आदित्य ठाकरे के CM बनने की तैयारी के साथ आई रुकावट
आदित्य ठाकरे के चुनाव लड़ने को लेकर सस्पेंस तो खत्म हो गया लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर क्या इरादा है - जवाब गोलमोल ही मिल रहा है. फिर भी माना जा रहा है कि शिवसेना की नजर CM की कुर्सी पर है - लेकिन तैयारी कितनी है?
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ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी कुछ नया करने वाली है. हालांकि, अभी तक यही बताया गया है कि आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र की वर्ली सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं. 2019 के लोक सभा चुनाव के पहले से ही माना जा रहा है कि शिवसेना नेतृत्व आदित्य ठाकरे के लिए CM की कुर्सी की तरफ कुछ दृढ़ निश्चय के साथ देख रहा है. आम चुनाव में तो बीजेपी औ शिवसेना ने मिल कर विपक्षी गठबंधन कांग्रेस-एनसीपी को ठीक से खड़ा भी नहीं होने दिया. जैसे तैसे विपक्ष को 7 सीटें मिल पायीं जिसमें 4 तो शरद पवार की पार्टी एनसीपी की ही रहीं.
आदित्य ठाकरे भी उसी राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं जिससे राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे युवा नेता बने हैं. आदित्य ठाकरे अभी राजनीति के मैदान में कदम रखने जा रहे हैं. उससे पहले वो जगह जगह घूम कर युवाओं से कनेक्ट होने की कोशिश कर रहे हैं. महाराष्ट्र के नौजवानों से जुड़ने के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया गया है - 'आदित्य संवाद'. राहुल गांधी के लिए सैम पित्रौदा ने विदेशों में ऐसे कई कार्यक्रम आयोजित कराये. वैसे देश में राहुल गांधी छात्रों से संवाद का सबसे चर्चित कार्यक्रम रहा चेन्नई के स्टेला मेरिस कॉलेज में, जहां राहुल गांधी ने होठों पर मुस्कान लिये कहा था - 'नाम तो सुना ही होगा!'
ओपनिंग के लिए कितने तैयार हैं आदित्य ठाकरे?
महाराष्ट्र में बाकी जगहों की तरह यवतमाल में भी 'आदित्य संवाद' कार्यक्रम हुआ. यवतमाल वो इलाका है जहां से किसानों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले आते हैं. 2005 से लेकर 2018 तक यवतमाल में 12,021 किसानों की आत्महत्या के मामले दर्ज हुए.
25 अगस्त को आयोजित इस कार्यक्रम में उसी जोश के साथ स्टेज पर जमे रहे जैसे बाकी कार्यक्रमों में. बताते रहे कि इम्तिहान और सेमेस्टर सिस्टम में सुधार के साथ कैसे शिक्षा संस्थानों में मजबूद ढांचा खड़ा करना जरूरी है.
संवाद चलता रहा, छात्र अपने अपने हिसाब से सवाल पूछते रहे और जवाब भी मिलते रहे. तालियां भी बजती रहीं - लेकिन तभी एक छात्र ने राजनीतिक सवाल पूछ कर पूरे कार्यक्रम की दशा और दिशा ही बदल दी.
यवतमाल के राहुल पाटिल के सवाल पर ऑडिएंस में खूब ताली बजती रही. आदित्य ठाकरे सवाल बड़े गौर से सुन रहे थे. फिर जवाब की बारी आयी और ऐसा लगा जैसे आदित्य ठाकरे छात्रों की महफिल में ऐसे सवालों के बारे में सोच कर नहीं आये थे.
राहुल पाटिल का सवाल पूरा होती ही आदित्य ठाकरे का सवाल रहा - किस पार्टी से हो?
जब यवतमाल में आदित्य ठाकरे से छात्र ने पूछा किसानों की आत्महत्या पर सवाल!
राहुल पाटिल ने बताया कि वो अभी तक किसी भी पार्टी से नहीं जुड़े हैं - कुछ ऐसे भी कि अभी तक ऐसा इरादा नहीं किया. शायद इसलिए भी कि कोई अब तक ऐसा मिला नहीं.
राहुल पाटिल की भूमिका तो लंबी रही, लेकिन सवाल सीधा और छोटा था - शिवसेना ने देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याओं के लिए सरकार से समर्थन वापस क्यों नहीं लिया?
आदित्य ठाकरे ने बताना शुरू किया कि महाराष्ट्र सरकार कैसे किसानों के लिए अच्छे काम कर रही है. ये भी समझाने की भरपूर कोशिश की कि सरकार ने बीज बांटने से लेकर किसानों के लिए चारा और खाद के इंतजामों के साथ साथ किसानों के लिए तालाब भी बनवाया है.
