पाकिस्तान में इकलौते 'जिहादी' बनकर रहना चाहते हैं इमरान खान!
इमरान तीन चीजें एक साथ डील कर रहे हैं. एक- फ्रांस पर कार्रवाई के साथ गैर इस्लामिक अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में रिश्ते खराब नहीं करना चाहते. दो- तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) ले साथ सुलह के जरिए देश में खराब हो रही क़ानून व्यवस्था की स्थिति को दुरुस्त करना चाहते हैं और तीन- पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामिक राजनीति पर कॉपी राइट बनाए रखना चाहते हैं.
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पाकिस्तान में कट्टरपंथियों और सरकार के बीच एक बार फिर ताजा झड़प हुई है. आतंकी संगठन के आरोप में प्रतिबंधित हुई तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के समर्थकों और पुलिस के बीच रविवार को लाहौर सुलग पड़ा. टीएलपी कार्यकर्ताओं ने पुलिस के जवानों बंधक बना लिया था. हालांकि बंधकों को बाद में रिहा करा लिया गया. "द डान" के मुताबिक़ इमरान खान ने पाकिस्तान की कुछ राजनीतिक पार्टियों पर धार्मिक भावनाओं के दुरुपयोग का आरोप लगाया. दावा किया कि उन्होंने अन्य मुस्लिम देशों के साथ प्रमुखता से फ्रांस में पैगंबर के अपमान के मुद्दे को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान शुरू किया.
इमरान ने कहा- "हमारे देश का यह एक बड़ा दुर्भाग्य है कि कई बार हमारे राजनीतिक दल और धार्मिक दल इस्लाम का गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं और इसका इस्तेमाल ऐसे करते हैं कि वे अपने ही देश को नुकसान पहुंचाते हैं." यह भी कहा कि उन्होंने किसी भी दूसरे देश में धर्म (इस्लाम) के प्रति लोगों का ऐसा लगाव और पैगंबर से प्यार नहीं देखा.
पाकिस्तान में पैगम्बर के अपमान के लिए फ्रांस पर कार्रवाई का दबाव है. टीएलपी फ्रांस पर कार्रवाई के लिए पिछले कई महीनों से मुहिम चला रही है. इसी महीने 12 अप्रैल को टीएलपी पर बैन लगाकर उसके चीफ मौलाना साद हुसैन रिजवी को गिरफ्तार कर लिया गया था जिसके बाद दंगे भड़क गए थे. बीच बचाव की कोशिशें भी जारी हैं जिसके तहत आज सुबह टीएलपी के साथ इमरान सरकार ने एक दौर की बातचीत की. पाकिस्तान से मिली खबरों पर यकीन करें तो जल्द ही दूसरे दौर की बातचीत भी होगी.
इमरान खान
इमरान तीन चीजें एक साथ डील कर रहे हैं. एक- फ्रांस पर कार्रवाई के साथ गैर इस्लामिक अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में रिश्ते खराब नहीं करना चाहते. दो- टीएलपी ले साथ सुलह के जरिए देश में खराब हो रही क़ानून व्यवस्था की स्थिति को दुरुस्त करना चाहते हैं और तीन- पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामिक राजनीति पर अपना नियंत्रण (एक तरह से कॉपी राइट) बनाए रखना चाहते हैं. यही वजहें हैं कि सरकार जिसे आतंकी संगठन बता रही है उसी के साथ सुलह की कोशिशों में भी जुटी है. फ्रांस में पैगम्बर के विवादित कार्टून से शुरू हुआ अबतक का पूरा घटनाक्रम और सोमवार को इमरान के बयान से साफ़ हो जाता है कि टीएलपी और मौलाना साद हुसैन रिजवी की बढ़त से इमरान को बहुत दिक्कतें हैं.
इमरान पर साद हुसैन की रिहाई का दबाव
पाकिस्तान समेत दुनियाभर का कट्टरपंथी समाज साद हुसैन की लेकर इमरान सरकार पर रिहाई का दबाव बनाए हुए है. कार्रवाई से टीएलपी पकड़ तो मजबूत दिख ही रही है साद हुसैन को भी लोकप्रियता मिल रही है. पाकिस्तान की सियासत में नवाज शरीफ जैसे वरिष्ठ नेता जेल में हैं. दूसरी पीढ़ी में मरियम नवाज और बिलावल जरदारी जैसे नेता बाहर होकर भी इमरान की राजनीति के सामने नेतृत्व की चुनौती पेश नहीं कर पाए हैं. अब विपक्ष की ओर से वो चुनौती टीएलपी और 27 साल के साद हुसैन पेश करते दिख रहे हैं.
इमरान ने कैसे और क्यों पकड़ी कट्टरपंथी राजनीति की राह
1992 में इमरान की कप्तानी में पाकिस्तान ने क्रिकेट का विश्वकप जीता. इसके बाद पड़ोसी देश में उनकी छवि सबसे बड़े सेलिब्रिटी के रूप में बन गई. मां की याद में आला दर्जे का अस्पताल बनाने और दूसरे सामजिक कार्यों को करते हुए इमरान ने 1996 में तहरीक-ए-इंसाफ पाकिस्तान की नींव डाली. विकास, युवाओं को रोजगार और ताकतवर "नया पाकिस्तान" का नारे के साथ राजनीति में कदम रखा. लेकिन राजनीति उनकी सोच से अलग निकली. उन्हें सफलता नहीं मिली. एक समय तो ऐसा भी दिखा कि इमरान राजनीति में हाशिए पर थे. मगर पिछले कुछ सालों में इमरान की राजनीति में जबरदस्त परिवर्तन दिखा.
