सोनिया गांधी अगर BJP को 'शाइनिंग इंडिया' मोड में देख रही हैं तो फिर से सोच लें...
मोदी-शाह की जोड़ी हर हाल में पंचायत से पार्लियामेंट तक जीत सुनिश्चित करना चाहती है. इस जोड़ी के पास ऐसी कला और काबिलियत है कि मामूली से लगने वाले चुनावों को भी नेशनल इवेंट के तौर पर प्रोजेक्ट कर देते हैं - त्रिपुरा से बड़ी मिसाल क्या होगी?
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2017 में सोनिया गांधी के लंच को भले ही किसी पार्टी जैसा ट्रीटमेंट मिला हो, 13 मार्च का डिनर पॉलिटिक्स से लबालब भरा होगा. सोनिया फिलहाल देश में एक सेक्युलर फ्रंट खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के 17वें संस्करण में सोनिया ने बड़ी मजबूती के साथ कहा कि बीजेपी को दोबारा सत्ता में कांग्रेस लौटने नहीं देगी. दरअसल, सोनिया गांधी की नजर में 'अच्छे दिन...' का जुमला बीजेपी के लिए 2019 में 'शाइनिंग इंडिया' साबित होगा. 2004 में बीजेपी वाजपेयी सरकार के 'शाइनिंग इंडिया' कैंपेन में ही गच्चा खा गयी. पंद्रह साल बाद सोनिया गांधी कहीं बीजेपी के नये नेतृत्व को भी पुराने जैसा समझने की भूल तो नहीं कर रही हैं?
"कुछ भी तो ठीक नहीं हो रहा..."
मुंबई में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में सोनिया गांधी का सवाल तो बड़ा ही सटीक था, "क्या भारत मई, 2014 से पहले पूरी तरह एक ब्लैक होल था? क्या भारत विकास और महानता की तरफ सिर्फ चार साल पहले बढ़ा है?"
इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन अरुण पुरी के साथ बातचीत में एक सवाल के जवाब में सोनिया का कहना था कि वो देश को लेकर आशान्वित तो हैं, लेकिन डरी हुई भी हैं. सोनिया बोलीं, "चुनाव के लिए लोगों को बांटने की कोशिश की जा रही है... यहां तक कि हमारे सोशल डीएनए में भी बदलाव का प्रयास किया जा रहा है... आरटीआई कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है... इतिहास दोबारा लिखने की कोशिश हो रही है."
कार्ति चिदंबरम को लेकर पूछे गये सवाल पर सोनिया ने कोई सीधी टिप्पणी तो नहीं की, लेकिन ये जरूर कहा - "सीबीआई किसी के भी खिलाफ कुछ भी जुटा कर पेश कर सकती है."
मोदी सरकार के बारे में पूछे जाने पर सोनिया गांधी ने भी उन्हीं मुद्दों का जिक्र छेड़ा जो हाल फिलहाल राहुल गांधी उठाते रहे हैं. सोनिया का कहना रहा कि लोकतंत्र में खुली बहस की छूट होनी चाहिये, लेकिन हमें बोलने ही नहीं दिया जाता. इन्हीं बातों को लेकर राहुल गांधी कहते रहे हैं कि वे बोले तो भूकंप आ जाएगा, इसीलिए बोलने नहीं दिया जाता. सोनिया का भी उन सभी बातों पर जोर रहा, लेकिन पूरी संजीदगी के साथ.
2019 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी को लेकर सोनिया गांधी आत्मविश्वास से तो भरपूर नजर आयीं, लेकिन जिस आधार पर वो दावा कर रही हैं वो हकीकत से दूर नजर आता है.
'बीजेपी को लौटने नहीं देगी कांग्रेस'
सोनिया गांधी मानती हैं कि 2014 में कांग्रेस एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर से तो जूझ ही रही थी, बीजेपी ने सारी चीजें बढ़ा चढ़ा कर पेश की. सोनिया का कहना रहा कि कई घोटालों को भी अनावश्यक हवा दी गयी. साथ ही, तत्कालीन सीएजी की भूमिका पर भी सोनिया ने सवाल खड़े किये.
बात जब ये आयी की 2019 किसका होगा, तो सोनिया ने पक्के यकीन के साथ कहा कि कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी. फिर थोड़ा रुक कर अपनी ही बात को सुधारते हुए सोनिया बोलीं - "हम उन्हें वापसी का मौका ही नहीं देंगे."
अगर सोनिया गांधी को लगता है कि अगली बार बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया जा सकता है तो ऐसा सोचने का उन्हें हक है. और कुछ हो न हो, कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश तो बढ़ेगा ही.
सोनिया की नजर में आम चुनाव में कांग्रेस बीजेपी के प्रोपेगैंडा को ही मुद्दा बनाने जा रही है. सोनिया का कहना है कि बीजेपी के 'अच्छे दिन...' का वादा उसके लिए 'शाइनिंग इंडिया पार्ट - 2' साबित होने जा रहा है.
