कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ में भाजपा का किला भेदना इतना आसान भी नहीं
छत्तीसगढ़ के हालातों को देखकर तय लगता है कि यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच मुक़ाबला कांटे का है, लेकिन पलड़ा भाजपा का ही भारी नज़र आता है.
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चुनावों की तारीखों के ऐलान के साथ ही छत्तीसगढ़ की दो प्रमुख पार्टियों- भाजपा और कांग्रेस ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. क्योंकि यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए अहम है. जहां भाजपा की 15 साल के बाद जीत ये संदेश देगी कि भाजपा को विकास के बलबूते जनादेश मिला है, वहीं कांग्रेस के लिए ये जीत किसी संजीवनी से कम साबित नहीं होगी क्योंकि यहां यह 15 सालों से वनवास झेल रही है और इसका फायदा आनेवाले लोकसभा चुनावों में भुनाएगी.
लेकिन जब नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ का गठन हुआ तब कांग्रेस के तत्कालीन नेता अजित जोगी ने पहले मुख्यमंत्री के तौर पर पद ग्रहण किया था. यानी 9 नवम्बर 2000 से लेकर 6 दिसंबर 2003 तक ही कांग्रेस का राज रहा. उसके बाद 2003, 2008 और 2013 में विधानसभा चुनाव हुए और इन तीनों चुनावों में भाजपा ने बाजी मारी. तब से डॉक्टर रमन सिंह मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान हैं. अब भाजपा जहां चौका मारने की कोशिश में है वहीं कांग्रेस मौके की तलाश में प्रयासरत है. लेकिन भाजपा चौका लगाएगी या फिर कांग्रेस को मौका मिलेगा ये वहां की जनता तय करेगी. और इसका खुलासा 11 दिसंबर को होगा जब चुनाव परिणाम आएंगे.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस मुश्किल में
छत्तीसगढ़ में कांटे की टक्कर
अभी तक 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ में तीन विधानसभा चुनाव हुए हैं और इन तीनों चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही है. अगर बात सीटें जीतने की करें तो भाजपा ने 2003 में 50, 2008 में भी 50 और 2013 में 49 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं कांग्रेस को 2003 में 37, 2008 में 38 और 2013 में 39 सीटों पर ही कामयाबी हासिल हो पाई थी. यानी कांग्रेस हर चुनाव में एक-एक सीट का ही इज़ाफ़ा कर पाई.
बात वोट प्रतिशत के अंतर की
कांग्रेस के मुक़ाबले भाजपा को 2003 के चुनावों में 2.55 प्रतिशत, 2008 में 1.70 प्रतिशत तथा 2013 में 0.75 प्रतिशत का ही बढ़त मिली थी. यानी भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही है.
राजनीतिक माहौल कांग्रेस के खिलाफ
चूंकि पिछले 15 वर्षों से छत्तीसगढ़ की सत्ता पर भाजपा का कब्जा है और सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने का कांग्रेस के पास अच्छा मौका था लेकिन इस बीच कुछ राजनीतिक घटनाक्रम इसमें सेंध लगा सकते हैं.
बसपा और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का एक साथ आना
अजीत सिह और मायावती का साथ आना भी कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है
अभी तक छत्तीसगढ़ के चुनावी मैदान में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर हुआ करती थी, जो इस बार त्रिकोणीय हो गई है. मायावती की बसपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के हाथ को झटककर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का साथ दिया है. यानी बसपा और अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. बसपा करीब 6 फीसद वोट प्रत्येक विधानसभा चुनाव में पाती है, ऐसे में पूर्व कांग्रेसी नेता अजीत जोगी के साथ आने से कांग्रेस का वोट कट सकता है और इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है.
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी कांग्रेस से अलग
बसपा के बाद अब गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी कांग्रेस का हाथ झटक दिया. इस पार्टी का प्रदेश की 14 सीटों पर प्रभाव है जहां कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. यही नहीं इस पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनावों में 6 सीटों पर औसतन 10 प्रतिशत वोट भी पाए थे.
ओपिनियन पोल्स में भी कांटे की टक्कर
ओपिनियन पोल्स भी भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर दिखा रहे हैं. हालांकि, दो पोल एजेंसियां न्यूज़ नेशन और टाइम्स नाउ-वाररूम स्ट्रैटजीज तो भाजपा के क्रमशः 46 और 47 सीटें जीतने का अनुमान लगा रहे हैं वहीं कांग्रेस को मात्र 39 और 33 सीटों पर ही बढ़त दिखा रहे हैं. लेकिन अगर सारी एजेंसियों का औसत निकाला जाए तो भाजपा को 42 और कांग्रेस को 43 सीटें जीतने का अनुमान निकल रहा है.
हालांकि, ये सारी अटकलें और अनुमान हैं लेकिन फिलहाल इतना तो तय लगता है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुक़ाबला काफी कांटे का है, और इसमें पलड़ा भाजपा का ही भारी नज़र आता है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे छत्तीसगढ़ में भाजपा का क़िला मज़बूत स्थिति में है और कांग्रेस को इसे भेदने के लिए काफी मेहनत की ज़रूरत है.
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