Dalit-Muslim केमेस्ट्री की एक दर्दनाक कहानी हैं जोगेंद्रनाथ मंडल
जोगेंद्रनाथ मंडल (Jogendra Nath Mandal) की दर्दनाक सच्चाई को देश की हुकूमत पर काबिज रहे राजनीतिक दलों और दलितों के नाम पर सिलेक्टिव सियासत करने वाले लोगों ने हमेशा छुपाया. क्योंकि जोगेंद्रनाथ मंडल के साथ हुई ज्यादती की कहानी दलित-मुस्लिम एजेंडे (Dalit-Muslim agenda) पर मुफीद नहीं बैठती.
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) हाल ही में यूपी की विधानसभा में सीएए विरोध (CAA protest) को लेकर हुए उपद्रव (CAA violence) पर बोलते हुए जब जोगेंद्रनाथ मंडल (Jogendra Nath Mandal) के आखिरी दिनों की दास्तान बता रहे थे, तब विधानसभा में मौजूद तमाम दलों के नेताओं के लिए ये एक अचरज भरी कहानी थी. हो भी क्यूं ना, जोगेंद्रनाथ मंडल भारतीय इतिहास की एक ऐसी शख्शियत रहे हैं जिनसे जुड़ी हर घटना जितनी दिलचस्प है उतनी ही दर्दनाक. पर अफसोस, इतिहास ही ज्यादातर घटनाओं की तरह ही जोगेंद्रनाथ मंडल के बारे में देश की नई पीढ़ी को ना तो बताया गया, ना ही पढ़ाया गया. दरअसल ज्यादातर समय तक देश की हुकूमत पर काबिज रहे राजनीतिक दलों और दलितों के नाम पर सेलेक्टिव सियासत करने वाले लोगों के लिए जोगेंद्रनाथ मंडल की कहानी मुफीद नहीं बैठती.
दलितों के नाम पर आवाज उठाकर अपना राजनीतिक कारोबार चलाने वालों को ये बताते हुए आज भी डर लगता है कि देश की आजादी के साथ ही हुए बंटवारे ने दलित-मुस्लिम केमेस्ट्री का पहला प्रयोग किया था. पर ये प्रयोग इतना असफल, इतना दर्दनाक और इतना क्रूर रहा कि आज कोई इसकी चर्चा भी नहीं करना चाहता. सेलेक्टिव दायरे में रहने वाले दलित चिंतक हो या फिर दलित लीडर, सबको एक दलित परिवार में जन्मे जोगेंद्रनाथ मंडल के नाम से खासा परहेज है. अहम सवाल ये है कि जिस तरह आज सीएए पर घिनौनी सियासत हो रही है, क्या आज के दौर में जोगेंद्रनाथ मंडल जान बचाने के लिए भी भारत में पनाह ले पातेॽ
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के अनन्य अनुयायी जोगेंद्रनाथ मंडल ने भारत पाकिस्तान बंटवारे के वक्त पाकिस्तान को चुना. बाबा साहब की मनाही के बावजूद. बाबा साहब का मानना था कि तमाम दुश्वारियों, भेदभाव और संकीर्णता के बावजूद दलितों और मुसलमानों के बीच कभी भी सामंजस्य नहीं हो सकता. इसके पीछे वजह है इस्लाम का भारत से बाहर का धर्म होना और इसके अनुयायियों का कट्टरपंथ. यही वजह थी कि जब जोगेंद्रनाथ मंडल दलित-मुस्लिम केमेस्ट्री लेकर पाकिस्तान की तरफ चले तब बाबा साहब ने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की. ये समझाने की कोशिश की कि कल का भारत, कल के पाकिस्तान से हर हाल में बेहतर होगा, महफूज होगा, सर्वस्वीकार्य होगा और प्रोगेसिव होगा. पर मंडल मन बना चुके थे. लिहाजा तमाम दलित परिवारों के साथ वे पाकिस्तान जा बसे. पाकिस्तान का संविधान लिखा, वहां के पहले कानून मंत्री बने. पर ये ओहदा, कागजों तक ही सीमित रहा. उनका तिरस्कार होने लगा. दलित होने का दंश पहले से ज्यादा महसूस होने लगा. पर पाकिस्तान आने का फैसला उनका खुद का था. लिहाजा पाकिस्तान में तमाम तिरस्कार और भेदभाव सहते हुए भी वे खामोश रहे. उनके सब्र का बांध तब टूटा जब पाकिस्तान में रह रहे दलितों पर इस्लामिक कट्टपंथियों ने हमले बोले. बड़े पैमाने पर नरसंहार होने लगे. दलित परिवारों की बहू बेटियों की इज्जत लूटी जाने लगी. पाकिस्तान के इस्लामिक चरमपंथी चुन चुन कर दलितों का धर्म परिवर्तन करा उन्हें मुस्लिम बनाने लगे. विरोध करने पर मारकाट की जाने लगी.
