पश्चिम यूपी में मुस्लिम-जाट वोटों से तो बड़े फैक्टर अजित सिंह ही लग रहे हैं
समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार होने के बाद राहुल गांधी ने जो भी उम्मीदें पाल रखी हों, अजित सिंह तो बड़े उलटफेर की कोशिश में हैं.
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जो हाल देश में कांग्रेस का है, यूपी में तकरीबन वैसी स्थिति अजीत सिंह की आरएलडी की हो चुकी है. राहुल गांधी पूरे यूपी में, तो अजीत सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार होने के बाद राहुल गांधी ने जो भी उम्मीदें पाल रखी हों, अजीत सिंह तो बड़े उलटफेर की कोशिश में हैं.
11 फरवरी को विधानसभा चुनावों की शुरुआत पश्चिम यूपी से ही हो रही है. दूसरे दौर का मतदान 15 फरवरी को होना है.
2012
पहले फेज में पश्चिम यूपी के 15 जिलों की 73 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाने हैं. पश्चिम यूपी को सूबे में सत्ता की मंजिल को सीधे जाने वाले मेन रोड के तौर पर भी देखा जा सकता है जहां मुस्लिम और जाट वोटों का दबदबा रहता है - और वे हर हवा का रुख बदलने का माद्दा रखते हैं. समाजवादी पार्टी की मुश्किल ये रही कि जब चुनाव में जुटने की सोच रही होगी कि अंदर ही झगड़ा शुरू हो गया. मायावती ने तो बहुत पहले ही अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिये थे. तैयारी तो उससे भी पहले होने लगी थी और ये जिम्मेदारी मायावती ने सौंपी थी अपने बड़े भरोसेमंद नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर.
"अपना वोट बर्बाद मत करना..."
वैसे भी जब 2012 में अखिलेश यादव ने मायावती को सबसे बड़ा झटका दिया तो यही इलाका था जहां बीएसपी ने बराबरी की टक्कर दी थी. इस इलाके से समाजवादी पार्टी को 24 तो बीएसपी को 23 सीटें मिली थीं. उसके बाद बीजेपी को 13, आरएलडी को 9 और कांग्रेस के खाते में 5 सीटें आई थीं. पश्चिम यूपी में इस बार सबसे ज्यादा जोर तो मायावती ने लगाया है, लेकिन जातीय समीकरणों में फिट बैठने के कारण अजीत सिंह का असर ज्यादा देखा जा रहा है.
2017
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन होने से पहले तो मुस्लिम वोटों पर मायावती ही पूरा दावा जताती रहीं, लेकिन अब बंटवारा होना तय है. ये बीजेपी के लिए खुश होने की सबसे बड़ी वजह हो सकता है, लेकिन उसकी खुशियां ज्यादा देर तक कायम नहीं रहने वाली क्योंकि मैदान में अजीत सिंह भी डटे हुए हैं.
अस्तित्व की लड़ाई...
ये बात बीजेपी को भी अच्छे से मालूम है और यही वजह है कि मेरठ से लेकर अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अखिलेश-राहुल और मायावती को तो खूब खरी खोटी सुनाई - यहां तक कि स्कैम का हिस्सा और विकास में बाधा तक बता डाला लेकिन अजीत सिंह का नाम तक न लिया. अजीत सिंह अगर कहीं प्रसंग का हिस्सा बने तो चौधरी चरण सिंह के नाम पर प्रस्तावित किसान केंद्रों के रूप में.
पहले स्कैम का मतलब समझो...
असल में, बीजेपी किसी भी सूरत में जाटों को नाराज नहीं करना चाहती क्योंकि वे तो पहले से ही खफा हैं. चाहे वो बात जाट आरक्षण की हो या हरियाणा में जाट आंदोलन में बीजेपी सरकार की भूमिका को लेकर या फिर अजीत सिंह का घर खाली कराने को लेकर - ऐसे तमाम कारण हैं जिनके चलते बीजेपी को जाटों की नाराजगी और अजीत सिंह को भरपूर सहानुभूति मिल रही है.
इस लिहाज से देखें तो अजीत सिंह बीजेपी के लिए मेरठ, बागपत, शामली और मुजफ्फरनगर जैसे इलाकों में बड़ा सिरदर्द दे सकते हैं. तकरीबन यही हाल गाजियाबाद और हापुड़ से लेकर बुलंदशहर और मथुरा तक महसूस किया जा रहा है.
अजीत सिंह के इस रोल का सबसे ज्यादा फायदा समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को मिल सकता है. ऐसा नहीं है कि जाट वोट बीजेपी से छटक कर समाजवादी गठबंधन को मिल जाएगा, लेकिन इतना तो समझा जा सकता है कि अजीत सिंह बीजेपी के लिए मुख्य वोटकटवा साबित हो सकते हैं, अगर वो सीटें नहीं जीत पायें तब की स्थिति में भी.
क्या अजित ही गठबंधन के पेंच थे?
तो क्या अखिलेश यादव के अजीत सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन न करने की खास वजह यही थी? पहले तो ऐसी ही चर्चा थी कि समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की स्थिति में कांग्रेस के साथ अजीत सिंह की पार्टी भी शामिल होगी. क्या गठबंधन में एक पेंच ये भी नहीं था?
एक बात तो साफ थी कि जाट और मुस्लिम वोट एक साथ किसी पार्टी को नहीं मिलने वाले. तब अखिलेश के सामने मुस्लिम और जाट वोटों में से किसी एक को चुनने को लेकर फैसला करने की बात आयी होगी. साफ है अखिलेश ने मुस्लिम वोटों के लिए अखिलेश यादव ने अजीत सिंह को ना कह दिया. फिर तो अखिलेश को ये सबतू देने की भी जरूरत नहीं है कि वो मुस्लिम विरोधी नहीं है. किसी और ने नहीं बल्कि मुलायम सिंह ने ही अखिलेश को कहा था कि उन्हें उनके मुस्लिम विरोधी होने का पता चला है.
जाटलैंड के नाम से जाने जाने वाले इस इलाके में उम्मीदवार तय करते वक्त सभी पार्टियों ने जातिगत और धार्मिक समीकरणों का खूब ख्याल रखा है. ऐसा नहीं है कि मायावती ने हर जगह मुस्लिम उम्मीदवार ही उतार दिये हैं, बीएसपी ने जाट बहुल इलाकों में उन्हें ही टिकट दिया है. समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी भी उसी फॉर्मूले पर चले हैं, बस बीजेपी का टिकट किसी मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं दिया है. कई इलाकों में तो समाजवादी गठबंधन और बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवार आमने सामने एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं.
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