तब राजीव अयोध्या गए थे और बीजेपी को 'जमीन' दे आए थे
राजीव गांधी ने 1989 का लोकसभा चुनाव अभियान अयोध्या से ये कहते हुए शुरू किया कि वे पूरे देश में राम राज्य लाएंगे. ऐसे में जब उनके सामने शिलापूजन करवाने का दबाव बढ़ा तो बिचौलिए का काम बूटा सिंह ने किया. राम मंदिर मुद्दे पर वे ही केंद्र और राज्य सरकार के बीच की कड़ी थे.
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आस्था के गलियारों में राजनीतिक बाजीगरी बहुतों ने की, लेकिन ज्यादातर दाव उलटे ही पड़े. कम से कम नेहरू-गांधी परिवार में तो ऐसा ही रहा. इंदिरा गांधी युग के बाद से तो शत-प्रतिशत. राजीव गांधी ने जब जब ऐसी कोशिश की, नाकामी हाथ लगी. और अब राहुल गांधी उसी रास्ते पर निकले हैं.
राजीव गांधी अपने कार्यकाल के मध्य में दो नारों से जूझ रहे थे. वीपी सिंह घूम-घूमकर कह रहे थे- 'सेना खून बहाती है, सरकार कमीशन खाती है' (बोफोर्स घोटाला). और दूसरा, उसी दौरान विहिप ने देश की बहुसंख्यनक आबादी में जोश भरना शुरू कर दिया था- 'गर्व से कहो हम हिंदू हैं'.
परिस्थितियों का दबाव कहें या सलाहकारों की अदूरदर्शिता, राजीव गांधी विशालकाय बहुमत होते हुए भी गलतियों पर गलतियां करते गए. जैसे-
1. राजीव गांधी और अरुण नेहरू ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के जरिए बाबरी मस्जिद के विवादित हिस्से में पूजा पाठ के लिए ताला खुलवाया. उसी से विश्व हिंदू परिषद को मौका मिला आंदोलन शुरू करने का, कि 'रामलला कैद में हैं'.
2. 1989 में शिलापूजन की इजाजत देकर उन्होंने राम मंदिर आंदोलन को और मजबूती दे दी. आडवाणी रथ लेकर निकल पड़े. और आधे देश में बीजेपी की हवा बना दी.
हालांकि, कई दिनों तक यह रहस्य ही रहा कि कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद अयोध्या में विवादित स्थल पर 9 सितंबर 1989 को विहिप ने शिलापूजन कैसे किया? इस रहस्य का खुलासा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब 'टरब्यूलेंट इयर्स : 1980-96' में हुआ.
राजीव गांधी ने की थी 'गलती' |
किताब में प्रणब मुखर्जी यूपी के तत्कालीन डीजीपी आरपी जोशी से शिलापूजन के अगले दिन हुई मुलाकात का जिक्र करते हैं. जोशी ने बताया कि दिल्ली और लखनऊ में बैठे बड़े लोगों के कहने पर ही शिलान्यास हो पाया. यानी प्रधानमंत्री राजीव गांधी, गृह मंत्री बूटा सिंह और यूपी के मुख्यकमंत्री नारायण दत्त तिवारी की बदौलत.
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राजीव गांधी ने 1989 का लोकसभा चुनाव अभियान अयोध्या से ये कहते हुए शुरू किया कि वे पूरे देश में राम राज्य लाएंगे. ऐसे में जब उनके सामने शिलापूजन करवाने का दबाव बढ़ा तो बिचौलिए का काम बूटा सिंह ने किया.
राजीव गांधी और बूटा सिंह |
राम मंदिर मुद्दे पर वे ही केंद्र और राज्य सरकार के बीच की कड़ी थे. शिलापूजन से ठीक एक हफ्ता पहले बूटा सिंह और नारायण दत्त तिवारी, राजीव गांधी को लेकर गोरखपुर पहुंचे जहां उनकी देवरहा बाबा से मुलाकात होनी थी. ये मीटिंग देवरहा बाबा के एक आईपीएस अफसर भक्त ने ही फिक्स कराई थी.
बाबा आशीर्वाद स्वरूप अपने पैर को दर्शन लेने आए व्यक्ति के सिर पर लगाते थे. राजीव गांधी ने भी उस परंपरा का पालन किया. इलाके में काफी रसूख रखने वाले देवरहा बाबा से राजीव गांधी ने शिलापूजन मामले में मार्गदर्शन चाहा. तो बाबा ने एक ही वाक्य कहा- 'बच्चा, हो जाने दो'.
अपनी किताब में मुखर्जी कहते हैं कि जब मैंने जोशी से पूछा कि उसके बाद क्या हुआ, तो जोशी भी नपे-तुले शब्दों में बोले- 'बच्चे ने हो जाने दिया'.
अयोध्या में शिलापूजन को लेकर देवरहा बाबा की सलाह मानने का क्या असर हुआ, सब इतिहास का हिस्सा है. अब उस घटनाक्रम के 27 साल बाद राहुल गांधी अयोध्या पहुंचे हैं. विवादित स्थल के नजदीक हनुमानगढ़ी मंदिर में दर्शन किए और यहां के महंत ज्ञानदास से बंद कमरे में दस मिनट बातचीत की. राम मंदिर निर्माण के लिए वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे ज्ञानदास से मुलाकात करके बाहर आए तो राहुल गांधी के माथे पर चंदन का तिलक लगा हुआ था.
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बाबरी मस्जिद ढहाने को लेकर बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रूप से मुखर रही कांग्रेस के लिए राहुल की अयोध्या यात्रा बेहद अहम है. कांग्रेस उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण वोट पार्टी की तरफ वापस लाना चाहती है. लेकिन जल्दबाजी में राहुल कोई गलती न कर दें. क्या पता बंद कमरे में राम मंदिर निर्माण की बात निकली हो - और महंत ज्ञानदास ने राहुल गांधी से कह दिया हो - 'बच्चा बन जाने दो...'
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