सरकार सरकार बनाने को लेकर तैयार करने में दो नेताओं के नाम आ रहे हैं - अशोक गहलोत और कमलनाथ. 2018 में राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में लाने वाले दो मुख्यमंत्री.
सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों के मुताबिक, दोनों नेताओं की दलील रही कि महाराष्ट्र में कांग्रेस अभी चौथे नंबर पर पहुंच गयी है. अगर कांग्रेस विपक्षी गठबंधन की संभावित सरकार में शामिल नहीं होती है तो आने वाले चुनावों में हालात और भी खतरनाक हो सकते हैं. सोनिया को जो बात सबसे ज्यादा समझ में आयी वो भी अशोक गहलोत और कमलनाथ की ही दलील रही - 'विचारधारा को बचाये रखने के लिए पार्टी को भी बचाये रखना बेहद जरूरी होता है.'
सोनिया गांधी को ये तो पता ही था कि महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं और चुन कर आये विधायकों के मन में क्या चल रहा है. सरकार और सिर्फ सरकार. सोनिया गांधी तैयार हो गयीं.
मीडिया के सामने कांग्रेस की तरफ से मुखातिब कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा - 'बातचीत सकारात्मक रही'. फिर बोले, '21 दिनों से महाराष्ट्र में जो अस्थिर परिस्थिति है, उसे समाप्त करने के लिए चर्चा हुई. चर्चा सकारात्मक रही. बातचीत चालू रहेगी. मुझे पूरा विश्वास है कि महाराष्ट्र में एक स्थिर सरकार जल्द से जल्द अस्तित्व में आएगी.'
तमाम बातों और मुलाकातों के बाद भी अब तक कोई भी पक्ष ये नहीं कहने की स्थिति में है कि सब कुछ फाइनल है, बल्कि फाइनल के करीब है ऐसा लगता है. आखिर कांग्रेस नेता को क्यों लगता है कि महाराष्ट्र में कर्नाटक वाला खेल नहीं होगा - सिर्फ इसलिए कि वहां बीएस येदियुरप्पा नहीं हैं? देवेंद्र फडणवीस के हाथ थोड़े बंधे हुए हैं - वरना, शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस से बातचीत का मौका भी शायद ही मिला होता.
मान लेते हैं कि महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की ही सरकार बन जाती है - फिर बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या कांग्रेस और एनसीपी की मदद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले शिवसेना नेता के शपथग्रहण में राहुल गांधी जाएंगे? अगर राहुल गांधी नहीं तो क्या अशोक गहलोत और कमलनाथ जाएंगे? अगर बाहर से कोई नहीं जाएगा तो याद रहे कर्नाटक में सरकार सवा साल चली थी. महाराष्ट्र की 'स्थायी सरकार' कितन दिन चल पाती है देखना होगा.
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