इशरत जहां देश की बेटी या दुश्मन?
राजनीति में मुर्दे को भी जिंदा रखा जाता है ताकि समय आने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके. यही राजनीति कांग्रेस ने खेली, ताकि किसी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम किया जा सके. कांग्रेस ने जो जाल बुना उसमें वो खुद ही फंस गई. आखिर फंसती भी क्यूं नहीं, मकसद ही जो गलत था.
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एक बार फिर से इशरत जहां इनकांउटर का मामला सुर्खियों में है. कारण रहा डेविड हेडली की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाही. इसके बाद तो जैसे 2004 से 2014 के बीच क्या-क्या हुआ इसका पूरा पिटारा ही खुल गया है. कहा गया है कि राजनीति में मुर्दे को भी जिंदा रखा जाता है ताकि समय आने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके. यही राजनीति कांग्रेस ने खेली, ताकि किसी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम किया जा सके. पिछले करीब दो सालों से पीएम मोदी द्वारा किए जा रहे कामों की गाड़ी को पंक्चर किया जा सके. पर इन विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने जिस बात को हथियार बनाया, जो जाल बुना उसमें कांग्रेस खुद ही फंस गई. आखिर फंसती भी क्यूं नहीं, मकसद ही जो गलत था.
हेडली की गवाही ने ये फिर साबित कर दिया कि इशरत जहां लश्कर-ए-तोएबा की प्रशिक्षित वेतनभोगी आतंकी थी. इससे गुजरात सरकार के उस दावे पर फिर से मुहर लग गई कि जो एनकाउंटर 2004 में गुजरात पुलिस ने जिसे आईबी की सूचना के आधार पर किया वो आधार सही था. हेडली के बाद रही-सही कसर तत्कालीन भारत सरकार में होम सेक्रेटरी रहे जी. के. पिल्लई ने पूरी कर दी. यूपीए सरकार में होम सेक्रेटरी रहे पिल्लई ने कहा है कि इशरत जहां एनकाउंटर से जुड़े एफिडेविट में तत्कालीन होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने उन्हें दरकिनार करते हुए खुद ही बदलाव करवाया था. पिल्लई ने कहा कि चिदंबरम ने आईबी में मेरे जूनियर ऑफिसर्स को मुझे बिना बताये कॉल किया और एफिडेविट को पूरी तरह बदल दिया. वे खुद ही डिक्टेट करके नया एफिडेविट लिखवा रहे थे. इसलिए किसी ने कोई विरोध नहीं किया. चिदंबरम को इस मामले में एफिडेविट देने के लिए आईबी और होम सेक्रेटरी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए. इशरत जहां मामले में एफिडेविट पॉलिटिकल वजहों से ही बदला गया था. पहले हेडली और फिर अपने ही समय के होम सेक्रेटरी रहे पिल्लई के बयानों से तिलमिलाई कांग्रेसी भी बाहर आ गये और चिदंबरम ने कहा कि एफिडेविट बदला गया था, लेकिन ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि पहला एफिडेविट भ्रम फैलाने वाला था. उन्होंने कहा कि ऐसा किसी को बचाने के लिए नहीं किया गया था बल्कि इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष ठीक से रखने के लिए किया गया था.
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चिदंबरम साहब जो भी कहें पर ये साफ होता चला गया कि कैसे कांग्रेस की पूरी सरकार एक व्यक्ति को बदनाम करने के लिए एक आतंकी की पहचान छिपाते रही, उसे बचाती रही और नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह को फंसाने का षडयंत्र कर पूरी सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करती चली गई. देश की जनता में भ्रम फैलाती रही ताकि उसे एक वर्ग विशेष का वोट मिलता रहे. पर सच्चाई छुपती नहीं है. भले ही कुछ वक्त के लिए धूमिल हो जाए. रहीम का दोहा याद आ रहा है. 'खैर, खुन, खांसी, खुशी, बैर, प्रीत, मधुपान। रहिमन दावे ना दबे जानत सकल जहान।।' यह सिर्फ एक व्यक्ति से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि लोकतंत्र की गरिमा और अस्मिता से भी जुड़ा है. कैसे उस समय के एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री को बदनाम करने और चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने के लिए केन्द्र में बैठी यूपीए की सरकार ये हथकंडे अपनाए. आज ये इस देश के सामने जाहिर हो गया है. और ये संभव भी तभी ही हो पाया जब केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी नीत एनडीए की सरकार बनी. नहीं तो ये तथ्य भी आज देश के सामने नहीं आता. देश की जनता को आज मालूम हुआ कि यूपीए सरकार का दामन सिर्फ घोटालों से ही दागदार नहीं था बल्कि सत्ता में रहते हुए विपक्षियों के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र करना, देश में भ्रम फैलाना, समाज को जाति और धर्म के नाम पर बांटना, यानी सत्ता में किसी तरह बनी रहे इसके लिए ये कांग्रेसी कुछ भी करते थे और करते भी रहेंगे. ये सच आज देश के सामने आ गया है.
