योगी आदित्यनाथ या उद्धव ठाकरे, अयोध्या की रेस में कौन जीतेगा?
विचारधारा के स्तर पर बीजेपी और शिवसेना एक ही तरीके की राजनीति करते हैं. अयोध्या मुद्दा दोनों के लिए बराबर महत्वपूर्ण है - जिसे फिलहाल शिवसेना लपकना चाहती है और बीजेपी हाथ से नहीं जाने देना चाहती.
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शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के अयोध्या पहुंचने के पहले ही योगी आदित्यनाथ ने पूरे तामझाम के साथ माहौल बना दिया है. कर्नाटक से 35 लाख में खरीदी गयी भगवान राम की काष्ठ प्रतिमा के उद्घाटन के बहाने योगी आदित्यनाथ जताना चाहते हैं कि 'सबका विश्वास' पाने की बात तो ठीक है, लेकिन कोई ये न समझे कि बीजेपी को अब अयोध्या मसले में खास दिलचस्पी नहीं रह गयी है.
सवाल उठता है कि क्या उद्धव ठाकरे से पहले योगी आदित्यनाथ का अयोध्या दौरा कोई नया संदेश देने की कोशिश कर रहा है? क्या ये शिवसेना के मंदिर मुद्दा लपकने की कोशिश के खिलाफ बीजेपी का कोई वैक्सीनेशन प्रोग्राम है?
उद्धव को तो योगी ही रोक सकते हैं
अक्सर देखा गया है कि उद्धव ठाकरे चुनाव नतीजों के बाद एकवीरा देवी के दर्शन के लिए जाते हैं, लेकिन इस बार शिवसेना प्रमुख ने अयोध्या का प्लान बनाया है. उद्धव ठाकरे के इस दौरे को बीजेपी के लिए एक राजनीतिक संदेश के तौर पर भी देखा जा रहा है. इस बार उद्धव ठाकरे लोक सभा चुनाव 2019 में जीत कर आये शिवसेना के 18 सांसदों के साथ पहुंच रहे हैं.
शिवसेना प्रमुख ने अयोध्या जाने का कार्यक्रम संसद सत्र शुरू होने से पहले का रखा है. संसद का सत्र 17 जून से शुरू हो रहा है. खास बात ये है कि उद्धव ठाकरे इस बार अकेले नहीं बल्कि पार्टी के सभी सांसदों के साथ जाने वाले हैं. पिछले साल 25 नवंबर 2018 को भी उद्धव ठाकरे अयोध्या भी गये थे. शिवसेना की ओर से उद्धव ठाकरे के दौरे को गैर राजनीतिक बताने की कोशिश हुई लेकिन जो कुछ देखने को मिला वो बिलकुल अलग रहा. तब उद्धव ठाकरे के अयोध्या दौरे में योगी आदित्यनाथ ने भी विशेष रुचि दिखायी थी.
उद्धव से करीब 10 दिन पहले का प्रोग्राम यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी बना लिया है. जाहिर है ये सब यूं ही तो हुआ नहीं होगा!
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ अयोध्या के रेग्युलर विजिटर बन गये हैं - अपनी दिवाली तो योगी आदित्यनाथ गोरखपुर मंदिर में मनाते हैं लेकिन उससे पहले अयोध्या में दीया जलाने जरूर जाते हैं. होली के लिए तो मथुरा है ही. काशी को इंतजार है, नजर तो उद्धव ठाकरे की भी लगी है.
आम चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर संघ के साथ साथ बीजेपी और वीएचपी नेताओं ने मिल कर खूब शोर मचाया. जब ठीक-ठाक माहौल बन गया - और लोगों में 'मंदिर वहीं बनाएंगे' वाली भावनाएं कुलाचें भरने लगीं, तो अचानक एक दिन घोषणा कर डाली की मंदिर मुद्दा चुनाव तक होल्ड रहेगा. ये यू-टर्न राष्ट्रवाद के नाम पर चुनाव लड़ने और जीतने का फॉर्मूला था - और ये फॉर्मूला कामयाब भी रहा. बल्कि, उम्मीद से दो गुना कामयाब रहा.
अयोध्या मसले पर शिवसेना और बीजेपी की सोच भले एक हो, लेकिन सार्वजनिक प्रदर्शन फिलहाल तो बिलकुल अलग दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ये कहने के बाद कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही सरकार कोई कदम उठाएगी, मंदिर निर्माण के लिए कानून की मांग करने वाले संघ प्रमुख मोहन भागवत सहित सारे नेता शांत हो गये - शिवसेना को अयोध्या मसला गर्माये रखने में फायदा दिखा इसलिए वो अलग लाइन लेकर आगे बढ़ रही है.
उद्धव ठाकरे से पहले अयोध्या पहुंचे योगी आदित्यनाथ
बीजेपी नेतृत्व 'सबका विश्वास' जीतने की जुगत में लगा जरूर है, लेकिन ये तो वो कभी नहीं चाहेगा कि अयोध्या मसला हाथ से फिसल कर शिवसेना की झोली में चला जाये. वैसे भी शिवसेना ही, प्रकारांतर से ही सही, बाबरी मस्जिद गिराने की क्रेडिट पर गर्व जताती है. शिवसेना एक बार फिर ललकार रही है जो बीजेपी को तो हजम होने से रहा - लिहाजा योगी आदित्यनाथ ने पहले से ही वैक्सीनेशन प्रोग्राम बना लिया है.
सवाल ये भी है कि क्या उद्धव ठाकरे का अयोध्या दौरा 2.0 बीजेपी नेतृत्व पर 'दबाव बनाने की रणनीति' का भी कोई हिस्सा है?
