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Updated: 29 नवम्बर, 2017 09:29 PM
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हाफिज़ सईद के प्रति प्यार को लेकर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ का इक़रारनामा, हिंदुस्तान में बैठे अमन की आशा के परिंदों के लिए एक तगड़ा झटका है. बेशक बहुत से लोगों को ये लगेगा की पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक हालात में परवेज़ मुशर्रफ ये सब बातें अपनी पोज़ीशनिंग के लिए कह रहे हैं. जहां सुप्रीम कोर्ट सरकार से पूरी तरह निराश है. और सेना के साथ भी सींग अड़ाए बैठा है. लेकिन मुशर्रफ के इस इकरारनामे में हिंदुस्तान के लिए संदेश साफ़ है. और वो है - लातों के भूत बातों से नहीं मानते.

मुशर्रफ़ के बारे में ये कहने वालों की भारत में कमी नहीं है कि उनके शासन काल में भारत और पाकिस्तान के संबंध सबसे मधुर रहे. लेकिन हाफिज़ सईद को लेकर मुशर्रफ़ का इकरारनामा एक बार फिर साबित करता है कि पड़ोसी मुल्क का कोई भी नेता - भारत के भरोसे के लायक नहीं है. मुशर्रफ इस बात को पहले भी साबित कर चुके हैं. उनके लिए हमेशा से पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति में अपनी जगह अहम रही है, न कि भारत से पाकिस्तान के रिश्ते या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत-पाकिस्तान रिश्तों का असर. मुशर्रफ का इसके पहले का कुबूलनामा कारगिल की लड़ाई को ले कर रहा है. जिसके बारे में उन्होंने साफ़ कहा था कि वो इसे भारत के खिलाफ़ वैसे ही इस्तेमाल करना चाहते थे जैसे हालात में बांग्लादेश बना था.

पाकिस्तान का हाफिज़ सईद को नज़रबंदी के नाम पर सेफ़ हाउस देना. फिर नज़रबंदी से भी रिहा कर देना. हाफिज़ सईद का राजनीति पार्टी बनाने का ऐलान करना. अपने माथे लगे आतंकवादी के ठप्पे को हटवाने के लिए यूएन का दरवाज़ा खटखटाना और फिर मुशर्रफ़ का हाफिज़ के पक्ष में माहौल बनाना- ये सब बातें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं. पाकिस्तान के अंदर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक के बाद एक भारत को मिल रही कूटनीतिक जीत की वजह से चिंता है. चाहे वो कुलभूषण जाधव के मामले में हो या फिर हाफिज़ के सिर पर अमेरिका के ईनाम रख देने के मामले में. पाकिस्तान की इसी बेचैनी का फायदा परवेज़ मुशर्रफ़ उठाना चाहते हैं.

Parvez Musharraf, hafiz saeedमुशरर्फ ने पासा फेंक दिया मुशर्रफ पाकिस्तान के इकलौते ऐसे शासनाध्यक्ष रहे हैं, जिसने खुल कर, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को खाद-पानी देने के लिए भारत, और खासकर कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने की बात कुबूल की है. हाफिज़ सईद को लेकर मुशर्रफ़ ने फरवरी में भी एक इंटरव्यू में कहा था कि कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए उन्होंने जमात-उद-दावा और बाकी आतंकवादी संगठनों का भरपूर इस्तेमाल किया था. तब भी मुशर्रफ ने हफिज़ सईद को आतंकवादी नहीं, हीरो माना था.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुशर्रफ़ बार बार ऐसी बातें पाकिस्तान की सियासत में अपनी पारी की संभावनाएं तलाशने के लिए करते हैं. लेकिन उनकी इन्हीं बातों में भारत को भविष्य के कूटनीतिक सबक देखने चाहिए. पाकिस्तान इस बात से परेशान है कि उसके बार बार कहने के बावजूद- भारत बातचीत की मेज़ पर आने को तैयार नहीं हो रहा. मुशर्रफ़ के इस इकरारनामे के बाद - पाकिस्तान की मौजूदा सरकार फिर ये जताने की कोशिश करेगी कि मुशर्रफ़ की बातें गंभीरता से न ली जाएं. भारत को ऐसे हालात में - पहले की ही तरह दो टूक रहना चाहिए. गोली और बोली साथ साथ नहीं.

मुशर्रफ़ की बातों के बाद बने माहौल का फायदा भारत को भी उठाना चाहिए. बलूचिस्तान को लेकर भारत का जो रवैया अचानक ढीला पड़ता दिखने लगा है, उसमें तेज़ी लाने की ज़रूरत है. एजेंसियों के स्तर पर भी और कूटनीतिक स्तर पर भी. अमेरिका के साथ भारत की मौजूदा नज़दीकियां, केवल सेल्फी, ट्विटर तक सीमित न रह कर भारत-पाकिस्तान-चीन के त्रिकोण पर भी असर डालें, इसी में भारत की कामयाबी है.

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लेखक

रोहित सरदाना रोहित सरदाना @rohitsardanaofficialpage

लेखक आजतक चैनल में संपादक हैं और सामाजिक- राजनैतिक मुद्दों पर पैने विचार रखते हैं

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