नए पाकिस्तान की आड़ में इमरान खान ने 'मुशर्रफ का पाकिस्तान' बना दिया
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक तरफ तो मुशर्रफ और नवाज़ शरीफ सरकारों को बुरा-भला कहकर सरकार बनाई अब उन्हीं मंत्रियों को अपनी कैबिनेट में रख लिया. इसे क्या इमरान खान की सोच माना जाए या फिर सेना का फैसला?
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पाकिस्तान में एक बड़ा बदलाव हुआ है. ये बदलाव है हुए हैं पाकिस्तानी कैबिनेट में. पाकिस्तान में नए मंत्रियों का स्वागत हुआ है या यूं कहें कि इमरान खान ने पुराने मंत्रियों को नई ब्रांडिंग के साथ मैदान में उतार दिया है. पाकिस्तान के मौजूदा पीएम जो नया पाकिस्तान बनाने का दावा करते थे, जो मुशर्रफ और नवाज़ शरीफ जैसे प्रधानमंत्रियों को हमेशा आड़े हाथों लेते रहे हैं वो अब धीरे-धीरे कर अपने कैबिनेट में उन्हीं पुराने मंत्रियों को वापस ला रहे हैं जिनपर कभी ये दोनों पूर्व पीएम भरोसा किया करते थे.
वैसे तो ये भी कहा जा सकता है कि इमरान खान सरकार में अब वापस से मुशर्रफ सरकार वाला राज आ रहा है क्योंकि लगभग सभी मंत्री उसी दौर के हैं. मुशर्रफ के मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल कर इमरान खान सरकार द्वारा जो नया पाकिस्तान बनाया जा रहा है वो ये संकेत दे रहा है जैसे पुराने दौर में सेना का राज पाकिस्तान में था वो दोबारा आ रहा है.
पाकिस्तान में इमरान खान ने पांच बदलाव किए हैं. इनमें चार पुराने मंत्रियों की अदला बदली और पांच नए कैंडिडेट पाकिस्तानी सत्ता का हिस्सा बने हैं. इसमें इन्फोर्मेशन मिनिस्टर चौधरी फवाद हुसैन को नया मंत्रालय दे दिया गया है और उनकी जगह ली है फिरदौस आशिक अवान ने जो पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) में थीं और मई 2017 में ही पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ) से जुड़ी हैं.
इसके अलावा, पीपीपी के ही डॉ. अब्दुल हाफिज शेख जो पहले 2010-2013 तक वित्त मंत्री रह चुके हैं उन्हें पीटीआई में भी फाइनेंस एडवाइजर बना दिया गया है. वो अब असद उमर की जगह लेंगे. इसके अलावा, जनरल परवेज मुशर्रफ के खास ब्रिगेडियर एजाज़ अहमद शाह को भी इंटीरियर मिनिस्टर (गृहमंत्री) बना दिया गया है.
क्योंकि पाकिस्तानी कैबिनेट में अब एक बार फिर से मुशर्रफ के समय के लोग आ गए हैं इसलिए ये शक जाता है कि शायद पाकिस्तान में एक बार फिर से सेना अपना पूरा हक जताना चाहती है.
जब 2018 में इमरान खान की कैबिनेट बनी थी तब भी मुशर्रफ सरकार के 12 खास लोग उसमें शामिल थे.
इमरान खान की जीत में सेना का कितना बड़ा हाथ था ये तो सभी जानते हैं. एक तरफ अपने सिलेब्रिटी स्टेटस और दूसरी तरफ सेना के साथ के कारण ही इमरान खान पीएम बन पाए हैं ऐसे में ये मुमकिन है कि पाकिस्तानी जनरल अपनी सत्ता वापस पाना चाहते हों. मुशर्रफ के दौर में पाकिस्तान में लगभग हर काम सेना की निगेरबानी में होता था.