ऐसा लगा आदित्य ठाकरे इस सवाल के लिए पहले से तैयार न थे. अपनी तरफ से आदित्य ठाकरे ने राहुल पाटिल को समझाने की पूरी कोशिश की लेकिन छात्रों का रिस्पॉन्स उतना उत्साहवर्धक नहीं रहा.
आदित्य ठाकरे CM भी बनना चाहेंगे!
आदित्य ठाकरे अगस्त के शुरू में 'आशीर्वाद यात्रा' यात्रा पर निकले थे. जगह जगह घूमे भी और लोगों से मिले भी. फिर शिवसेना की ओर से एक और कार्यक्रम शुरू किया गया - आदित्य संवाद'. दोनों ही कार्यक्रमों का मकसद 'जय महाराष्ट्र' के जरिये मराठी मानुष खासकर नौजवानों से कनेक्ट होना रहा. आदित्य ठाकरे शिवसेना के यूथ विंग युवा सेना के प्रमुख हैं.
जैसे जैसे आदित्य ठाकरे की सक्रियता बढ़ती गयी सवाल उठने लगा कि क्या ठाकरे परिवार राजनीति कुछ नया करने जा रहा है? आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं. शिवसेना शुरू करने वाले बाला साहब ठाकरे ने बेटे उद्धव ठाकरे को वारिस बनाया तो भतीजे राज ठाकरे ने अलग पार्टी बना ली - महाराष्ट्र नव निर्माण सेना. राज ठाकरे ने सीनियर ठाकरे स्टाइल में राजनीति शुरू की, लेकिन कार्यकर्ताओं की गुंडा छवि से इतर अपनी भी कोई अलग छाप नहीं छोड़ पाये.
ऐसा पहली बार हो रहा है कि ठाकरे परिवार के किसी सदस्य ने मातोश्री से बाहर राजनीति में औपचारिक कदम बढ़ाने जा रहा है. 'आशीर्वाद यात्रा' के दौरान आदित्य ठाकरे से जब मुख्यमंत्री बनने को लेकर सवाल पूछा गया तो जवाब रहा - 'ये यात्रा उन लोगों का शुक्रिया करने के लिए है जिन्होंने हमें प्यार दिया है. लोग हमें आशीर्वाद देने के लिए सड़कों पर चल कर आ रहे हैं. चुनाव में अभी तीन महीने हैं - ये सब जब होगा तब होगा.' मिलता-जुलता लेकिन उससे जुड़ा एक और सवाल पूछा गया - क्या आप चुनाव लड़ेंगे?
जवाब इस सवाल का भी गोलमोल ही रहा - 'अगर लोग ये चाहते हैं तो मैं तैयार हूं.'
बहरहाल, अब तो आदित्य ठाकरे के चुनाव लड़ने के साथ ही उनकी सीट की भी घोषणा हो चुकी है. शिवसेना के वरिष्ठ नेता अनिल परब ने बंद कमरे में चली एक विशेष बैठक के बाद ऐलान किया कि आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र की वर्ली सीट से चुनाव लड़ेंगे. अब तो पहले पूछे गये सवाल का जवाब भी इसी एक्ट से खोजा जाना चाहिये. आदित्य ठाकरे इसीलिए चुनाव लड़ रहे हैं क्योंकि लोग चाह रहे हैं. फिर तो ये भी मान कर चलना होगा कि जनभावनाओं को देखते हुए आदित्य ठाकरे चुनाव मैदान में उतर रहे हैं तो उसी थ्योरी से मुख्यमंत्री पद के भी दावेदार होंगे.
सवाल ये है कि क्या ये बीजेपी को मंजूर होगा? बीजेपी ने पहले ही साफ कर रखा है कि मुख्यमंत्री तो उसी की पार्टी का होगा. पांच साल से देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र की बीजेपी-शिवसेना सरकार के मुख्यमंत्री हैं और आदित्य ठाकरे के इरादे बीजेपी को चैलेंज देने वाले लगते हैं.
ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेता के 'जन आशीर्वाद' यात्रा के मुकाबले देवेंद्र फडणवीस भी 'महा जनादेश' यात्रा पर निकले. बीजेपी और शिवसेना में साथ चुनाव लड़ने पर तो सहमति है, लेकिन पहला रोड़ा सीटों का बंटवारा होगा और दूसरा - अगर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवसेना भी कोई दावा करती है. या फिर बिहार और कर्नाटक की तरह डिप्टी सीएम के फॉर्मूले पर कोई सहमति बन जाती है तो बात और है.
