इमरान का न्योता आए न आए - देशभक्ति पर बहस का मौका कोई क्यों गंवाए?
इमरान खान के बुलावे की खबर बाउंसर की तरह आई और वाइड बॉल की तरह अपनेआप ही बाउंड्री से बाहर भी निकल गयी. फिर भी भारत में देशभक्ति और गद्दारी को लेकर बहस का एक दौर तो हो ही गया. चुनाव जो आने वाले हैं, है कि नहीं?
-
Total Shares
इमरान खान 11 अगस्त को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं. पाकिस्तान में जश्न-ए-आजादी की तारीख 14 अगस्त है, इसलिए उससे पहले ये जरूरी भी है.
पहले खबर आई थी कि इमरान खान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह भव्य आयोजन में शपथ लेना की तैयारी कर रहे हैं. औपचारिक घोषणा इसलिए नहीं हो पायी थी क्योंकि इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ को विदेश मंत्रालय से इस बाबत कोई जवाब नहीं मिला था. बहरहाल, अब साफ हो चुका है कि इमरान खान बेहद सादगी के साथ पाकिस्तान के राष्ट्रपति भवन में निहायत ही निजी दोस्तों की मौजूदगी में वजीर-ए-आजम की शपथ लेने वाले हैं. इसके साथ ही ये भी साफ हो गया है कि भारत से जिन हस्तियों के समारोह में शामिल होने की चर्चा थी वो अब खत्म हो जाएगी.
मजे की बात तो ये है कि न कोई पाकिस्तान आया न कोई गया, लेकिन भारत में देशभक्ति और गद्दारी को लेकर बहस का एक दौर तो हो ही गया. सवाल ये है कि क्या ऐसी बहस भी बीजेपी के ऑपरेशन राष्ट्रवाद का ही हिस्सा है?
'मैं तो जाऊंगा...'
इमरान की पार्टी के प्रवक्ता के हवाले से ही पाक मीडिया में न्योते की खबर आई. बताया गया कि आमिर खान, सुनील गावस्कर, कपिल देव, नवजोत सिंह सिद्धू को शपथ ग्रहण में बुलाया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर सस्पेंस तब तक बना हुआ था, जब तक कि खबर ये नहीं आई कि किसी भी विदेशी राजनेता को बुलाने का कोई कार्यक्रम नहीं है.
न्योते को लेकर सबसे पहले आगे आये नवजोत सिंह सिद्धू. क्रिकेटर रहे सिद्धू बीजेपी के सांसद भी रह चुके हैं. फिलहाल पंजाब की अमरिंदर सरकार में मंत्री हैं.
बेगानी शादी और...
इमरान के न्योते को लेकर सिद्धू ने अपने अंदाज में खुशी का इजहार किया, "ये मेरे लिए सम्मान की बात है... प्रतिभाशाली पुरुषों की प्रशंसा की जाती है... शक्तिशाली पुरुषों से लोग डरते हैं, लेकिन चरित्रवान पुरुषों पर लोग भरोसा करते हैं... खान साहब चरित्र वाले आदमी हैं... उन पर भरोसा किया जा सकता है...’’
खुले दिल से इमरान का न्योता स्वीकार करते हुए बोले, ‘‘मैं भारत की विदेशी नीति का सम्मान करता हूं, लेकिन इमरान ने व्यक्तिगत निमंत्रण दिया है... खिलाड़ी हमेशा पुल बनाता है... बंदिशों का तोड़ता है और लोगों को जोड़ता है...’’
सिद्धू ने इमरान के न्योते में भले ही राजनीति और कूटनीति से ज्यादा खेल भावना देखा हो, लेकिन उनके बयान के बाद राष्ट्रवाद पर बहस का दौर चल पड़ा. बहस का बीड़ा उठाया बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ने.
'जाने वाले गद्दार समझे जाएंगे'
सिद्धू ने जहां इमरान खान की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए ग्रीक गॉड तक बताया, बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यन स्वामी को इमरान खान मोहम्मद गोरी जैसे लगते हैं. स्वामी इस सिलसिले में लोगों को महाराणा प्रताप के साथ हुई घटना का हवाला दे रहे हैं. कहते हैं - 'महाराणा प्रताप ने मोहम्मद गोरी को मौका दिया था... सब जानते हैं क्या हुआ...'
अब अगर इमरान खान, मोहम्मद गोरी जैसे हैं तो उनके शपथग्रहण में जाने वाला क्या कहलाएगा? स्वामी ने इमरान के शपथ में शामिल होने वालों को सुब्रह्मण्यन स्वामी ने गद्दार करार दिया है. इतना ही नहीं, स्वामी के मुताबिक, जश्न-ए-ताजपोशी में शामिल होकर लौटने के बाद ऐसे लोगों को निगरानी के दायरे में लाकर उन पर राष्ट्रद्रोह का केस दर्ज होना चाहिये.
