प्रियंका गाँधी की पॉलिटिकल इनिंग शुरू होती है अब...
प्रियंका गांधी ने फिलहाल यूपी की राजनीति में एक नया तड़का लगा दिया. कांग्रेस और सपा के गठबंधंन में प्रियंका की अहम भूमिका रही है. तो क्या प्रियंका अब राजनीति में पूरी तरह से पैर जमाने के लिए तैयार हैं या फिर ये सिर्फ पर्दे के पीछे का रोल है ?
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रविवार, 22 जनवरी को सुबह-सुबह प्रियंका गांधी के पास अखिलेश यादव का फोन आता है और वह कांग्रेस पार्टी को समझौते के तहत 105 सीटों का ऑफर देते हैं. कुछ ही घंटों बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों दलों के गठबंधन का ऐलान कर देते हैं.
शुक्रवार और शनिवार की रात्रि में 1:00 बजे प्रियंका गांधी अखिलेश यादव को फोन करती हैं, फोन स्विच ऑफ होता है. वो उनकी पत्नी एवं सांसद डिंपल यादव के मोबाइल पर फोन करती हैं और अखिलेश यादव से बात करती हैं. उस समय तक लग रहा था कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन अब नहीं हो पाएगा. दोनों पटरी से उतर चुकी बातचीत को एक बार फिर से रास्ते पर लेकर आते हैं.
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मतलब कि दो फोन दो वार्ता और दोनों में कर्ता-धर्ता दो लोग, सपा की तरफ से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी. यानि की मुद्दा चाहे टूट रहे गठबंधन को रास्ते पर लाना हो या उसके फिर से रास्ते पर आने की सूचना देना हो दोनों के सूत्रधार प्रियंका एवं अखिलेश.
प्रयिंका ने पर्दे के पीछे से इस गठबंधंन में अहम भूमिका निभाई है |
पर्दे के पीछे से जो रोल प्रियंका गांधी निभा रही थीं उसका खुलासा सोनिया गांधी के निकटतम नेता अहमद पटेल ने ट्वीट से की. उन्होंने इस बात की सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी कि अखिलेश के साथ बातचीत में प्रियंका गांधी भी शामिल हैं. प्रियंका के रोले की पुष्टि तब हुई जब कांग्रेस पार्टी के उत्तर प्रदेश के इंचार्ज एवं महासचिव गुलाम नबी आजाद ने अलायंस के लिए प्रियंका गांधी को धन्यवाद दिया.
क्या यह प्रियंका गांधी के राजनीति में पूर्ण रुप से उदय का संकेत है? क्या प्रियंका अब गांधी के गढ़ जो कि अमेठी एवं रायबरेली है, से बाहर भी अपना राजनीतिक दायरा फैलाएंगी? क्या वो कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में प्रचार करेंगी? क्या वह उत्तर प्रदेश से बाहर भी हो रहे विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार में जाएँगी?
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जहां तक सपा एवं कांग्रेस गठबंधन के लिए प्रचार का सवाल है, पार्टी के सूत्रों से इस तरह के संकेत आ रहे हैं कि प्रियंका गांधी एवं अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव एक साथ गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर सकती हैं. जहां तक सवाल अन्य राज्यों में कांग्रेस के उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करने का है वैसा कोई भी संकेत पार्टी की तरफ से एवं प्रियंका गांधी के नजदीकी लोगों से नहीं मिल रहा है.
अब सवाल उठता है कि क्या वह राजनीति में फ्रंट फुट पर खेलेंगी? यानी कि क्या वह चुनाव लड़ेंगी? अभी तक इस तरह का कोई संकेत पार्टी की तरफ से नहीं मिला है. पर भविष्य में क्या होगा कौन जानता है. पर एक बात तो तय है कि प्रियंका गांधी ने इस अलायंस को बनाने में कांग्रेस पार्टी की तरफ से प्रमुख रोल अदा किया है. पार्टी की स्ट्रैटजी मीटिंग में वो प्रशांत किशोर एवं गुलाम नबी आज़ाद के साथ अपने भाई राहुल गाँधी की महीनों से मदद कर रही हैं. अर्थात वो बैक फुट पर तो राजनितिक बैटिंग करने ही लगी हैं.
भारत के राजनीतिक विश्लेषक अक्सर नरेंद्र मोदी की तुलना इंदिरा गांधी से करते हैं. चाहें, प्रधान मंत्री के कार्य करने का तरीका हो या पार्टी में उनकी पकड़ या भाषण देने की अदा लगभग हर पहलु में इंदिरा गाँधी के कार्यशैली का कुछ न कुछ जरूर ही परिलक्षित होता होता है. ठीक उसी तरह से राजनीतिक विश्लेषक प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी के करिश्माई व्यक्तित्व को पाते हैं. वह भी कुछ-कुछ अपनी दादी की तरह दिखती हैं एवं बोलती हैं. अब देखना यह होगा कि उत्तर प्रदेश की चुनावी जमीन पर एक इंदिरा गांधी की पोती और एक इंदिरा गांधी की कार्यप्रणाली को फॉलो करने वाले प्रधानमंत्री के लड़ाई में विजय कौन होता है?
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