Howdy Modi: ट्रंप-मोदी के अलावा भारत और अमेरिका का कितना फायदा
पीएम मोदी अब सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की सियासत को भी प्रभावित करने वाले ग्लोबल लीडर बन गए हैं. यही वजह है कि दुनिया के सबसे सुपरपावर देश के सुपरपावर नेता को भी बोलना पड़ रहा है- Howdy, Modi.
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अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बार फिर से डंका बजने वाला है. पीएम मोदी अमेरिका में 22 सितंबर को 'Howdy Modi' रैली को संबोधित करेंगे, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी शामिल होंगे. इसके अलावा अमेरिका के 50 से ज्यादा सांसद इस रैली में शिरकत करेंगे. इस कार्यक्रम में भारतीय मूल के करीब 50 हजार से ज्यादा लोग शामिल हो रहे हैं. कार्यक्रम का नाम 'Howdy' मोदी रखा गया है. इस 'Howdy' का मतलब भी विशेष है. 'Howdy' शब्द का प्रयोग 'How do you do' (आप कैसे हैं) के लिए किया जाता है. दक्षिण-पश्चिम अमेरिका में अभिवादन के लिए 'Howdy' शब्द का प्रयोग किया जाता है.
अमेरिका के इस भाग में 'Howdy' शब्द का अपना सामाजिक और सांस्कृतिक रूप महत्व है. यहां लोग आपस में तो जुड़े होते हैं. पर बाहरियों के लिए सोच थोड़ी संकीर्ण होती है. ऐसे में यहां बाहरी लोगों का आकर बसना और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर घुलना-मिलना थोड़ा कठिन होता है. लेकिन ऐसी परिस्थितियों के बीच भी बड़ी तादाद में भारतीय लोग ना सिर्फ वहां जाकर बसे, बल्कि इनलोगों के बीच में अपनी अच्छी जगह भी बनायी.
प्रधानमंत्री मोदी की ह्यूसटन रैली के बाद माना यही जा रहा है कि इससे भारत के रिश्ते अमेरिका के साथ और मजबूत होंगे
इसीलिए इस कार्यक्रम के माध्यम से भी भारतीय मूल के लोगों द्वारा अमेरिका में सांस्कृतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र में दिये गये योगदानों की झलक दिखायी जाएगी. जिसका शीर्षक है ‘‘साझा सपने, उज्ज्वल भविष्य’’. जिसमें ‘Howdy’ शब्द को मित्रता का प्रतीक माना गया है. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ह्यूस्टन में होनेवाले इस कार्यक्रम को देशों के बीच विशेष मित्रता का प्रतीक बताया है.
ट्रंप-मोदी दोनों का मिलेगा फायदा
अमेरिका की घरेलू राजनीति में प्रवासी भारतीयों की भूमिका अहम हो गयी है. ज्यादातर प्रवासी भारतीय डेमोक्रेकिट पार्टी से जुड़े हुए हैं. क्योंकि डेमोक्रेट्स की पॉलिसी प्रवासी लोगों के अनुकूल होती है. वो वीजा पॉलिसी को सरल बनाते हैं और तमाम तरह की सुविधाएं भी देत हैं. इसी वजह से भारतीय लोग वहां के चुनाव में डेमोक्रेट्स उम्मीदवारों को अधिक वित्तीय मदद देते हैं.
इधर इसके उलट रिपब्लिकन पार्टी की विचारधारा दक्षिणपंथी है. जो राष्ट्रवादी भावना रखते हैं. इनके लिए अपने देश का हित सर्वप्रथम होता है. जैसा कि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के भाषणों में भी ‘America First’ की बातें अक्सर सुनाई देती है. रिपब्लिकन अक्सर प्रवासियों के खिलाफ पॉलिसी की बात करते हैं. वो अमेरिकी वीजा को कठिन बनाते हैं. इसके कारण रिपब्लिकन पार्टी की ओर दुनिया के तमाम प्रवासियों की तरह भारत के लोगों का भी झुकाव कम है. इसी वजह से अमेरिकी कांग्रेस में भारतीय मूल के सारे सदस्य डेमोक्रेट्स हैं. जिसमें तुलसी गबार्ड, कमला हैरिस जैसी सिनेटर शामिल हैं. इसमें गबार्ड तो डेमोक्रेटिक पार्टी में राष्ट्रपति पद के दावेदार भी हैं.