मुशर्रफ की टीम के पास विदेशी सपोर्ट भी था और साथ ही साथ शुरुआत में सभी को ये लगता था कि पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा रही है, लेकिन असल में मुशर्रफ की टीम तो पाकिस्तान के उन्हीं आतंकवादियों की मदद से भारत के खिलाफ साजिश करती थी. अन्य सरकारें जो मुशर्रफ के बाद बनीं वो उस तरह का षड़यंत्र नहीं कर पाईं और इसीलिए शायद वो सफल भी न हो सकीं और पाकिस्तान से धीरे-धीरे विदेशी सपोर्ट भी चला गया.
सेना ने इमरान खान के सपोर्ट में काफी कुछ किया. पहले इमरान खान के बेहद उग्र चुनाव प्रचार का समर्थन किया फिर बिना किसी कानूनी कार्यवाई के नवाज़ शरीफ को गलत साबित कर दिया गया. कई बड़े नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे चले. उस समय मीडिया पर भी काफी लगाम थी ताकि इमरान खान की इमेज एक मसीहा के तौर पर बनाई जा सके और इसलिए जुलाई 2018 के चुनाव जीत सके.
You still believe that Imran khan forming the same half federal cabinet members of pervez musharaf is showing a high IQ level and evidence of bringing tabdeeli?And that Imran khan reshuffling the cabinet members into half of zardari cabinet members can form naya pakistan? pic.twitter.com/lAymsdtxb1
— Muhammad Muneeb (@Muhamma70765823) April 20, 2019
हालांकि, उस समय ये कहा जा रहा था कि ये सब करने का मकसद सिर्फ पाकिस्तान के युवाओं के लिए बदलाव लाना है. लेकिन असल मुद्दा तो अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है. इमरान खान की बातें तो किसी को भी लाजवाब करने के लिए काफी हैं. उनकी बातों के आगे ऐसा लगता है कि बस यही हैं जो कुछ कर सकते हैं, लेकिन इसके पीछे 8 महीने में उनकी सरकार क्या कर पाई है ये सबके सामने है. पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय सपोर्ट नहीं मिल पाया है और न ही पाकिस्तान की माली हालत सुधरी है. असद उमर जिन्हें पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का पोस्टर ब्वॉय कहा जा रहा था वो अब पाकिस्तानी कैबिनेट से बाहर हो चुके हैं.
मुशर्रफ सरकार की तरह क्या पाकिस्तानी करतूत छुपाएगी नई सरकार?
इमरान खान की सोच शायद एक वक्त मिलिट्री के साथ ही थी. उन्हें ऐसा लगा हो कि सेना की फॉरेन पॉलिसी दुनिया के सामने लाने से सेना और आम पाकिस्तानी सरकार एक साथ चल सकती है. पर अब मामला उलटता सा दिख रहा है. ऐसा लग रहा है कि अब सेना वापस पाकिस्तान को मुशर्रफ सरकार के दौर की तरह देखना चाहती है, सिर्फ अर्थव्यवस्था नहीं पूरा पाकिस्तान! तभी तो मुशर्रफ के पुराने भरोसेमंद वापस आ गए हैं. उस दौर में पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसी के सभी कारनामों को बड़े ही शातिर तरीके से छुपा लिया जाता था और ये काम कैबिनेट मिनिस्टरों की निगरानी में भी होता था.
