क्या मोदी सरकार चीन से डर गई है?
केंद्र सरकार ने एक नोट जारी कर कहा है कि राज्य सरकार के कर्मचारी मार्च के आखिरी और अप्रैल महीने की शुरुआत में होने वाले ‘थैंक यू इंडिया’ के कार्यक्रम में शामिल न हों.
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इंडियन एक्सप्रेस के 2 मार्च की एक खबर के मुताबिक केंद्र सरकार ने 22 फरवरी को एक नोट जारी कर अपने और राज्यों के तमाम अधिकारियों को तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु और नेता दलाई लामा के कार्यक्रमों से बचने के लिए कहा है. पहले विदेश सचिव विजय गोखले ने कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा को एक नोट भेजा और चार दिनों के बाद कैबिनेट सचिव ने इस बारे में वरिष्ठ नेताओं और सरकारी कर्मचारियों को जानकारी दी. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी मार्च के आखिरी और अप्रैल महीने की शुरुआत में होने वाले ‘थैंक यू इंडिया’ के कार्यक्रम में शामिल न हों. दलाई लामा के तिब्बत से निर्वासन के 60 साल पूरे होने के मद्देनज़र 1 अप्रैल को दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम परिसर में बड़ा कार्यक्रम है.
बेहद संवेदनशील और नाजुक दौर से गुजर रहे हैं भारत और चीन के संबंध
विदेश सचिव गोखले ने इस आदेश का कारण ये बताया है कि ‘चीन के भारत के साथ संबंध इन दिनों बेहद संवेदनशील और नाजुक दौर से गुजर रहे हैं. ऐसे में दलाई लामा के कार्यक्रमों में केंद्र अथवा राज्यों के किसी अधिकारी या नेता-मंत्री का शामिल होना अपेक्षित नहीं है. इसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए.’ चूंकि चीन दलाई लामा को ‘खतरनाक अलगाववादी’ और ‘विभाजनकारी’ कहता है इसलिए उनके कर्यकर्मों में भाग लेने से चीन नाराज हो जायेगा, जो कि भारत नहीं चाहता है.
2009 में जब दलाई लामा के तिब्बत से निर्वासन के 50 साल पूरे होने के मद्देनज़र इसी तरह का ‘थैंक यू इंडिया’ कार्यक्रम हुआ था तब भी भारत ने सरकारी स्तर पर इसमें भाग नहीं लिया था पर उस समय ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर की बाद, विदेश मंत्रालय की तरफ से सफाई दी गई और कहा गया कि दलाई लामा पर सरकार की स्थिति बिलकुल साफ और पुरानी ही है और इसमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया गया है. भारत में दलाई लामा को अपनी धार्मिक गतिविधियों को पूरा करने की पूरी आजादी है. कथित निर्देश को लेकर सरकार ने किसी भी तरह का कोई खंडन विशेष तौर पर नहीं किया. भारत ने सिर्फ इतना कहा कि दलाई लामा को लेकर सरकार के स्टैंड में कोई बदलाव नहीं आया है.
दलाई लामा 31 मार्च, 1959 को मैकमोहन रेखा पार कर हिंदुस्तान में दाख़िल हुए थे. तब चीन में माओत्से तुंग का शासन था. जब भारत ने दलाई लामा को अपने यहां शरण दी तो माओत्से तुंग भड़क गए. स्वाभाविक रूप से चीन को भारत में दलाई लामा को शरण मिलना अच्छा नहीं लगा. फिर भी जवाहर लाल नेहरू ने मसूरी जाकर न केवल उनका स्वागत किया था बल्कि औपचारिक रूप से भारत में शरण देने की घोषणा भी की थी.
जब नेहरू ने चीन के गुस्से की चिंता किये बिना दलाई लामा का स्वागत किया तो भी मोदी सरकार ने क्यों अपने और राज्यों के तमाम अधिकारियों को उनके कार्यक्रमों से बचने के लिए कहा है? क्या मोदी सरकार चीन से डर गई है?
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