इमरान के लिए पॉपुलर इस्लामी मुद्दा अहम
राजनीति के शुरुआती वक्त में बेहद प्रगतिशील दिख रहे इमरान ने नए पाकिस्तान के नारे में एक और चीज जोड़ ली. भारत का अंधा विरोध और इस्लाम की ग्लोबली पॉपुलर इस्लामी कट्टरपंथी विचारधारा. फ्रांस इमरान के लिए राजनीति भुनाने का मुद्दा है लेकिन वो कभी चीन में उइगर मामलों को लेकर बोलते नहीं दिखते. इमरान ने अपनी छवि गढ़ने के लिए एक पर एक खूब समझौते किए. भारत से नजदीकी दिखा रहे नवाज शरीफ के विरोध में खड़ी हुई सेना की मदद ली. कट्टरपंथी नेताओं के दर पर पहुंचे. खुलकर उनका समर्थन लिया. भारत विरोध के हर मौके पर आगे रहे और इस्लाम के धार्मिक प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल किया.
कहा तो यह भी जाता है कि अपनी इस्लामिस्ट छवि गढ़ने के लिए इमरान ने बुशरा बीबी के साथ तीसरी शादी की. वो भी चुनाव से कुछ ही महीनों पहले. पहली पत्नी जेमिमा गोल्डस्मिथ के आधुनिक पहनावे और उनका रहन-सहन कट्टरपंथियों को पसंद नहीं आता था.
बुशरा बीबी से तीसरी शादी ने भी दी जमीन
इमरान से बुशरा बीबी की मुलाक़ात 2015 में हुई थी. वो पाकिस्तान के पंजाब प्रातं में कट्टरपंथी राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं. बुशरा बीबी इस्लाम की परम्पराओं को मानने वाली बहुत ही धार्मिक किस्म की महिला हैं. वो बुर्के में ही रहती हैं. इस्लामिक पहनावे की वजह से कई बार सोशल मीडिया पर बहस का विषय भी बनी हैं. बहरहाल, इमरान खान के साथ मुलाक़ात बुशरा बीबी की बहन ने कराई थी जो पहले से ही पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ में सक्रीय थीं. बुशरा वो बड़ा जरिया हैं जिसकी वजह से इमरान ने कट्टरपंथी तबके को आकर्षित किया.
कट्टरपंथ के मुलम्मे में अब भी देते हैं नए पाकिस्तान का नारा
इमरान नए पाकिस्तान का नारा अब भी देते हैं लेकिन बहुत चालाकी से उन्होंने इसपर इस्लामिक कट्टरपंथ का मुलम्मा चढ़ा लिया. वो जब भी आर्थिक तंगहाली, बेरोजगारी और भारत के आगे कमजोर नजर आते हैं- इसी मुलम्मे से अपना बचाव करते हैं. भारत की दो स्ट्राइक, कोरोना के बाद बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था, अमेरिका और यूरोपीय देशों के हाथ खींचने के बाद इमरान काफी मुश्किल में थे. ऐसे ही मुश्किल वक्त में फ्रांस में पैगंबर पर हुए विवाद को उन्होंने पाकिस्तान में मुद्दा बनाया. इस्लाम के बहाने सोशल मीडिया पर इमैनुअल मैक्रो पर तीखे हमले किए. इस मुद्दे पर दूसरे इस्लामिक देशों के साथ भी खुलकर खड़े हुए. लेकिन इसमें अकेले इमरान हे नहीं थे. टीएलपी और दूसरे भी कट्टरपंथ की राजनीतिक फसल पर राजनीति कर रहे थे.
मौलाना साद हुसैन रिजवी. फोटो- विकिपीडिया से साभार
गले की हड्डी बना पुराना वादा
इमरान को तब टीएलपी की उस मांग पर आश्वासन देना पड़ा जिसमें फ्रांस के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्तों के खात्मे की बात थी. उन्हें समयसीमा भी मिली. लेकिन इसी महीने अप्रैल में तय समयसीमा के नजदीक 27 साल का साद हुसैन रिजवी राजनीति कर सके ये बात इमरान को नागवार गुज़री. अचानक से रिजवी पर कार्रवाई हुई और सिर्फ चार साल में मजबूत राजनीतिक आधार बना लेने वाली पार्टी को बंधित कर दिया जिसका संस्थापक खुद को पाकिस्तान में पैगम्बर का चौकीदार बताता था. भला इमरान ने जिस धार्मिक आधार पर सत्ता हथियाई उसकी राजनीति दूसरे के लिए कैसे छोड़ सकते हैं?
मरियम नवाज और बिलावल से बिल्कुल अलग एक 27 साल का लड़का जो कुछ ही महीनों में सीधे इमरान के सामने है. इमरान की बौखलाहट से तो यही लगता है कि राजनीति में वो इकलौते जिहादी बने रहना चाहते हैं.
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