पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को जवाब देने का समय आ गया है
पाकिस्तान कश्मीर को लेकर भी जो व्यूह रचना कर रहा है उसमें चीन की शिरकत नई मुश्किलें खड़ा कर सकती है.
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भारत के सामने पाकिस्तान को लेकर चौतरफा मुश्किलें हैं. क्योंकि पाकिस्तान एक तरफ वियना संधि को दरकिनार कर कुलभूषण जाधव के मामले को द्वीपक्षीय साबित करने पर तुला है तो दूसरी तरफ लाइन ऑफ कंट्रोल पर लगातार सीज़फायर का उल्लंघन कर रहा है. आतंकवाद को अपनी ज़मीन पर आश्रय देकर हाफिज सईद के चेहरे पर पाबंदी का खुला खेल खेल रहा है. और पाकिस्तान की ज़मीन पर फलते-फूलते आतंकवाद के ज़रिये कश्मीर में आतंकवाद की नई पौधा खड़ा कर रहा है. और इन सबके बीच चीन को पीओके में इकोनॉमिक कॉरिडोर बनवाकर कश्मीर में पाकिस्तान चीन की दखल भी चाह रहा है.
भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में सुनवाई के दौरान भारत ने पाकिस्तान पर मानवाधिकार, वियाना संधि उल्लंघन का आरोप लगाया. वहीं पाकिस्तान ने कहा ने कोर्ट को इस मामले को रद्द किए जाने की मांग करते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में आईसीजे कोई फैसला नहीं ले सकता और कुलभूषण जाधव ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है और इस मामले में भारत आईसीजे का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहा है.
ज़ाहिर है कि भारत को ऐसी किसी स्थिति के लिए तैयार रहने के साथ ही उन उपायों पर भी गौर करना चाहिए जिनका सहारा लेकर पाकिस्तान पर दबाव डाला जा सके. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस संयुक्त राष्ट्र की संस्था है और यदि पाकिस्तान उसके आदेश को नहीं मानता तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अपने लिए मुश्किलें ही खड़ी करेगा. ऐसे में भारत को ऐसी परिस्थितियों से निपटने का उपाय पहले से ढूंढकर रखना चाहिए. लेकिन भारत के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वह पाकिस्तान सरकार पर तो दबाव डाल सकता है, लेकिन उसकी सेना पर नहीं और आवश्यकता इस बात की है कि भारत ऐसे कोई कदम उठाए जिसका असर पाकिस्तान की सेना पर पड़े.
बीजिंग में ‘वन बेल्ट वन रोड' सम्मेलन में पाकिस्तान चीन के राष्ट्रपति के साथ नवाज़ शरीफ की निकटता को चीन जानबूझकर दिखला भी रहा है और चीनी मिडिया से पाकिस्तान की तारीफ और भारत के खिलाफ ज़हर उगलवा भी रहा है. OBOR के चलते दक्षिण एशिया में चीनी सेना का दखल भी बढ़ेगा. और यही भारत की सबसे बड़ी मुश्किल है कि अगर चीन पीओके में इकोनॉमिक कॉरिडोर बना लेता है तो, फिर कश्मीर को लेकर चीन भी एक पार्टी के तौर पर आने वाले वक्त में खड़ा हो सकता है.
यानी एक तरफ लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर सीजफायर उल्लंघन करते हुए सेना को उलझाना तो दूसरी तरफ चीन के शिजियांग से निकलने वाले इकोनॉमिक कॉरिडोर पर पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के उस लम्बे हिस्से से गुजरना, जहां भारत के खिलाफ आतंक को पाकिस्तान पनाह देता है. और इसका एक बड़ा स्टेशन मुज़फ़्फ़राबाद भी है.
दरअसल पाकिस्तान कश्मीर को लेकर भी जो व्यूह रचना कर रहा है उसमें चीन की शिरकत नई मुश्किलें खड़ा कर सकती हैं. और चीन जिस तरह पाकिस्तान के आतंक के साथ यूनाइटेड नेशन तक में जा खड़ा हुआ उसमे कुलभूषण जाधव को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के फैसले को भी पाकिस्तान मानने से इंकार कर मामले को यूनाइटेड नेशंस ही ले जाना चाहेगा. जिससे चीन वहां जाधव को लेकर पाकिस्तान के हक़ में वीटो कर सके.
तो भारत केलिए सवाल तीन हैं-
- इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का फैसला पाकिस्तान न माने तो भारत क्या करेगा?
- एलओसी पर सीज़फायर उल्लंघन और सेना के साथ पाकिस्तान की बर्बरता के खिलाफ भारत क्या करेगा?
- चीन की कश्मीर में इकोनॉमिक कॉरिडोर के जरिए दखल होने पर भारत क्या करेगा?
और ये तीनों सवाल मुश्किल हालत पैदा कर रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को बेनकाब करने का हल भी भारत को ढूंढ़ना चाहिए.
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