क्या ममता का प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा होगा ?
ममता केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध का झंडा क्यों उठाये हुए हैं, इस बारे में अब कोई संशय नहीं रह गया कि ममता इन तात्कालिक मुद्दों को अपने पक्ष में साधकर, भविष्य में भारत के प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं.
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पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दार्जीलिंग, बैरकपुर, उत्तरी 24 परगना, हावड़ा, हुगली, मुर्शीदाबाद और बर्दवान जिलों में सेना की तैनाती के बाद पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी को जो की नोटबंदी के मुद्दे पर मोदी सरकार का विरोध कर रही हैं, को केंद्र सरकार को घेरने का एक और मुद्दा मिल गया है. सेना के पूर्वी कमान ने ट्वीट करके बताया कि उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों में सेना टोल नाकों पर गाड़ियों की पूछताछ की रूटीन कार्रवाई कर रही है.
ममता बनर्जी को मारने के षड्यंत्र का आरोप |
इससे पहले टीएमसी ने ममता बनर्जी की सुरक्षा को लेकर गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में जम कर हंगामा किया. कोलकाता स्थित एनएससीबीआई हवाई अड्डे पर बुधवार रात निजी एयरलाइन कंपनी का एक विमान आधे घंटे से अधिक समय तक शहर के आसमान में चक्कर लगाता रहा जिसमें ममता थीं. इस पर टीएमसी ने आरोप लगाया कि यह पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी को मारने का एक षड्यंत्र था.
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ममता ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उसने देश में इमरजेंसी जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. ममता की नाराजगी के बाद राज्य सचिवालय नबन्ना के पास स्थित टोल प्लाजा से सैन्य कर्मियों को हटा लिया गया. सेना की ओर से आधिकारिक बयान भी आया जिसमें कहा गया कि इस बाबत पश्चिम बंगाल की सरकार और पुलिस को पहले से ही सुचना दे दी गयी थी.
अब स्थिति ये हो गयी है कि इन तमाम मुद्दों पर पूरे विपक्ष के नेतृत्व की कमान कांग्रेस से छिटक के बंगाल की मुख्यमंत्री ममता के हाथों में आ गयी है, और विपक्ष की तमाम बाकी पार्टियां ममता के पिछलग्गू बन कर रह गयी हैं.
सवाल ये है कि 8 नवम्बर के बाद से केंद्र सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर बानी हुई है, और विपक्ष की सियासत लगातार सरकार को घेरने की चल भी रही है, और इसका खमियाजा भारतीय लोकतंत्र के मंदिर दोनों सदनों को लगातार झेलना भी पड़ रहा है, जहां कार्रवाई बिल्कुल नगण्य हो गई है. ये सारी बातें तो ऊपरी तौर पर दिखती हैं, पर अगर हम गौर करें तो साफ दिखेगा कि ममता को इन तमाम मुद्दों पर केवल संसद के अंदर ही समर्थन मिला, जबकि लेफ्ट, कांग्रेस, जदयू, और बाकी बड़े दलों ने संसद के बाहर कहीं भी ममता को पूरा समर्थन नहीं दिया.
नोटबंदी के कारण वैसे तो पूरे देश भर में आक्रोश है, क्योंकि आम आदमी, मजदूर से लेकर व्यवसायी वर्ग, समाज का निम्न, मध्यम और उच्च वर्ग सभी को कमोबेश परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, पर फिर भी काले धन पर रोक और बेहतर भविष्य की कामना से पूरे देश में इन परेशानियों से इतर थोड़ा कष्ट झेलने का हौसला भी दिया है. जहां तक बंगाल का सवाल है, वहां भी कालेधन, भ्रष्टाचार, बांग्लादेश से स्मगलिंग, पशुओं की तस्करी, नकली नोटों के देश और राज्य में आने जैसे तमाम मुद्दे हैं जिन पर पर रोक लगेगी.
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तो सवाल उठता है कि ममता केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध का झंडा क्यों उठाये हुए हैं, इस बारे में अब कोई संशय नहीं रह गया कि ममता इन तात्कालिक मुद्दों को अपने पक्ष में साधकर, भारत के भविष्य के प्रधान मंत्री बनने का सपना अपने अंतर्मन में पाले हुई दिख रही हैं, और सरकार के खिलाफ गोलबन्दी के नेतृत्व , इसी ओर इशारा भी करता दिख रहा है, जोकि मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह बनकर रह गया है, पर खामियाजा भारतीय संसद को झेलना पड़ रहा है, और संसद की कार्यवाही बिल्कुल ठप्प हो गयी है. अब सवाल ये है कि क्या ममता का कोई दूसरा एजेंडा है, या अगर वो भारत के प्रधान मंत्री बनाना चाहती है तो क्या ममता के प्रधानमंत्री बनने के सपना पूरा होगा ?
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