शांति के कबूतर उड़ाने वाले इमरान खान और उसके कबूतरबाजों की हकीकत
पाकिस्तान की असेम्बली में प्रस्ताव लाकर अभिनंदन की रिहाई के लिए इमरान खान को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की मांग की गई. अगर नोबेल प्राइज कैटेगरी में वैश्विक आतंकवाद के भरण-पोषण के लिए भी कोई पुरस्कार होता तो उन्हें अवश्य मिल जाता.
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एकतरफ अभिनंदन को रिहा करके पाकिस्तान अपने आप को शांति का पैगम्बर बताता है. दूसरी तरफ उनकी सेना हमारे सैनिकों पर हमले करती है. दर्जनों बार सीज़फायर का उल्लंघन किया जाता है. सीमा पर रोज हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं. भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करके पाकिस्तान विक्टिम कार्ड खेल रहा है. अभिनंदन की रिहाई के बहाने उसने दुनिया के सामने कहा कि हम शांति और बातचीत चाहते हैं. जबकि बिगड़ते हालातों में अभिनंदन को छोड़ना पाकिस्तान की मजबूरी थी.
पाकिस्तान यह कतई बताने की कोशिश न करे कि उसने भारत पर दरियादिली दिखाई है.
वर्तमान हालातों में निम्न बाते हैं जिसे समझना जरुरी है-
- पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान अमेरिका सहित दुनिया भर में अलग-थलग पड़ गया.
- जिनेवा कन्वेंशन के तहत उसे अभिनंदन को छोड़ना ही पड़ता.
- इस्लामिक देशों का सबसे बड़ा संगठन आईओसी भी पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर नहीं आया. जबकि पाकिस्तान आईओसी का संस्थापक सदस्य रहा है. पाकिस्तान के विरोध के बावजूद भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को आईओसी द्वारा मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जाना भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत थी.
- पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अभी बुरे दौर से गुजर रही है. पाकिस्तान के आर्थिक हालात युद्ध या युद्ध जैसी स्थितियों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं.
- पाकिस्तान अपने व्यापार के लिए काफी हद तक भारत पर निर्भर करता है. कई वस्तुओं पर 200 फीसदी शुल्क लगाए जाने से पाकिस्तान में चीजें काफी महंगी हो गई हैं.
- भारत के आक्रामक रुख को देखते हुए कहीं न कहीं पाकिस्तान बैकफुट पर आया है. क्योंकि सरकार ने बिना शर्त अभिनंदन को अविलंब लौटाने की मांग की थी.
इमरान खान के पास और चारा क्या था
क्या अब भी हमें समझना चाहिए कि अभिनंदन को लौटाकर इमरान सबसे बड़े शांतिदूत बन गए हैं?
दरअसल पाकिस्तानी सेना द्वारा अभिनंदन को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करके एडिटेड वीडियो वायरल किया गया. क्या इसी के आधार पर भारत के कुछ बुद्धिजीवी इमरान को शांतिदूत मानने लग गए? नेताओं की जमात में नवजोत सिंह सिद्धू, शाह फैजल और महबूबा मुफ्ती सईद सरीखी नेताओं ने ट्वीट करके इमरान खान को शुक्रिया कहा है. वहीं स्तंभकार सुधीन्द्र कुलकर्णी, शोभा डे और पत्रकार सागरिका घोष, बरखा दत्त और नंदी वर्मा जैसे वामपंथी धारा के बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने ट्वीटस के माध्यम से इमरान को शांति के पैगम्बर अवतार के लिए शुक्रिया कहा है.
लेकिन अचरज तब होता है जब कुछ तथाकथित लोग इमरान को नोबेल के हकदार भी मानने लग जाते हैं.
आपको मालूम हो कि पाकिस्तान की असेम्बली में प्रस्ताव लाकर अभिनंदन की रिहाई के लिए इमरान खान को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की मांग की गई. अगर नोबेल प्राइज कैटेगरी में वैश्विक आतंकवाद के भरण-पोषण के लिए भी कोई पुरस्कार होता तो उन्हें अवश्य मिल जाता. आखिर इमरान किसलिए चाहते हैं नोबेल? मसूद अजहर के लिए, दाऊद इब्राहिम के लिए या फिर हाफिज सईद जैसे पालतू आतंकियों को पालने के लिए?
पाकिस्तान की नोबेल प्राइज विजेता मलाला युसूफजई पर इनके ही पालतू आतंकियों ने जानलेवा हमला किया था. उसके बाद ही मलाला के साहस और संघर्ष के लिए उन्हें नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया था. जिन दहशतगर्दों के खिलाफ मलाला ने आवाज बुलंद की थी, उन्हीं को पालने वाली सरकारों के मुँह से नोबेल का नाम शोभा नहीं देता. पाकिस्तान की असेम्बली किस मुंह से नोबेल की बात करती है?
इतिहास ग्वाह है 1971 के युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक युद्ध बंदियों को रिहा किया था. इसलिए हमारे एक विंग कमांडर की रिहाई को लेकर पाकिस्तान शांति के कबूतर उड़ाने बंद करे.
पाकिस्तान की तर्ज पर भारत में भी कई बुद्धिजीवी, पत्रकार और राजनेता 'ईमरानशुक्रिया' का हैशटैग चलाने लग गए. विवाद तब और बढ़ गया जब यूपीएससी सेवा छोड़कर नए-नए राजनीति में आए शाह फैजल ने ट्वीट करके इमरान खान को नोबेल दिए जाने का समर्थन किया. फैजल 2009 में यूपीएससी के टॉपर रहे हैं. फिलहाल जम्मू-कश्मीर की राजनीति में सक्रिय हैं. मुझे लगता है ऐसे लोगों का न राजनीति में काम है और न ही सरकारी सेवाओं में. शाह फैजल भी उसी लीक पर चल रहे हैं जिसपर जम्मू-कश्मीर के बाकी नेता चलते हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि फारुख अबदुल्ला, उमर अबदुल्ला, महबूबा मुफ्ती सईद और शाह फैजल जैसे अधिकांश जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने ही कश्मीर की हवा में जहर घोलने का काम किया है. विभिन्न मौकों पर इन जनप्रतिनिधियों का रुख पाकिस्तान की तरफ झुका होता है. जब जरुरत पड़ती है पाकिस्तान को आतंकवाद पर घेरने की तो माननीय नेतागण इमरान को नोबेल दिए जाने की बात करते हैं?
यही कश्मीर की राजनीति की बिडंबना है, जिसने इसकी खूबसूरत वादियों को खून से रक्तरंजित कर रखा है. इसलिए हमें शांति और दरियादिली के कबूतर उडाने वाले इमरान और उसके कबूतरबाजों से सावधान रहना चाहिए.
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