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कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की पोल संसद के इस बजट सत्र में भी इशरत को लेकर फिर खुल गई. जब बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने ये मामला उठाते हुए 2004 में गुजरात में कथित मुठभेड़ में मारी गई इशरत पर पिछली सरकार द्वारा दायर दो एफिडेविट पर सरकार से जवाब मांगा है. इसी मुद्दे पर जब बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह ने संसद को इस बारे में जो बताया वो और भी चैकाने वाला था. सत्यपाल सिंह ने कहा कि जब वो इस मामले से जुड़े एसआईटी के चीफ थे तो एक बड़े कांग्रेसी नेता का फोन आया और कहा गया कि किसी भी सूरत में गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेन्द्र मोदी को फंसाना है. मैंने यह करने से मना कर दिया, यानी नीयत ही गलत. कांग्रेस का सत्ता के दुरूपयोग का ये चेहरा मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह के सांसद बनने से उजागर हुआ. नहीं तो इससे भी देश अनजान ही रह जाता. उसके बाद जब होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह जवाब देने आये और जो तथ्य सदन के पटल पर रखा वो तो यूपीए सरकार के और भी वीभत्स चेहरे को उजागर कर गया. होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने कहा कि 'मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि आतंकवाद से केवल भारत ही नहीं पूरी दुनिया प्रभावित है. इसलिए इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.' पहले एक एडिशनल एफिडेविट फाइल की जाती है. बाद में उसे नया डाइमेंशन दे दिया जाता है. लगता है कि तत्कालीन गुजरात सरकार को परेशान करने के लिए और उस वक्त के सीएम (नरेंद्र मोदी) को फंसाने के लिए यह सब किया गया. हेडली का बयान इशरत के आतंकवादी होने का एक और सबूत है. इस मामले को कम्युनल कलर देने की कोशिश की गई. सितम्बर 2009 में होम सेक्रेटरी ने दो चिट्ठियां जो अटॉर्नी जनरल को लिखी थीं आज उपलब्ध नहीं हैं. जो ड्राफ्ट अटॉर्नी जनरल के यहां से उस वक्त आया उसकी कॉपी भी उपलब्ध नहीं है. ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनकी छानबीन करने की जरूरत है. तथ्य इस ओर इशारा करते हैं कि इस मामले में गड़बड़ हुई. यानी ये साफ है कि जो भी दस्तावेज गायब हैं उसके लिए जिम्मेदार कांग्रेस की सरकार ही है और कांग्रेसी सत्ता का दुरूपयोग कैसे करते हैं इसकी बानगी भी आज देश के सामने है.
कैसी सत्ता और कैसी सरकार. आज कांग्रेस के ये दोनों चेहरे देश की जनता के सामने हैं. ये जो दस्तावेज गृह मंत्रालय से गायब हैं उसके लिए कौन जिम्मेवार है ये बताने की जरूरत नहीं है. आखिरकार कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए किस तरह की चालबाजियां कीं, कुत्सित राजनीति की, एक चुनी हुई सरकार के मुखिया को बदनाम करने की कोशिश की, ये आज इस देश के सामने है. और ये सब संभव तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुआई में एनडीए की सरकार बनी. मोदी की सरकार से डरे ये कांग्रेसी अपनी ही गलतियों में फंसते जा रहे हैं.
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अफसोस इस बात से होता है कि अब कांग्रेसी इशरत जहां को देश की बेटी बता रहे हैं. बीते दिनों मैं दूरदर्शन के एक कार्यक्रम में था. विषय इशरत जहां इनकाउंटर ही था. वहां पर कांग्रेस के एक आला नेता इशरत को देश की बेटी कह रहे थे. क्या देश की बेटी अपनी मातृभूमि के खिलाफ ही पडयंत्र करेगी. कायदे से देखा जाए तो इशरत जहां देश की बेटी नहीं देश की दुश्मन थी. अब इस बात को सारा देश समझ चुका है.
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