बीजेपी की हार के बाद मोदी सरकार अपनी किसान नीति बदलेगी क्या?
अयोध्या में राम मंदिर को लेकर केंद्र की मोदी सरकार का जो भी स्टैंड हो, ऐसा लगता है किसान नीति बदलने वाली है. अगर ऐसा हुआ तो देश भर के किसान कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं - 2019 से पहले.
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नरेंद्र मोदी की सरकार किसानों की आमदनी डबल कर देने के वादे तो करती है, लेकिन कर्जमाफी के पक्ष में वो कभी नहीं रही. टीम मोदी का मानना है कि इससे सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और दूसरी योजनाएं प्रभावित होंगी.
चुनाव नतीजे जो न करायें. अब सुनने में आ रहा है कि केंद्र सरकार व्यापक स्तर पर किसानों की कर्जमाफी की घोषणा कर सकती है - और वो भी अगले आम चुनाव से पहले. विधानसभा चुनाव के नतीजों से भी साफ हो चुका है कि कर्जमाफी नकदी फसल जितनी असरदार साबित हो रही है.
किसानों से क्या था बीजेपी का वादा?
7 दिसंबर को राजस्थान में वोट डाले जाने वाले थे. ठीक एक दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी करने को लेकर कृषि निर्यात नीति को मंजूरी दे दी. केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु के मुताबिक, 'कृषि निर्यात नीति का लक्ष्य 2022 तक देश का कृषि निर्यात दोगुना कर 60 अरब डालर तक पहुंचाना है.' सुरेश प्रभु ने बताया कि किसानों को एक स्थिर व्यापार नीति व्यवस्था के जरिये निर्यात के मौकों का फायदा मिलेगा.
हल नहीं कर्जमाफी वोट दिलाती है
विधानसभा चुनावों के दौरान अलग अलग राज्यों में बीजेपी ने अपने मैनिफेस्टो में किसानों के लिए कई वादे किये थे - लेकिन वे किसानों को इतने दमदार नजर नहीं आये कि अपना वोट वो बीजेपी को दें.
मध्य प्रदेश के किसानों से बीजेपी के वादे: मध्य प्रदेश में बीजेपी ने चुनाव घोषणा पत्र में कहा था कि कृषि समृद्धि योजना का लाभ छोटे किसानों को भी दिया जाएगा. बीजेपी ने किसानों को फसल की सही कीमत देने के साथ ही सिंचाई की क्षमता बढ़ाने का वादा किया था. बीजेपी ने घोषणा पत्र में कहा कि 80 लाख हेक्टेयर इलाके में सिंचाई की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी.
छत्तीसगढ़ के किसानों से बीजेपी के वादे: बीजेपी का वादा रहा कि छत्तीसगढ़ जल्द से जैविक खेती के प्रदेश के तौर पर पहचान बनाये. किसानों से दलहन और तिलहन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाएगी. किसानों के पांच साल में दो लाख नये पंप कनेक्शन देने का भी वादा किया गया था. साथ ही, 60 साल से ज्यादा उम्र के किसानों और कृषि मजदूरों को हर महीने ₹ 1 पेंशन देने का भी बीजेपी ने घोषणा की थी.
राजस्थान के किसानों से बीजेपी के वादे: राजस्थान में बीजेपी ने किसान की आय दोगुनी करने का भरोसा दिलाया था. फसलों की लागत का डेढ़ गुना भाव सुनिश्चित करने के लिए एमएसपी खरीद को और ज्यादा पारदर्शी बनाने को कहा गया था. बीजेपी मैनिफेस्टो में 250 करोड़ रुपये का ग्रामीण स्टार्ट-अप फंड स्थापित करने को कहा था जो विशेष रूप से किसानों के लिए होता.
चुनावों से पहले, सितंबर में ही मोदी कैबिनेट ने नई अनाज खरीद नीति को मंजूरी दी थी. बताया गया कि नई अनाज खरीद नीति से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा मिलेगा. सरकार हर साल रबी और खरीफ की 23 फसलों के समर्थन मूल्य तय करती है. कहा गया कि इससे किसानों के लिए एफसीआई जैसी सरकारी एजेंसियों को अनाज बेचना आसान हो जाएगा. उससे पहले जुलाई में फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम दिलाने को लेकर सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹ 200 प्रति क्विटंल बढ़ा दिया था.