उद्धव के अयोध्या दौरे का असली मकसद क्या है?
चुनाव खत्म हुआ और नयी सरकार भी बन गयी, इसलिए बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने फिर से मंदिर निर्माण की मांग शुरू कर दी है. ट्विटर पर सुब्रमण्यन स्वामी लिखते हैं - 'ये सही समय है जब नमो सरकार को राम जन्मभूमि न्यास समिति या वीएचपी के जरिये राम मंदिर के निर्माण शुरू कर देना चाहिये...'
Time for Namo Govt to announce the commencement of construction of Ram Temple through Ramjanmabhoomi Nyas Samiti or VHP. The entire 67.703 acres belongs to Union Govt. When SC decides the cases compensation will be given to winners.But not land. Meantime construction can begin
— Subramanian Swamy (@Swamy39) June 6, 2019
जिस लाइन पर सुब्रमण्यन स्वामी मंदिर निर्माण की मांग उठा रहे हैं, शिवसेना भी अयोध्या के लिए वही मिसाल दे रही है. संघ प्रमुख मोहन भागवत के भी मंदिर निर्माण पर कानून की मांग के पीछे यही भाव दिखा था - 'केंद्र में मोदी सरकार 2.0 और यूपी में योगी सरकार! फिर मंदिर कब बनेगा?' शिवसेना भी यही सब याद दिलाने की कोशिश कर रही है.
बीजेपी के पास 303 सांसद. शिवसेना के 18 सांसद. राम मंदिर निर्माण के लिए और क्या चाहिये?
— Sanjay Raut (@rautsanjay61) June 6, 2019
जब शिवसेना की तरफ से उद्धव ठाकरे के अयोध्या दौरे का कार्यक्रम बताया गया तो फिर से हरकतें शुरू हो गयी लगती हैं. मोदी सरकार 2.0 में बीजेपी 'सबका साथ, सबका विकास' में अब 'सबका विश्वास' भी जुड़ चुका है. जब सबका विश्वास जीतना हो तो अनुशासन में भी रहना होगा - और हर जरूरी परहेज भी करने होंगे. चुनाव प्रचार के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या को छू कर बगल से निकल गये तब भी किसी को हैरानी नहीं हुई - लेकिन जब एनडीए का नेता चुने जाने के बाद भाषण में 'सबका विश्वास' पर जोर दिखा तो बहुत सारी बातें समझने के लिए छोड़ दी गयीं नजर आने लगीं. बीजेपी के लिए मंदिर मुद्दा ऐसा मसला है जिस पर उसके दो सहयोगी अलग अलग ध्रुवों पर नजर आते हैं - उद्धव ठाकरे की शिवसेना मंदिर मुद्दा हथियाना चाहती है, तो नीतीश कुमार की जेडीयू ऐसे मुद्दों पर बीजेपी का साथ तक छोड़ने को आतुर दिखती है. सरकार चलाने के लिए बीजेपी नेतृत्व को साथियों की जरूरत भले न हो, लेकिन सबका साथ और सबका विकास के बगैर सबका विश्वास तो जीता भी नहीं जा सकता.
आम चुनाव के साथ ही साथ अयोध्या पर मध्यस्थता का भी काम चलता रहा. आम चुनाव के नतीजे तो आ गये, मध्यस्थता पैनल से खबर का इंतजार है. मध्यस्थता के लिए बनी जस्टिस खलीफुल्ला कमेटी को 15 अगस्त तक अपनी रिपोर्ट देनी है.
चुनाव से पहले लग रहा था अयोध्या पर केंद्र सरकार कुछ विशेष कर सकती है, लेकिन साल 2019 के पहले ही दिन आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू से साफ हो गया कि मोदी हैं तो मंदिर पर जो भी होना है वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही मुमकिन है. संघ भी शांत हो गया - और विश्व हिंदू परिषद के मंदिर मुद्दा अस्थायी तौर पर छोड़ देने की घोषणा पर मुहर भी लगा दी.
गौर करने वाली एक बात और भी है. महाराष्ट्र में इसी साल कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. आम चुनाव में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन की कामयाबी के बाद प्रयोग तो वही दोहराया जाना है, लेकिन दबाव बनाकर कुछ और भी हासिल किया जा सकता है तो बुराई क्या है?
एनडीए में शिवसेना और जेडीयू में सिर्फ दो सीटों का फर्क है. शिवसेना तो मोदी सरकार में शामिल है, लेकिन जेडीयू ने इंकार कर दिया है. शिवसेना को भी जेडीयू की दलील सही लगती होगी. कम सीटों वाले राम विलास पासवान और प्रकाश सिंह बादल के बराबर ही शिवसेना से भी एक ही मंत्री - ये तो शिवसेना को भी नाइंसाफी लगती होगी.
फिलहाल तो मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी बढ़ने से रही - लेकिन स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चुनाव होने ही वाला है. शिवसेना चाहती है कि डिप्टी स्पीकर का पद उसके नेता को दिया जाये. बीजेपी के 303 सदस्यों के बाद शिवसेना के 18 सदस्य ही दूसरे नंबर पर हैं और उसके बाद जेडीयू 16 सांसदों के साथ. शिवसेना नेता संजय राउत इसे शिवसेना का नैसर्गिक अधिकार बता रहे हैं.
बीजेपी नेतृत्व - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह को शिवसेना के इरादे नेक तो कतई नहीं लग रहे होंगे. वैसे भी राजनीति में नेक इरादे तो नुकसानदेह ही साबित होते होंगे - ये शिवसेना भी जानती है और बखूबी बीजेपी भी समझती है.
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