अगर नजर CM की कुर्सी पर है तो खुल कर बोलना होगा
संभव है बीजेपी के साथ गठबंधन आड़े आ रहा हो या कुछ और, आदित्य ठाकरे अभी तक खुल कर कुछ भी नहीं कह रहे हैं. ऐसी विनम्रता सुनने में तो अच्छी लगती है जब कोई नेता सेवा भाव और पद को लेकर किसी तरह का लालच नहीं होने की बात करता है - लेकिन ऐसी बातें किसी के भी गले नहीं उतरतीं. आदित्य ठाकरे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे को आदर्श बता रहे हैं. कहते हैं, दोनों नेताओं की तरह वो भी पद के पीछे नहीं भागते. अगर ऐसी बात है तो बाल ठाकरे ने तो कभी चुनाव लड़ने और मुख्यमंत्री बनने में यकीन ही नहीं किया - क्योंकि शिवसेना में उनका कद सीएम की कुर्सी से भी ऊपर माना जाता रहा.
अभी तक तो आदित्य ठाकरे का सीएम की पोस्ट को लेकर कहना यही है कि 'पद के पीछे ना भागा जाए, जनता आशीर्वाद देगी तो सब कुछ संभव है.' बाल ठाकरे ही क्यों आदित्य ठाकरे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह भी व्यवहार नहीं कर रहे हैं. किताबी बातों से राजनीति होती कब है.
2014 और 2019 के चुनावों में भी मोदी लोगों से यही कहा करते थे - 'भाइयों और बहनों मेरी ओर देखिये. मुझे वोट दीजिये.' लोगों को अब यही कॉन्फिडेंस भाने लगा है. विधानसभा की चुनावी रैलियों में भी मोदी के कहने का मतलब यही रहता है - 'मोदी को वोट मिलेगा तो केंद्र और राज्य की सरकारें मिल कर विकास करेंगी.'
स्पष्ट जनादेश भी तभी मिलता है जब इरादे भी साफ हों - ये बार बार साबित हुआ है और जीते हुए नेताओं का बेहद कारगर नुस्खा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने तो ऐसा करके दोबारा सत्ता हासिल कर ली. ऐसा करके मोदी ने अपने सांसदों के खिलाफ अगर लोगों का कोई गुस्सा रहा तो अपने नाम पर वोट मांग कर बीजेपी उम्मीदवारों को सांसद बना दिया.
जब तक आदित्य ठाकरे ऐसा ठोस इरादा नहीं दिखाएंगे. लोगों को भरोसा नहीं दिलाएंगे. अपने वोटर को ये नहीं समझाएंगे कि उनके सीएम बनने से महाराष्ट्र में क्या बदलाव आएगा, तब तक लोग आदित्य ठाकरे को बाल ठाकरे का पोता समझ कर देखने आते रहेंगे - लेकिन सीएम का चेहरा नहीं मानेंगे. हां, वर्ली से बतौर शिवसेना उम्मीदवार चुनाव जीतने पर अभी तो कोई शक शुबहा नहीं है. 1990 से 2014 तक ये सीट शिवसेना के पास ही रही है, सिर्फ 2009 को छोड़ कर जब पांच साल के लिए इस पर NCP का कब्जा रहा.
डिप्टी सीएम की कुर्सी पर तो नहीं लगता कि बीजेपी को कोई दिक्कत होनी चाहिये - क्योंकि कोई नाराज न हो इसे लेकर कर्नाटक में हाल ही में तीन तीन डिप्टी सीएम बनाये गये हैं - लेकिन शिवसेना अगर आदित्य ठाकरे को सीएम की कुर्सी पर बिठाना चाहती है तो उसे हर हाल में बीजेपी से ज्यादा सीटें लेकर आना होगा. आदित्य ठाकरे को भी लोगों के बीच ये बात समझानी होगी कि जरूरी नहीं कि चुनाव बाद शिवसेना बीजेपी की हर बात माने ही, खासकर मुख्यमंत्री पद को लेकर. वैसे शिवसेना तो पहले से ही ऐसा करती आयी है - चुनावों से पहले बीजेपी नेतृत्व पर उद्धव ठाकरे खूब हमले करते हैं - और जब एक बार अमित शाह मातोश्री जाकर बंद कमरे में थोड़ी देर बैठ जाते हैं तो निकलते ही सब के सब 'मोदी-मोदी' करने लगते हैं.
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