सोनिया गांधी लोगों को ये समझाना चाहती हैं कि उन्हें खोखले वादों में यकीन नहीं है, लेकिन बीजेपी आज भी ऐसे झूठे वादे कर रही है जो पूरे नहीं किये जा सकते. साथ ही, सोनिया ने माना कि उनकी पार्टी 2014 में यूपीए सरकार के अच्छे कामों को लोगों तक नहीं पहुंचा सके.
राहुल गांधी के मंदिर दर्शन कार्यक्रम के प्रसंग में सोनिया गांधी ने कहा, "हम मंदिर जाने का प्रचार नहीं करते... लेकिन कांग्रेस को बीजेपी मुस्लिम पार्टी की तरह पेश करती है."
देखा जाये तो 2004 और 2019 के बीजेपी में यही आक्रामक अंदाज ही सबसे बड़ा फर्क दिखाता है, बावजूद इसके सोनिया को 'अच्छे दिन...' और 'शाइनिंग इंडिया' का आधारभूत अंतर शायद ठीक से समझ नहीं आ रहा है.
सबका साथ, सबका...
पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव के वक्त सोनिया का लंच खासा चर्चित रहा. ये बात अलग है कि नतीजा कुछ नहीं हासिल हुआ. ऐसा लगा जैसे सारे नेता पार्टी में आये, खाये-पीये और चलते बने. अगले हफ्ते सोनिया विपक्षी दलों के नेताओं को डिनर पर बुला रही हैं. हालांकि, ये डिनर सिर्फ पार्टी नहीं होने जा रहा है. इसका मकसद सिर्फ और सिर्फ पॉलिटिक्स है. सिर्फ और सिर्फ सत्ताधारी बीजेपी की घेरेबंदी है. सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने की रणनीति पर गंभीरता से विचार और और उस पर अमल के रास्ते तलाशना है. खास बात ये है कि इस डिनर में लालू प्रसाद के जेल में होने के कारण तेजस्वी यादव भी होंगे. तेजस्वी यादव ने कुछ दिन पहले राहुल गांधी के साथ लंच का फोटो बड़े गर्व के साथ शेयर किया था.
इंडिया टुडे के मंच से सोनिया ने विपक्ष को मैसेज देने की भी कोशिश की - अगर मुल्क का जरा भी ख्याल है तो साथ मिल कर लड़ाई लड़नी ही होगी.
बाकी सब तो ठीक है. बात घूम फिर कर वहीं आकर अटक जाती है. अगर सोनिया गांधी बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के बूते कांग्रेस की जीत के प्रति आश्वस्त हैं तो ये खुद को गुमराह करने जैसा है. दिल्ली एमसीडी का चुनाव राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में एक छोटा सा इवेंट था. अगर बीजेपी भी कांग्रेस की तरह सोचती तो मेघालय की तरह एमसीडी को गंवा देती. बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए सारे हथकंडे लगा दिये. यहां तक कि ज्यादातर पुराने उम्मीदवार भी बदल डाले और जीत हासिल की. मोदी-शाह की जोड़ी हर हाल में पंचायत से पार्लियामेंट तक जीत सुनिश्चित करना चाहती है. इस जोड़ी के पास ऐसी कला है और काबिलियत हासिल कर चुकी है कि मामूली से लगने वाले चुनावों को भी नेशनल इवेंट के तौर पर प्रोजेक्ट कर देते हैं. त्रिपुरा से बड़ी मिसाल क्या होगी?
अगर सोनिया गांधी को अब भी लगता है कि 15 साल बाद भी बीजेपी वैसे ही मुगालते में रहती है तो ये सबसे बड़ी राजनीतिक भूल है. 2004 की बीजेपी शाइनिंग इंडिया के ख्वाबों में जी रही थी, 2019 की बीजेपी खुद अपने अच्छे दिन ला चुकी है. तब वाजपेयी की टीम मान कर चल रही थी कि उसने अपना काम पूरा कर दिया है - जो भी होगा अच्छा ही होगा. मोदी-शाह की टीम 24x7 की राजनीति करती है. सिर्फ बूथ लेवल नहीं, हर पन्ने पर पूरा ध्यान दिया जाता है. बीजेपी और आरएसएस के कार्यकर्ता चुनाव की आहट या एक्टिविटी शुरू होने के बहुत पहले से ही अपने वोटर के संपर्क में रहते हैं. मतदान के दिन भी वे सुनिश्चित करते हैं कि लोग वोट डालने पहुंचें और आखिर तक उन्हें हर तरीके से समझाते रहते हैं कि देश के लिए उनका वोट कितना मायने रखता है - और सिर्फ बीजेपी ही है जिसके लिए देश सबसे ज्यादा मायने रखता है.
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