राष्ट्रवाद विमर्श का तो बस बहाना चाहिये...
लेकिन आमिर खान को इस बार स्वामी सलाम कर रहे हैं. ऐसी बात स्वामी ने तब कही जब उन्हें मालूम हुआ कि आमिर खान ने इमरान का न्योता कबूल नहीं किया है. लगता है आमिर खान ने पहले ही भांप लिया कि इमरान की ताजपोशी में जाने का क्या क्या अर्थ निकाला जाएगा?
याद कीजिए इन्हीं आमिर खान को स्वामी 2015 में पाकिस्तान जाने की सलाह दे रहे थे. ये तब की बात है जब आमिर खान ने अपनी पत्नी किरण राव के डर लगने वाली बात शेयर की थी. तब देश में असहिष्णुता पर बहस का दौर चल रहा था - और साहित्यतकार, कलाकार अपने अपने सरकारी सम्मान लौटा कर मोदी सरकार के प्रति अपने विरोध प्रकट कर रहे थे.
आमिर पर स्वामी का हृदय परिवर्तन
अगर स्वामी के बयान को गंभीरता से लिया जाये तो उसके पीछे क्या तर्क हो सकते हैं? अगर नहीं तो क्या स्वामी की बातें भी सीधे सीधे उसी टोकरी में रख दी जानी चाहिये जहां साक्षी महाराज से लेकर साध्वी प्राची और साध्वी निरंजन ज्योति की बातें धूल फांक रही हैं. हो सकता है चुनाव आते आते वे फिर से प्रासंगिक हो जायें - और चुनाव बाद प्रधानमंत्री मोदी ऐसे नेताओं को 'मुंह के लाल' बता खरी खोटी सुनाते नजर आयें.
2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने शपथग्रहण समारोह में सार्क नेताओं को न्योता दिया तो पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ शामिल हुए थे. बाद में 25 दिसंबर 2015 को अफगानिस्तान से लौटते वक्त प्रधानमंत्री मोदी ने लाहौर पहुंच कर नवाज शरीफ को जन्मदिन की बधाई भी दी थी. कई और मौकों पर भी मोदी और शरीफ को विदेशी जमीन पर एकांत में गूफ्तगू करते देखा गया.
ये सही है कि इतने सब के बावजूद भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तरह की बातचीत नहीं हो पायी. पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ न हरकतें बंद हुईं न उसके स्टैंड में कोई बदलाव आया. इमरान खान ने भी तो राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर में मानव अधिकारों के उल्लंघन का मामला उठाया ही. हालांकि, ये भी कहा कि भारत अगर दोस्ती का एक कदम बढ़ाएगा तो पाकिस्तान दो कदम आगे मिलेगा. खैर, फेकने में क्या जाता है? वैसे भी इमरान खान तो फास्ट बॉलर ही रहे हैं. सियासत में भी तो क्रिकेट का कुछ न कुछ असर होता ही है.
वैसे इमरान खान से स्वामी के विरोध की क्या वजह हो सकती है? सिर्फ ये कि इमरान खान पाकिस्तानी हैं? या इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं? या इमरान खान फौज और आईएसआई की मदद से पाकिस्तान की कमान संभालने जा रहे हैं?
यूरोपियन यूनियन के कई सदस्यों ने पाकिस्तान के चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष मानने से इंकार किया था. एक दिलचस्प बात ये भी रही कि पर्यवेक्षकों में भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी शामिल थे और उनकी नजर में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं देखने को मिली. एनडीटीवी से बातचीत में कुरैशी का कहना रहा, "मेरी नजर में ये पूरी तरह स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव रहा..."
कहीं सुब्रह्मण्यन स्वामी पाकिस्तान चुनाव में हुई धांधली की खबरों से ज्यादा खफा तो नहीं हैं? सबसे बड़ा सवाल ये 2019 के लिए बीजेपी के 'ऑपरेशन राष्ट्रवाद' का ये भी हिस्सा तो नहीं है?
इन्हें भी पढ़ें :
महबूबा का इमरान पर उतावलेपन वाला ऐतबार
इमरान खान की इस बात से भारत को क्यों सतर्क रहने की ज़रूरत है
पड़ोसियों से अच्छे ताल्लुकात की बात से बेमेल इमरान खान का राग कश्मीर!
आपकी राय