हालांकि रिपब्लिकनों ने पिछले कुछ समय से भारतीय-अमेरिकियों को दक्षिणपंथ की तरफ खींचने का काफी प्रयास किया है. खुद डोनल्ड ट्रंप ने अपने पिछले चुनाव अभियान के दौरान प्रवासी भारतीयों को लुभाने के लिए कई प्रयास किए थे. जिसके तहत वो मंदिरों में पूजा-पाठ करने के अलावे पीएम मोदी की जमकर तारीफ की थी, तो पाकिस्तान को निशाने पर भी लिया था. जिसकी वजह से प्रवासी भारतीयों का एक बड़ा वर्ग धीरे-धीरे रिपब्लिकन की ओर खिसक रहा है.
इधर टेक्सस में लोगों को रिझाने के लिए डेमोक्रेट पार्टी काफी मेहनत कर रही है. जबकि पारंपरिक तौर पर यहां रिपब्लिकन को ज्यादा समर्थन मिलता है. इसलिए ट्रंप के लिए टेक्सस को अपने वर्चस्व में रखे रहना एक चुनौती है. यहां के दो शहरों ह्यूसटन और डलास में भारतीय मूल के करीब 3 लाख लोग रहते हैं. जिनका रोल आनेवाले चुनाव में महत्वपूर्ण होगा. इसी कारण से राष्ट्रपति ट्रंप ने भी ह्यूसटन में हो रहे पीएम मोदी की रैली को एक अवसर के रूप में लिया. ताकि वो पीएम मोदी और भारत की तारीफ कर भारतीयों को लुभा सकें.
अमरीका में ट्रंप की और भारत में मोदी की राजनीति समानांतर चल रही है. इस रैली से दोनों नेताओं को अपने-अपने देश में राजनीतिक फायदे होंगे. जहां ट्रंप मोदी के कार्यक्रम में आकर कहेंगे कि अमरीका की रिपब्लिकन पार्टी मोदी के इंडिया का समर्थन करती है. वहीं भारत में बीजेपी दुनिया में पीएम मोदी की डंका बजने की बात कहेगी, और ये बताएगी की पीएम मोदी ने वर्ल्ड कूटनीति में कैसे चीन और पाकिस्तान को पानी पिला रखा है. बीजेपी इसे तीन राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनाव में भी भुनाएगी.
अमेरिका और भारत दोनों को है एक दूसरे की जरूरत
कई कारणों से भारत अमेरिका के लिए काफी महत्वपूर्ण देश बन गया है. जिसमें भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था, बाजारर और दुनिया भर में मौजूद प्रभावशाली प्रवासी भारतीय अहम हैं. अमेरिका में 100 भारतीय कंपनियों ने करीब 10 अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर वहां हजारों नौकरियां पैदा की हैं. इसी तरह, करीब दो लाख भारतीय छात्र अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 7 अरब डॉलर का योगदान करते हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार 2025 तक 238 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच जाने की उम्मीद है. जिसकी अनदेखी ट्रंप तो क्या अमेरिका कोई भी राष्ट्रपति नहीं कर सकता.
पीएम मोदी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ भी गहरे संबंध स्थापित कर लिए थे. उन्हीं के कार्यकाल में अमेरिका ने भारत को 'प्रमुख रक्षा साझेदार' का दर्जा दिया था. वहीं पीएम मोदी की अब राष्ट्रपति ट्रंप के साथ भी मित्रता प्रगाढ़ हो गई है. जिसके कारण अमेरिका ने भारत के स्तर को बढ़ा कर 'सामरिक साझेदार अधिकार-1' कर दिया है.
वहीं ट्रंप प्रशासन ने एशिया-प्रशांत को 'हिंद-प्रशांत' का नाम भी दिया है. खासकर एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव का काउंटर करने के लिए अमेरिका भारत को अहम साझेदार के तौर पर देखता है. इसीलिए पिछले एक दशक में भारत-अमेरिका के संबंध में एक नया आयाम स्थापित हुआ है. वहीं भारत के लिए भी अपनी सामरिक और आर्थिक हितों के लिए अमेरिका के साथ अच्छे संबंध बहुत अहम है. ऐसे में ह्यूसटन रैली में पीएम मोदी और ट्रंप की जुगलबंदी दोनों देशों की राजनीति और कूटनीति के लिए काफी मायने रखती है.
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