खुद ब्रिगेडियर एजाज़ शाह को ही ले लीजिए. बेनजीर भुट्टो के कत्ल को लेकर हमेशा से एजाज़ शाह का नाम सामने आया है. खुद बेनजीर भुट्टो ने उनका नाम लिया था और कहा था कि अगर उनका कत्ल होता है तो उसकी साजिश में शाह का हाथ होगा. वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या के आरोपी अहमद ओमार सईद शेख को भी शाह ने अपने यहां पनाह दी थी. इतना ही नहीं ब्रिगेडियर शाह ने तो ओसामा बिन लादेन को भी पनाह दी थी! ISI के पूर्व डायरेक्टर जनरल जियाउद्दीन भट्ट ने कहा था कि ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तानी ब्रिगेडियर एजाज़ शाह ने ही अबटाबाद (पाकिस्तान) के एक घर में रखा था. हालांकि, बाद में जनरल भट्ट ने अपना बयान वापस ले लिया था. उस समय किस तरह से पुरानी करतूतों को छुपाया जाता था ये तो जगजाहिर है. खुद जनरल परवेज मुशर्रफ ने हाल ही में ये बयान दिया था कि उस समय जैश का इस्तेमाल इंटेलिजेंस एजेंसी करती थी ताकि भारत के खिलाफ प्लॉटिंग हो सके.
Gen Musharraf in his latest interview to Pakistani channel admits when he was #PakistanArmy chief, he didnt take concrete action against #JaisheMohammad as agencies under him said they were using such grps to carry out bombings in Indiaیہ جو دہشت گردی ہے#اس_کے_پیچھے_وردی_ہے pic.twitter.com/2m9IaSvmXU
— Taha Siddiqui (@TahaSSiddiqui) March 6, 2019
पाकिस्तानी जनरल शायद ये जानते हैं कि इस वक्त पाकिस्तान में अगर उन्हें वापस अपना राज कायम करना है तो फिर से एक बार अपने भरोसेमंद लोगों को आगे लाना होगा. परवेज मुशर्रफ के दौर में कभी भी पाकिस्तान ने Financial Action Task Force (FATF) के प्रतिबंधों को नहीं झेला है. ये तब था जब कई जिहादी आतंकी संगठन पाकिस्तान में काम करते थे. उस समय पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों की गुमशुदगी और उनके ऊपर हो रहे अत्याचारों की बात सभी को नहीं पता होती थी. न ही वैश्वीक चिंता जताई जाती थी.
इसलिए शायद पाकिस्तानी सेना का ये सोचना कि इमरान खान की कैबिनेट में भी मुशर्रफ सरकार के लोगों का होना जरूरी है ये इसी रणनीति का हिस्सा लगता है.
वर्ना सोचिए कि नदीम बाबर क्यों इमरान खान के खास पेट्रोलियम और नेचुरल रिसोर्स सलाहकार बनते? उन्हें मंत्री भी नहीं बनाया गया क्योंकि वो पार्लियामेंट का हिस्सा ही नहीं हैं और इमरान खान की कैबिनेट में ऐसे 16 सलाहकार मौजूद हैं. नदीम बाबर तो एक बिजनेसमैन हैं और उनका वहां होना कुछ साबित नहीं करता. यहां तक कि बाबर तो खुद विवादित हैं क्योंकि उनकी कंपनी ओरियंट पावर पाकिस्तानी की सुई गैस पाइपलाइन्स को 800 मिलियन पाकिस्तानी रुपए देने में नाकाम रही थी.
अब्दुल हाफिज़ शेख, फवाद चौधरी तो पहले ही मुशर्रफ और जरदारी सरकार का हिस्सा रह चुके हैं और ऐसे में उन्हें दोबारा मंत्रालय ही दिया गया. यहीं पर शहर्यार अफ्रीदी की नियुक्ति भी विवादित है. ये वही इंसान है जिन्हें हाफिज सईद के पक्ष में बयान देते फिल्माया गया था. उन्होंने कहा था कि सईद को कुछ नहीं होगा क्योंकि उनकी सरकार की ही तरह सईद भी पाकिस्तान के हित के लिए काम कर रहा है.
ये हाल है पाकिस्तान की नई कैबिनेट का और अब इतने सब कारणों को देखते हुए लग रहा है कि शायद पाकिस्तान में फिर से सेना राज आने वाला है. अगर ऐसा है तो भी भारत छोड़िए पाकिस्तान के किसी भी पड़ोसी देश के लिए अच्छी खबर नहीं है.
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