बाबा साहब अंबेडकर के लाख मना करने पर जोगेंद्रनाथ मंडल पाकिस्तान चले गए, लेकिन वहां उन्होंने दलितों के साथ जो धार्मिक उत्पीड़न देखा, वे 'हिंदू' बनकर भारत लौट आए और यहीं प्राण त्यागे.
बाबा साहब का अनुमान सही साबित होने लगा. पाकिस्तान एक नाकाम देश के साथ ही साथ वहां बाकी बचे हिंदुओं के लिए नरक साबित होने लगा. बड़े पैमाने पर वहां या तो हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा दिया गया या उनकी संपत्तियों पर कब्जे कर लिए गए. चौतरफा हो रही इन वारदातों से हताश जोगेंद्रनाथ मंडल पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली के पास पास पहुंचे. हिंदुओं और उनमें भी बंटवारे के वक्त अपने साथ आए दलितों को लेकर पाकिस्तान की तरफ से दिया गया भरोसा और वायदा याद दिलाया. पर लियाकत अली के जवाब से उनका दिल टूट गया. लियाकल अली ने उन्हें टरकाने वाला जवाब दिया. उस दिन जोगेंद्रनाथ मंडल को ये समझ आया कि वे पाकिस्तान के संविधान निर्माता और पहले कानून मंत्री जरूर हैं, पर पाकिस्तानियो के दिलों में ना तो उनके लिए कोई जगह है और ना ही हिंदुओं के लिए.
वे देश से जा चुके थे और अब धर्म व जान बचाना उनके लिए चुनौती थी. खुलकर विरोध करने के चलते पाकिस्तानी उन्हें देशद्रोही मानने लगे थे. ऐसे में जान बचाने के लिए महज 3 साल बाद 1950 की एक रात जोगेंद्रनाथ मंडल एक खत छोड़कर वापस भारत लौट आए. उनके खत के एक एक शब्द में धोखा मिलने की पीड़ा थी, दलितों को इस्लामिक कट्टरपंथियों से ना बचा पाने की वेदना थी और धोखा मिलने का अफसोस था. उन्होंने लिखा कि डायरेक्ट एक्शन मूवमेंट के दौरान हिंदुओं के साथ हुए बर्बर अत्याचार को अपनी आंखों से देखने के बावजूद मैंने पाकिस्तान जाने का फैसला लिया. लेकिन ये मेरी जिंदगी का सबसे गलत फैसला था. पाकिस्तान के दीघरकुल इलाके की एक घटना का ब्यौरा देते हुए उन्होंने लिखा कि मुस्लिमों की झूठी शिकायत पर दलितों के साथ बर्बर अत्याचार हुआ. निर्दोष दलितों की हत्याएं की गईं और उनकी बहन बेटियों के साथ बलात्कार करने के लिए पाकिस्तानी सैनिक उन्हें अपने सैन्य शिविरों में ले गए. पाकिस्तान में हिदुओं को उत्पीडन करने के लिए ऐसी झूठी शिकायतें अक्सर होती थीं. मंडल ने खुलना, कलशैरा इलाकों के साथ ही साथ ढाका, चटगांव इलाकों की उन घटनाओं का जिक्र किया जिनमें धर्म परिवर्तन के लिए चुन चुन कर दलित परिवारों और उनकी महिलाओं को निशाना बनाया गया. मुलादी की एक घटना का हवाला देते हुए मंडल ने लिखा कि यहां सभी दलित पुरूषों की हत्याएं करने के बाद मुस्लिमों ने महिलाओं और बच्चियों को अपनी अय्याशी के लिए बांट लिया. उसी तरह जैसै वस्तुओं का वितरण होता है. इस खत में मंडल ने लिखा कि इस्लाम के नाम पर जिन दलितों को शिकार बनाया जा रहा है, उनका सिर्फ एक कसूर है कि वे हिंदू हैं.
दलित चेतना का ये नायक दलित मुस्लिम गठजोड़ के बर्बर परिणामों के तौर पर असंख्य हत्याओं, धर्मांतरण और महिलाओं के साथ हुए अत्याचार का बोझ दिल पर लिए भारत की ही माटी में पांच अक्टूबर 1968 को दुनिया से विदा हो गया. आज सीएए के जरिए जिन लोगों को नागरिकता देने का काम मोदी सरकार कर रही है उनमें बड़ी तादाद उन दलित परिवारों की है जो पाकिस्तान में जिंदा लाश की तरह जी रहे हैं. जान बचाने के साथ ही साथ बहन–बेटियों की आबरू बचाना भी उनके लिए बड़ी चुनौती है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि जोगेंद्रनाथ मंडल अगर आज के दौर में जान बचाने के लिए वापस भारत लौटते तो क्या उनका भी ऐसे ही विरोध होताॽ
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