क्या बदलेगी मोदी सरकार की किसान नीति?
सारी बातों के बावजूद बीजेपी सरकारों ने वो नहीं किया जिस चीज का वादा कांग्रेस ने किया और बाजी मार ले गयी - कर्जमाफी. असल में मोदी सरकार की नीति रही है कि कर्जमाफी राज्यों का विषय है और वे अपने स्तर पर इसे डील करें.
कर्जमाफी वोट दिलाती है
सूत्रों के हवाले से आ रही खबर है कि केंद्र सरकार ने कर्जमाफी को लेकर स्टैंड बदला है और ऐसा लोक सभा चुनाव से पहले संभव लगता है. माना जा रहा है कि राहुल गांधी की एक घोषणा ने बीजेपी के सारे समीकरण गड़बड़ा दिये - सत्ता में आने के 10 दिन के भीतर किसानों की कर्जमाफी का वादा. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक देश में किसानों के चार लाख करोड़ के कर्ज माफ किये जा सकते हैं. देश में 26.3 करोड़ किसान हैं जिनमें ज्यादातर की आमदनी का स्रोत खेती है. ताजा चुनावी नतीजे और पुराने अनुभवों को देखते हुए लगता है केंद्र सरकार अपनी किसान नीति में बड़ी तब्दीली करने वाली है. हालांकि, मीडिया रिपोर्ट में कृषि मंत्रालय के एडिशनल सेक्रेट्री अशोक दलवी का बयान भी छपा है, जिसमें वो भी कर्जमाफी को राज्यों का विषय बता रहे हैं. अशोक दलवी किसानों की आमदनी दुगुनी करने के लिए बनी कमेटी के प्रमुख हैं और उन्होंने कर्जमाफी जैसे सरकार के किसी प्रस्ताव से इंकार किया है.
मध्य प्रदेश में राहुल गांधी के 10 दिन में कर्जमाफी के ऐलान के बाद तो लोगों ने कर्ज चुकाने ही बंद कर दिये थे. वोटों की फसल काटनी हो तो कर्जमाफी नकदी फसल जैसी है और ये बात कई बार साबित हो चुकी है.
1. यूपीए शासन में: कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने 2008 में किसानों का ₹ 72 हजार करोड़ का कर्ज माफ किया. यूपीए को मिले दूसरे कार्यकाल में इसका भी फायदा मिला, ऐसा समझा जाता है.
2. यूपी चुनाव में: 2017 के यूपी चुनावों के दौरान राहुल गांधी की किसान यात्रा और खाट सभा खूब चर्चित रहे. इस दौरान राहुल गांधी ने किसानों से कर्जमाफी का वादा भी किया था. मजबूरन, दबाव में बीजेपी को भी कर्जमाफी की घोषणा करनी पड़ी. बीजेपी की जीत के कई कारण थे, लेकिन अगर ऐसा न किया होता तो नतीजे उल्टे भी हो सकते थे.
सिर्फ कर्जमाफी, कुछ और नहीं...
3. पंजाब चुनाव में: 2017 के ही पंजाब विधानसभा चुनाव में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों के कर्ज माफ करने का वादा किया था. कैप्टन ने बादल सरकार को बेदखल करते हुए सत्ता हासिल कर ली.
4. 2018 के विधानसभा चुनावों में: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने खास अंदाज में गिनती करते हुए ऐलान किया कि कांग्रेस सरकार बनने के 10 दिन के भीतर किसानों के कर्ज माफ कर दिये जाएंगे. ऐसा ही राहुल गांधी ने राजस्थान में भी किया था. राहुल गांधी के वादे की ओर ध्यान दिलाते हुए छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं ने गंगाजल लेकर कसमें भी खायी थी.
पूरे चुनाव के दौरान 'चौकीदार चौर है' नारा लगाने वाले राहुल गांधी को शिवराज सिंह ने चैलेंज किया है - कांग्रेस ने जो वादा किया है पूरा करे. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद शिवराज सिंह ने कहा, 'अब चौकीदारी की जिम्मेदारी हमारी है. हम चुप बैठने वालों में नहीं हैं. आज से ही हमारा काम शुरू हो रहा है.'
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