OBOR : चीन के एक सपने में भारत का अड़ंगा !
भारत चीन के इस मिशन में एकमात्र रोड़ा है. भारत ने जो फैसला लिया है उससे आने वाले समय में परिणाम कुछ बदल सकते हैं. कैसे.. चलिए देखते हैं.
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चीन दुनिया में अपनी आर्थिक बादशाहत को कायम करना चाहता है! कुछ-कुछ उसी तरह जिस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी ने दुनिया के कई देशों पर व्यापर के बहाने कब्ज़ा कर लिया था. लेकिन फ्रांस ने दूसरी तरफ अलग रहकर अपना ही एक रुतबा बनाया था. चीन के वन बेल्ट, वन रोड में भी यही दिख रहा है. उसकी इस बादशाहत को लगभग सफलता भी मिलती दिख रही है. या यू कहें कि चीन दुनिया के सिर पर चढ़कर अपना आर्थिक लोहा दुनिया को मनवाना चाहता है. चीनी राष्ट्रपति शी जिंपिंग ने 'वन बेल्ट, वन रोड' के लिए करीब 124 बिलियन डॉलर का निवेश करने का आश्वासन दिया है. 55 अरब डॉलर से बनने वाले इस सिल्क रूट से तकरबीन 65 देश सीधे चीन से जुड़ जाएंगे.
लेकिन भारत इस मिशन का एक मात्र रोड़ा है. भारत ने जो फैसला लिया है वह सोच समझ कर ही लिया है. भारत दुनिया की सबसे बड़ी उभरती महाशक्ति है. भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है. इसी को मद्देनजर रखते हुए भारत ने यह फैसला लिया है.
भारत और चीन के व्यापारिक रिश्ते में इस फैसले से असर पड़ेगा
वन बेल्ट वन रोड परियोजना का एक बड़ा हिस्सा चीन-पाकिस्तान क़े प्रस्तावित आर्थिक गलियारा जो की पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से गुजरता है. इसी पर भारत की शुरू से ही विरोध रहा है. भारत का कहना है कि चीन ने इस गलियारे के लिए भारत से इजाजत नहीं ली, जो कि भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है. परियोजना में नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान शामिल हैं. 'वन बेल्ट वन रोड' को लेकर एक तरफ पेइचिंग में शिखर बैठक चल रही है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के निर्माण के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर गए हैं. गिलगित-बाल्टिस्तान में सैकड़ों प्रदर्शनकारी निर्माण का विरोध कर रहे हैं. सुरक्षा इस मिशन का मुख्य मुद्दा हो सकता है.
'वन बेल्ट वन रोड' (OBOR) से नेपाल का जुड़ना कहीं न कहीं भारत के लिए एक प्रश्न खड़ा करता है. नेपाल क़े 'वन बेल्ट वन रोड' प्रोजेक्ट में शामिल होने क़े बाद भारत दक्षिण एशिया का अकेला देश रह गया है जो 'वन बेल्ट वन रोड' का पार्ट नहीं है. चीन ने धमकी भी दी है कि अगर भारत इस योजना में शामिल नहीं हुआ तो उसे भविष्य में दक्षिण एशिया में अलग-थलग कर दिया जाएगा. चीन के प्रोजेक्ट 'वन बेल्ट वन रोड' में शामिल न होने वाला भूटान दूसरा देश है. वैसे भी भूटान के चीन से किसी भी प्रकार के राजनायिक रिश्ते नहीं हैं.
भारत तथा चीन का व्यापार जो 1991 में 265 मिलियन डॉलर था आज बढ़कर 70.73 बिलियन डॉलर हो चुका है, चीन का भारत को नज़रअंदाज़ करना उसके लिए खतरे की घंटी भी हो सकती है. जिसका उदाहरण चीन पिछले साल दीपावली पर देख चुका है. तो क्या चीन ने भारत की ओर से मिलते इन संकेतो के मद्देनजर ही इस वन बेल्ट, वन रोड के नए प्लान को अमली जामा पहनाया है?
भारत ने चीन को वन बेल्ट, वन रोड में शामिल न होकर चीन को साफ़ शब्दों में संकेत दे दिया है कि अगर चीन पाकिस्तान को भारत से ऊपर का दर्जा देगा तो भारत उसकी किसी भी योजना में शामिल नहीं होगा. वह चाहें आतंकवाद को लेकर हो या आर्थिक हितों को लेकर हो. एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती हैं.
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